भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ - लता मंगेशकर' का सारांश - Bhartiya Gayikaon Mein Bejod Lata Mangeshkar Summary in Hindi: भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ - लता
भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ - लता मंगेशकर' का सारांश - Bhartiya Gayikaon Mein Bejod Lata Mangeshkar Summary in Hindi
उत्तर— भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ - लता मंगेशकर' Class 11 NCERT में शास्त्रीय गायक कुमार गंधर्व द्वारा लिखित एक व्यक्ति वृत्त है। प्रस्तुत वृत्तांत में संगीत की दुनिया में बच्चों की अभिरुचि के विकास में लता मंगेशकर के योगदान पर प्रकाश डाला गया है। ‘कुमार गंधर्व' जिनका मूल नाम शिवपुत्र सढ़िदारमैया कामकली है, ने बहुत वर्षों पहले लता मंगेशकर का स्वर रेडियो पर सुना था। कुमार गंधर्व जी उन दिनों बीमार था। लेखक ने स्वयं भी मात्र 10 वर्ष की आयु में गायकी की पहली मंचीय प्रस्तुति की थी। लता मंगेशकर के इस अद्वितीय स्वर से लेखक हैरान रह गया था। गाना समाप्त होते ही गायिका का नाम घोषित किया गया- लता मंगेशकर। सुप्रसिद्ध गायक दीनानाथ मंगेशकर की अजब गायकी का दूसरा स्वरूप लिए उनकी बेटी लता यानि सुगम संगीत या फ़िल्मी संगीत का सुरीला इतिहास। एक ऐसा सुर जिसने एक शास्त्रीय गायक को कलम उठाने पर विवश कर दिया। लेखक को मन-ही-मन एक संगति पाने का भी अनुभव हुआ। उस समय से लेखक लगातार लता मंगेशकर के गाने सुनता आ रहा है। लेखक ने जो गाना सुना था वह ‘बरसात' के भी पहले के किसी चित्रपट का कोई गाना था। लता से पहले प्रसिद्ध गायिका नूरजहाँ का चित्रपट संगीत में बोलबाला था। परन्तु उसी क्षेत्र में बाद में आई लता उससे कहीं आगे निकल गई। जैसे प्रसिद्ध सितारवादक विलायत खाँ अपने सितारवादक पिता की तुलना में बहुत ही आगे चले गए।
लेखक का मानना है कि भारतीय गायिकाओं में लता के जोड़ की गायिका हुई ही नहीं। लता के कारण चित्रपट संगीत और शास्त्रीय संगीत को लोकप्रियता प्राप्त हुई है। चित्रपट संगीत के कारण सुंदर स्वरों के क्रमबद्ध समूह लोगों के कानों में पड़ रहे हैं। आजकल के नन्हे-मुन्ने भी स्वर में गुनगुनाते हैं। संगीत के विभिन्न प्रकारों से लोगों का परिचय हो रहा है। उनका स्वर - ज्ञान बढ़ रहा है। सामान्य मनुष्य में संगीत के प्रति अभिरुचि पैदा करने, संगीत को लोकप्रिय बनाने में लता जी के प्रमुख योगदान को नकारा नहीं जा सकता।
आज शास्त्रीय गायकी और लता मंगेशकर की स्वरलिपि में प्रमुखता लता की स्वरलिपि को दी जा रही है, क्योंकि सामान्य श्रोता लता जी की स्वरलिपि को अधिक पसंद कर रहा है। लता जी का कोई भी गाना लीजिए उसमें शत-प्रतिशत गाने का ऐसा अंदाज मिलेगा जो एक आम आदमी को भी भाव-विभोर कर दे।
लता जी के गाने की एक अन्य विशेषता उसका नादमय उच्चारण है। उसके गीत के किन्हीं दो शब्दों का अन्तर स्वरों के आलाप द्वारा बड़े सुंदर ढंग से भरा रहता है और ऐसा प्रतीत होता है कि वे दोनों शब्द विलीन होते-होते एक-दूसरे में मिल जाते हैं। लेखक के अनुसार लता के गीत में दो कमियाँ हैं- प्रथम करुण रस प्रभावशाली रीति से व्यक्त नहीं होता, दूसरी लता के गानों में सामान्यतः ऊँचे (तारसप्तक) स्वरों का प्रयोग होता है।
लता जी को शास्त्रीय संगीत का भरपूर ज्ञान है। लता के साढ़े तीन मिनट के गान और तीन घंटे के शास्त्रीय संगीत की महफिल का आनंदात्मक मूल्य एक ही है । लता का एक-एक गाना संपूर्ण कलाकृति होता है। उसमें स्वर, लय और शब्दार्थ की त्रिवेणी होती है। वास्तव में किसी गाने का महत्त्व इस बात पर निर्भर होना चाहिए कि उसमें रसिक को आनंदित करने की सामर्थ्य कितनी है।
संगीत के क्षेत्र में लता का स्थान खानदानी गायक के समान है। लेखक ने अपनी हर बात उदाहरणों द्वारा समझाई है। कुछ लोगों का मानना है कि लता तीन घंटे की संगीत महफिल नहीं जमा सकती। लेखक उन लोगों के मत का उत्तर देते हुए कहता है कि कोई भी शास्त्रीय गायक तीन मिनट की अवधि में ही लता जैसी कुशलता और रसोत्कटता से नहीं गा सकता। खानदानी गायक चित्रपट संगीत पर लोगों की अभिरुचि बिगाड़ने का आरोप लगाते हैं। परन्तु लेखक समझता है कि चित्रपट संगीत ने लोगों की रुचि को 'सुधारा है।
वास्तव में शास्त्रीय गायक बड़ी आत्म-संतुष्ट वृत्ति के होते हैं। जन-साधारण को शास्त्र - शुद्ध और नीरस गाना नहीं चाहिए। उन्हें सुरीला और भावपूर्ण गाना चाहिए और यह क्रांति चित्रपट संगीत ही लाया है। चित्रपट संगीत में नव-निर्मित की बहुत गुंजाइश है। चित्रपट संगीत दिनों-दिन अधिकाधिक विकसित होता जा रहा है । बड़े-बड़े संगीतकार शास्त्रीय रागदारी का लोकगीतों की धुनों का भरपूर उपयोग कर रहे हैं। वे धूप की तरह कौतुक करने वाले पंजाबी लोकगीतों का, घाटियों में गूँजते पहाड़ी लोकगीतों का, बादल की तरह घुमड़ते राजस्थानी लोकगीतों का, खेती से संबंधित कृषि गीतों का, ऋतुचक्रों का भरपूर उपयोग कर रहे हैं। चित्रपट संगीत में अनेक अलक्षित प्रयोग करने की गुंजाइश बनी हुई है । ऐसे चित्रपट संगीत क्षेत्र की लता बेताज सम्राज्ञी है। ऐसा कलाकार शताब्दियों में शायद एक ही पैदा होता है। इस क्षेत्र में और भी कई पार्श्व गायक और गायिकाएँ हैं, लेकिन लता जैसी लोकप्रियता किसी को नहीं मिली। संगीत के क्षेत्र में एक राग भी अधिक दिनों तक टिका नहीं रहता, परन्तु लता आधी से अधिक शताब्दी से इस क्षेत्र में अपना स्थान बनाए हुए है। यह एक चमत्कार है कि लता मंगेशकर का गाना भारत में ही नहीं, विदेशों में भी पसंद किया जाता है। लता मंगेशकर जैसा कलाकार हम सभी के बीच में है, उसे हम अपनी आँखों के सामने घूमता-फिरता देख रहे हैं। हम सब बहुत भाग्यशाली हैं।
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