रश्मिरथी के आधार पर कृष्ण का चरित्र चित्रण- 'रश्मिरथी' खण्डकाव्य में यद्यपि कर्ण प्रमुख पात्र का गौरव प्राप्त करता है किन्तु कृष्ण के चरित्र की प्रासं
रश्मिरथी के आधार पर कृष्ण का चरित्र चित्रण - Rashmirathi ke Aadhar par Krishna ka Charitra Chitran
रश्मिरथी के आधार पर कृष्ण का चरित्र चित्रण- 'रश्मिरथी' खण्डकाव्य में यद्यपि कर्ण प्रमुख पात्र का गौरव प्राप्त करता है किन्तु कृष्ण के चरित्र की प्रासंगिकता किसी प्रकार भी कमतर नहीं आंकी जा सकती है। 'रश्मिरथी' खण्डकाव्य में श्रीकृष्ण का अलौकिक स्वरूप दृष्टिगोचर होता है। श्रीकृष्ण की चारित्र की विशेषताएँ निम्नवत् हैं-
• अलौकिक शक्तिपुंज- मानवीय गुणों से युक्त श्रीकृष्ण अलौकिक शक्तिपुंज के प्रतीक लीलाधर योगेश्वर के रूप में खण्डकाव्य में प्रस्तुत होते हैं। जब संधि प्रस्ताव लाने पर दुर्योधन उन्हें बन्दी बनाना चाहता है तो कुपित होकर श्रीकृष्ण अपने विराट स्वरूप में प्रकट हो उठते हैं-
'हरि ने भीषण हुंकार किया, अपना रूप विस्तार किया।
डगमग डगमग दिग्गज डोले, भगवान् कुपित होकर बोले
जंजीर बढ़ाकर साध मुझे, हाँ हाँ दुर्योधन बाँध मुझे।'
• विनम्र तथा व्यावहारिक- श्रीकृष्ण सांसारिक सिद्धि और सफलता के सभी नियमों से अवगत हैं तथा शील-संयम-सदाचार का स्रोत हैं वे पाण्डवों के पक्ष में इसीलिए खड़े रहते हैं क्योंकि वे एक सदाचार पूर्ण समाज का निर्माण करना चाहते हैं।
• स्पष्टवादी- वे युद्ध के पूर्व शान्ति प्रस्ताव लेकर हस्तिनापुर जाते हैं और युवराज दुर्योधन को समझाने का प्रयास करते हैं दुर्योधन के युद्ध के बिना सुई की नोक भर भूमि न देने के संकल्प को सुनकर वही कौरव सभा में ही रणघोष कर अपना आदेश सुनाते हैं-
तो ले मैं भी अब जाता हूँ, अंतिम संकल्प सुनाता हूँ ।
याचना नहीं अब रण होगा, जीवन- जय या कि मरण होगा।
• कुशल कूटनीतिज्ञ- श्रीकृष्ण का चातुर्य विलक्षण हैं युद्ध को पाण्डवों के पक्ष में करने का हरसंभव प्रयास करते हैं। वे कर्ण को कौन्तेय होने के भेद बताकर पाण्डवों की ओर करने का प्रयत्न करते हैं किन्तु कर्ण इसे मित्र के साथ विश्वासघात मानकर अस्वीकार कर देता है।
• युद्धकुशल तथा गुणाग्रही- युद्ध में सही समय पर उचित निर्णय लेने की कुशलता में श्रीकृष्ण अद्वितीय हैं। कर्ण का पहिया रक्त के कीचड़ में फँसने पर तथा कर्ण द्वारा उसे निकालने के प्रयत्न के दौरान ही कृष्ण अर्जुन को बाण चलाने का आदेश देते हैं। यद्यपि युद्धनीति के अनुसार यह अधर्म था किन्तु कर्ण के जीवन का परिणाम भी यही था। कर्ण की वीरगति पर सर्वाधिक दुःखी कृष्ण उसके गुणों का आदर करते हैं तथा उसे भीष्म, गुरुद्रोण समान वीर तथा सम्मान का अधिकारी भी मानते हैं।
वस्तुतः श्रीकृष्ण रश्मिरथी के संचालक पात्र हैं जो युद्धरत न होकर भी युद्ध में संलग्न हैं। युद्ध में सम्मिलित होकर भी युद्ध से विरत हैं, सारथी होकर भी सेनापति हैं।
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