लोक साहित्य का क्षेत्र: लोक साहित्य का क्षेत्र बहुत व्यापक है। लोक साहित्य के विद्वानों का मत है कि जहां-जहां लोक है, वहीं-वहीं लोक साहित्य भी उपलब्ध
लोक साहित्य का क्षेत्र स्पष्ट कीजिए
लोक साहित्य का क्षेत्र: लोक साहित्य का क्षेत्र बहुत व्यापक है। लोक साहित्य के विद्वानों का मत है कि जहां-जहां लोक है, वहीं-वहीं लोक साहित्य भी उपलब्ध होता है। आदिम जीवन का तो लोक साहित्य से घनिष्ठ संबंध है। यदि यह कहा जाए कि आदिम जीवन लोक साहित्य का संस्कार–विधाता है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। पूर्ण सभ्य, सुसंस्कृत जातियों के जीवन में संस्कारों को सम्पन्न करने में जो भूमिका वैदिक मंत्रों की होती है, आदि जातियों में लोकगीतों की भी वही भूमिका होती है। वास्तव में लोक-जीवन के लिए लोकगीत ही वैदिक मंत्र है। जन्म से लेकर विवाह, मरण आदि तक के विधि अवसरों पर लोकगीत गाने की परंपरा है। संपूर्ण वर्ष सभी ऋतुओं में, जीवन के विविध क्रिया-कलापों के अवसर पर लोकगीतों के गाने की परंपरा है। इसी प्रकार बाल्यकाल से ही दादी-नानी की कहानियों से लेकर व्रतों, त्योहारों, पर्वों, उत्सवों, मेलों, तीर्थों, धार्मिक, सामाजिक क्रिया-कलापों के अवसर पर लोकगीतों को गाया जाता है। तात्पर्य यह है कि लोक जीवन का प्रत्येक क्षण लोक साहित्य से किसी न किसी प्रकार संबद्ध रहता है। जिस प्रकार मनुष्य का जीवन बहुआयामी है, उसी प्रकार लोक साहित्य का क्षेत्र भी बहुत विस्तृत है। इस संबंध में डॉ. कृष्णदेव उपाध्याय का निम्नांकित कथन उद्धृत करना उपयुक्त होगा-
'लोक साहित्य का विस्तार अत्यन्त व्यापक है। साधारण जनता जिन शब्दों में गाती है, रोती है, हंसती है, खेलती है, उन सबको लोक साहित्य के अंतर्गत रखा जा सकता है। पुत्र जन्म से लेकर मृत्यु तक जिन षोडश संस्कारों का विधान हमारे प्राचीन ऋषियों ने किया है, प्रायः उन सभी संस्कारों के अवसर पर गीत गाए जाते हैं। विभिन्न ऋतुओं में प्रकृति में जो परिवर्तन दिखाई पड़ता है, उसका प्रभाव' जनसाधारण के हृदय पर पड़े बिना नहीं रहता । अतः बाह्य जगत में इस परिवर्तन को देखकर हृदय में जो उल्लास या आनन्द की अनुभूति होती है, वह लोक गीतों के रूप में प्रकट होती है। खेतों की बोआई, निराई, लुनाई आदि के समय भी गीत गाए जाते हैं। जनता अपने पूर्व पुरुषों के शौर्यपूर्ण कार्यों को गा-गाकर आनन्द प्राप्त करती है। उनका यशोगान कर श्रोताओं के हृदय में वीर रस का संचार करती है। ये गीत लोक गाथाओं की कोटि में रखे जा सकते हैं।
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