जैव-विविधता को परिभाषित कीजिए तथा जैव-विविधता की क्षति के चार प्रमुख कारण लिखिए: किसी भी पारिस्थितिकी तंत्र एवं वातावरण में पारस्परिक निर्भरता तथा अन्
जैव-विविधता को परिभाषित कीजिए तथा जैव-विविधता की क्षति के चार प्रमुख कारण लिखिए।
जैव-विविधता (Bio-diversity) - “किसी भी पारिस्थितिकी तंत्र एवं वातावरण में पारस्परिक निर्भरता तथा अन्योन्य क्रियाएँ करते हुए पादपो, जन्तुओं एवं सूक्ष्मजीवों की विभिन्न जातियों (स्वभाव, संरचना आकार एवं आकृति में भिन्न) का पाया जाना, जैव-विविधता (Biodiversity) कहलाता है।"
जैव-विविधता को क्षति पहुँचाने वाले कारण
जैव-विविधता की क्षति के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
- आवासीय क्षति तथा विखण्डन
- अतिदोहन
- विदेशी जातियों द्वारा आक्रमण
- सहविलुप्तता
(i) आवासीय क्षति तथा विखण्डन— ये जन्तु एवं पादपों के विलुप्तीकरण का मुख्य कारण है । उष्णकटिबन्धीय वर्षावनों के क्षेत्रफल में होने वाली आवासीय क्षति का सबसे अच्छा उदाहरण है। एक समय वर्षा वन पृथ्वी के 14% क्षेत्र में फैले थे, लेकिन अब 6% से अधिक क्षेत्र में नहीं है ।
(ii) अतिदोहन — मानव हमेशा भोजन एवं आवास के लिए प्रकृति पर निर्भर रहा है, लेकिन अधिक की इच्छा रखने पर प्राकृतिक सम्पदा का अधिक दोहन शुरू हो जाता है। मानव द्वारा अतिदोहन से पिछले 500 वर्षों में कई जातियाँ; जैसे- स्टीलर समुद्री गाय, भैंसेंजर कबूतर विलुप्त हुए हैं।
(iii) विदेशी जातियों द्वारा आक्रमण— जब बाहरी जातियाँ किसी भी लक्ष्य से एक क्षेत्र में लायी जाती है, तब उनमें से कुछ आक्रामक होकर स्थानिक जातियों में कमी या उनकी विलुप्ति का कारण बन जाती हैं; उदाहरण - जब नाइल पर्च (नील नदी की मछली) को पूर्वी अफ्रीका की विक्टोरिया झील में डाला गया, तब झील में रहने वाली पारिस्थितिक रूप से बेजोड़ सिचलिड मछलियों (Cichlid fishes) की 200 से अधिक जातियाँ विलुप्त हो गई। अन्य उदाहरण-पार्थेनियम, आइकोर्निया ।
(iv) सहविलुप्तता— जब एक जाति विलुप्त होती है, तब उस पर आधारित दूसरी जन्तु व पादप जातियाँ भी विलुप्त होने लगती है; जैसे—जब एक परपोषी मत्स्य जाति विलुप्त होती है, तब उस पर आश्रित विशिष्ट परजीवियों का भी वही भविष्य होता है।
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