उसने कहा था कहानी की कथावस्तु - कथानक या कथावस्तु कहानी की कथावस्तु संक्षिप्त होती है और तीव्र गति से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ती है। चंद्रधर शर्मा गुलेरी
उसने कहा था कहानी की कथावस्तु - Usne Kaha Tha Kahani ki Kathavastu
उसने कहा था कहानी की कथावस्तु - कथानक या कथावस्तु कहानी की कथावस्तु संक्षिप्त होती है और तीव्र गति से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ती है। चंद्रधर शर्मा गुलेरी ने संयोगों और घटनाओं के सहारे 'उसने कहा था' कहानी के कथानक की सृष्टि की है। इसक कथानक तत्कालीन प्रथम महायुद्ध से सम्बन्धित है। बालक लहनासिंह अमृतसर के बाजार में अचानक एक बालिका को ताँगे के आ नीचे जाने से बचा लेता है। यहीं से दोनों का परिचय आरम्भ होता है। दोनों के मन में एक दूसरे के प्रति अनुराग उत्पन्न हो जाता है। कुछ समय बाद दोनों अलग हो जाते हैं और एक दूसरे को भूल जाते हैं। फिर दोनों का खोगवश 25 वर्ष बाद अचानक मिलन होता है जब लहनासिंह नं. 77 राइफल होकर अंग्रेजों की ओर से फ्रांस के रणक्षेत्र में लड़नके लिए जा रहा है और अपने सूबेदार को मिलने उसके घर आता है। सूबेदारनी को देखकर उसे पता चलता है वह कोई और नहीं बल्कि वही भोली-भाली लड़की है जो रेशम से कढ़ा सालू दिखाकर भाग गई थी। सूबेदारनी लहनासिंह को अपने पास बुलाकर कहती है कि जिस तरह बचपन में तुमने तांगे के नीचे आ जाने से मेरी जान बचाई थी, उसी तरह अब तुम युद्धस्थल में मेरे पति और मेरे पुत्र दोनों की रक्षा करना। फ्रांस और बेल्जियम के मैदान में वह सूबेदार हजारा सिंह और उनके रोगग्रस्त पुत्र बोधासिंह के प्राणों की रक्षा करता हुआ ही स्वयं घायल हो जाता है और अपने साथी वजीरा सिंह की गोद में अपने प्राण त्याग देता है। उसे मरते हुए यह संतोष है कि उसने अपनी प्रतिज्ञा का पालन पूर्णरूप से कर लिया है। कथानक उस अडिग विश्वास पर आधारित है, जिसके बल पर सूबेदारनी निस्संकोच लहनासिंह से उसके जीवन को माँग लेती है।
इस कहानी के कथानक में आरम्भ, आरोही, चरमस्थिति, अवरोह और अन्तर नामक पाँचों स्थितियों का चित्रण भी बड़ी सजीवता के साथ हुआ है। इस कहानी का 'आरम्भ' भी भूमिका से हुआ है और उस भूमिका में अमृतसर के बाजार का यथार्थ चित्रण कथानक को सजीव बना देता है । 'तेरी कुड़माई हो गई' और 'धत्' जैसे शब्दों ने कनक को आरम्भ से ही मार्मिक बना दिया है। तदुपरान्त फ्रांस- बेल्जियम के मैदान में खंदक के अंदर सिक्ख रेजीमेंट के पहुँचने एवं वहाँ गीत गाकर मनोविनोद करने तक इस कथानक का 'आरोह' है। तत्पश्चात् कपटी लपटन साहब के आने पर कथानक 'चरमस्थिति' पर पहुँच जाता है और लहनासिंह की कुशलता एवं सावधानी के कारण सूबेदार हजारासिंह तथा रोग से पीड़ित उनके पुत्र बोधासिंह की रक्षा का 'अवरोह आरम्भ हो जाता है। इसके अनंतर लेखक ने लहनासिंह जमावर की स्मृति को जाग्रत करके पुरानी घटनाओं का उल्लेख करते हुए लहनासिंह की मृत्यु के साथ कथानक का करुणापूर्ण 'अन्त' किया है। कथानक के अन्त में लेखक ने यथार्थता का पुट देने के लिए लिखा है - "कुछ दिन पीछे लोगों ने अखबारों में पढ़ा – फ्रांस और बेल्जियम - 68 वीं सूची - मैदानों में घावों से मरा नं. 77 सिख रायफल्स जमादार लहनासिंह।"
इतने विस्तृत एवं विशाल चित्रपृष्ठ पर सम्पूर्ण कथानक को सन्तुलित ढंग से प्रस्तुत करना और इधर-उधर बिखर हुई कड़ियों को जोड़कर अन्त में उन्हें क्रमबद्ध कर देना गुलेरी जी के कलात्मक विधान की महत्ता को प्रदर्शित करता है। गुलेरी जी ने विधान की दृष्टि से कथानक के अन्तिम भाग को इतने कलात्मक ढंग से संजोया है कि कहानी की संवेदना चरमावस्था के उपरान्त भी स्थिर बनी रहती है। इस तरह 'उसने कहा था' कहानी का सुगठित कथानक अप्रत्याशित मोड़ों एवं कौतूहल प्रवृत्ति से परिपूर्ण होकर जीवन - तथ्यों के उद्घाटन में पूर्ण सशक्त एवं सक्षम है।
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