स्पीति में बारिश पाठ का सारांश- 'स्पीति में बारिश' पाठ एक यात्रा-वृत्तांत है। स्पीति, हिमालय के मध्य में स्थित है। यह स्थान अपनी भौगोलिक एवं प्राकृतिक
स्पीति में बारिश पाठ का सारांश - Class 11 Spiti me Barish Summary in Hindi
'स्पीति में बारिश' पाठ एक यात्रा-वृत्तांत है। स्पीति, हिमालय के मध्य में स्थित है। यह स्थान अपनी भौगोलिक एवं प्राकृतिक विशेषताओं के कारण अन्य पर्वतीय स्थलों से भिन्न है। लेखक ने इस पाठ में स्पीति की जनसंख्या, ऋतु, फ़सल, जलवायु तथा भूगोल का वर्णन किया है जो परस्पर एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं । पाठ में दुर्गम क्षेत्र स्पीति में रहने वाले लोगों के कठिनाई भरे जीवन का भी वर्णन किया गया है। स्पीति में बारिश का सारांश इस प्रकार है-
स्पीति में संचार-साधनों का अभाव
स्पीति हिमाचल प्रदेश के लाहुल-स्पीति जिले की एक तहसील है। यहाँ ऊँचे दर्रे तथा कठिन रास्ते हैं। यह इलाका संचार-साधनों से कटा हुआ है। इसीलिए यहाँ का बादशाह केलंग और काजा के मध्य वायरलेस सेट से ही वार्तालाप कर पाता है।
स्पीति राज्य की स्थिति
प्राचीन काल में स्पीति भारतीय साम्राज्यों का अनाम अंग रही। जब से साम्राज्य टूटे तब से यह स्वतन्त्र रही है। इसकी स्वायत्तता भूगोल ने रची है। यह कभी लद्दाख मण्डल, कभी कुल्लू मण्डल, कभी बुशहर मण्डल और कभी ब्रिटिश भारत के तहत रही है। परन्तु हमेशा यह स्वतन्त्र रही है। यहाँ के लोग जोरावरसिंह जैसे आक्रमणकारी से बचने के लिए चांग्मा का तना पकड़कर बैठ जाते हैं। यही इनकी सुरक्षा-पद्धति है।
स्पीति की जनसंख्या एवं राज
सन् 1971 की जनगणना के अनुसार स्पीति की जनसंख्या 7,196 है। इंपीरियल गजेटियर के अनुसार इसका क्षेत्रफल 2,155 वर्गमील है। स्पीति राज्य सन् 1846 में कश्मीर के राजा गुलाबसिंह के जरिए अंग्रेजों को मिला। सन् 1960 में लाहल-स्पीति को एक जिले के रूप में पंजाब राज्य के अन्तर्गत तथा सन् 1966 में हिमाचल के अन्तर्गत रखा गया। यह देश का सबसे दुर्गम क्षेत्र है। यहाँ प्रति वर्ग मील में चार से भी कम लोग रहते हैं। यहाँ आठ-नौ महीने बर्फ पड़ती है और शेष महीनों बसन्त ऋतु छायी रहती है।
दुर्गम भूभाग
स्पीति में चारों ओर ऊँचे दुर्गम पहाड़ हैं, जिनकी ऊँचाई 18000 फीट है। ये पहाड़ उसे तिब्बत, लाहुल, किन्नौर और उत्तर लद्दाख से अलग करते हैं। इसकी मुख्य नदी स्पीति 16000 फीट की ऊँचाई से निकल कर तिब्बत से होती हुई बुशहर और किन्नौर में बहती हुई सतलुज में मिलती है। इसके अलावा वहाँ पर पारा और पिन नदियों की घाटियाँ भी हैं। यहाँ पर ठण्ड भीषण रूप में पड़ती है, फिर भी लोग यहीं रहते हैं। धर्म की रक्षा और जन्मभूमि का मोह उन्हें वहीं रोके रखता है।
स्पीति के पहाड़ लाहुल से ऊँचे, नंगे और भव्य हैं। यहाँ हिम का आर्तनाद है ठिठुरन और तीव्र गलन है। यह क्षेत्र हिमालय का तलुआ अथवा तलहटी है, इसे शिवालिक या परिपंचाल नाम से भी पुकारते हैं।
बारालाचा एवं माना पर्वत-मालाएँ -स्पीति घाटी की उत्तर दिशा में जो पर्वतश्रेणियाँ घेरे हुए हैं, उन्हें बारालाचा कहते हैं। इनकी ऊँचाई 16 हजार फीट से 21 हजार है। दक्षिण की पर्वत मालाओं को माना कहते हैं। शायद इन पर्वतमालाओं के नाम बौद्धों के 'माने' मन्त्र के नाम पर पड़े हों। यह मध्य हिमालय क्षेत्र है, इसके पार बाह्य हिमालय दीखता है।
दो ऋतुएँ
लाहुल की तरह स्पीति में दो ही ऋतुएँ होती हैं - वसन्त और शीत । वसन्त ऋतु जून से सितम्बर तक होती है। शीत ऋतु में यहाँ तापमान एकदम गिर जाता है तथा नदी-नाले सब बर्फ से जम जाते हैं।
वर्षा का अभाव -स्पीति में मानसून नहीं पहुँचता है। धरती सूखी, ठण्डी और वन्ध्या रहती है। यहाँ के निवासी वर्षा ऋतु की मादकता एवं प्राकृतिक घटा से अपरिचित रहते हैं।
स्पीति की फसलें
स्पीति में साल में केवल एक ही फसल होती है। यहाँ पर दो किस्म का जौ, गेहूँ, मटर और सरसों होती है। इन फसलों की सिंचाई पहाड़ों से बहने वाले झरनों से होती है। यहाँ स्पीति नदी का पानी किसी काम नहीं आता है। वर्षा की कमी से यहाँ पेड़ नहीं होते, घाटी नंगी और वीरान है।
वर्षा का सुखद संयोग
लेखक जब वहाँ गये तो काजा के डाक बंगले में रुके। उसी समय आधी रात में वर्षा हो गई। खिड़की खड़कने लगी, तो उसने उठकर खिड़की खोली, तो देखा बारिश हो रही है। सुबह उठते ही लोगों ने कहा कि यात्रा शुभ होगी, क्योंकि स्पीति में बहुत दिनों बाद बारिश हुई है।
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