'श्रवणकुमार' खण्डकाव्य की कथावस्तु (कथानक) पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।— डॉ. शिवबालक शुक्ल द्वारा रचित खण्डकाव्य 'श्रवण कुमार' प्राचीन काल में अयोध्या
'श्रवणकुमार' खण्डकाव्य की कथावस्तु (कथानक) पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
'श्रवण कुमार' खण्डकाव्य का कथानक— डॉ. शिवबालक शुक्ल द्वारा रचित खण्डकाव्य 'श्रवण कुमार' प्राचीन काल में अयोध्या नगरी के ऐश्वर्य तथा रमणीयता के साथ प्रारम्भ होता है। अयोध्या का जीवन सहज तथा आनन्द से परिपूर्ण है और प्रकृति ने भी अपनी अनुपम छटा यत्र-तत्र बिखेर रखी है। ऐसे ही वातावरण में अयोध्या के राजकुमार दशरथ, जो एक कुशल शब्दभेदी धनुर्धर है, आखेट के लिए जंगल की ओर निकल पड़ते हैं। प्रकृति की शोभा देखकर राजकुमार दशरथ मुग्ध हैं तथा आखेट की तलाश में प्रकृति की अठखेलियाँ भी आत्मसात् कर रहे हैं। दूसरी ओर श्रवण कुमार इसी सुरम्य प्रदेश में बने आश्रम में अपनी दिनचर्या को अपने अन्ध माता-पिता के चरणों में समर्पित कर प्रसन्न हैं ।
आखेट पर निकले राजकुमार दशरथ मन ही मन अपने साथ होने वाले अपशकुनों को लेकर चिन्तित हैं और आखेट पर ध्यान केन्द्रित नहीं कर पा रहे हैं। इधर आश्रम में श्रवण कुमार के माँ-बाप को प्यास लगती है और श्रवण कुमार पानी लेने नदी के तट की ओर जाते हैं। नदी में घड़े को डुबोने पर होने वाली ध्वनि को सुनकर राजकुमार दशरथ हिंसक पशु का अनुमान कर शब्द भेदी बाण चला देते हैं जो सीधे श्रवण कुमार के हृदय को बेधकर उसे मरणासन्न कर देता है। श्रवण की चीत्कार से दशरथ को अपनी भूल का भान होता है और वे तत्काल श्रवण कुमार के पास पहुँचते हैं। श्रवण कुमार उन्हें धिक्कारते हुए कहते हैं कि उन्होंने एक नहीं अपितु तीन जीवन नष्ट कर दिये और दशरथ से प्रार्थना करते हैं कि उनके माता-पिता को जल पिला दें। अपने सारथी को श्रवण कुमार की मृत देह के पास छोड़कर दशरथ उनके माता-पिता के पास चल देते हैं। वहाँ पहुँचकर दशरथ श्रवण के माता-पिता को श्रवण की मृत्यु का समाचार देते हैं तो विलाप करता हुआ दम्पत्ति श्रवण के सत्कर्मों को याद करने लगता है और क्रोध में श्रवण के पिता दशरथ को भी पुत्र वियोग में प्राण त्यागने का शाप देते हैं। रोते हुए माता- पिता को दशरथ के साथ श्रवण की दिव्य आत्मा भी सांत्वना देती है परन्तु वे अपने मन को समझा नहीं पाते। तदन्तर श्रवण के पिता को अपने शाप पर ग्लानि होती है कि 'जो हुआ, वह विधाता का विधान था, राजकुमार दशरथ का दोष नहीं।'
वृद्ध तथा अन्ध दम्पत्ति पुत्र-वियोग में रो-रो कर अपने प्राण त्याग देता है और दुखार्द्र राजकुमार दशरथ तीनों की अन्त्येष्टि कर वापस अयोध्या आते हैं। यहाँ लोकापवाद के भय से वह किसी को कुछ नहीं बताते किन्तु इनकी आत्मा इस घटना से जीवन भर व्यथित रहती है। वर्षों बाद पुत्र राम के वन गमन पर दशरथ यह रहस्य कौशल्या के समक्ष खोलते हैं और पुत्र वियोग में अपने प्राण भी त्याग देते हैं।
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