पुस्तक मेला पर दो मित्रों के बीच संवाद : In This article, We are providing Pustak Mela par Do mitro ke beech samvad lekhan for Students and teachers.
पुस्तक मेला पर दो मित्रों के बीच संवाद
पहला दोस्त : सुना है शहर में पुस्तक मेला लगा है ?
दूसरा दोस्त : हाँ भाई, पुस्तक मेले से ही आ रहा हूँ।
पहला दोस्त : कैसा अनुभव रहा दोस्त ?
दूसरा दोस्त : बहुत दिनों से किसी पुस्तक मेले में जाने की इच्छा हो रही थी, आज तो मज़ा ही आ गया।
पहला दोस्त : यह तो है, बहुत दिनों बाद कोई पुस्तक मेला देखने को मिला।
दूसरा दोस्त : हाँ ! कितना अच्छा हो की अगर ऐसे पुस्तक मेले हर कुछ समय पर आयोजित किये जाएँ।
पहला दोस्त : तुमने वहाँ क्या-क्या देखा दोस्त ?
दूसरा दोस्त : वहाँ हर प्रकार की पुस्तकें मौजूद थी और हर पुस्तक को बड़ी ही अच्छी तरह से दर्शाया गया था।
पहला दोस्त : क्या तुमने भी पुस्तकें खरीदीं ?
दूसरा दोस्त : वहाँ मौजूद हर पुस्तक बहुत ही अच्छी थी परन्तु मैं केवल दो ही पुस्तक लाया ।
पहला दोस्त : अगर यह मेला कुच्छ दिन और लगा रहे तो मैं भी जाना चाहूंगा।
दूसरा दोस्त : अगर यह मेला कुच्छ दिन और लगा रहे तो मैं ज़रूर दोबारा जाना चाहूंगा।
पहला दोस्त : क्यों नहीं ज़रूर, यह मेला अभी एक हफ्ते और प्रदर्शित रहेगा। कुछ समय बाद चलेंगे क्योंकि मुझे भी कुछ पुस्तकें खरीदनी हैं।
पुस्तक मेले से लौटते हुए दो मित्रों के बीच संवाद
राम : क्यों मित्र श्याम बताओ तो कैसा लगा तुम्हे पुस्तक मेला?
श्याम : पुस्तक मेला मुझे बहुत अच्छा लगा।
राम : तुमने कोई पुस्तक भी खरीदी क्या या केवल वहाँ चल रहे वाद-विवाद प्रतियोगिता में ही तुम लीन हो कर रह गए?
श्याम : बेशक वाद-विवाद प्रतियोगिता शानदार थी लेकिन मेने तब भी थोड़ा समय निकल कर इतिहास और हिंदी साहित्य की कुछ पुस्तक खरीद ली हैं जिन्हें मैं अपनी दिल्ली की यात्रा के दौरान रेल में पढूंगा।
राम : अच्छा!
श्याम : वैसे तुम बताओ मित्र तुमने पुस्तक मेले से कुछ लिया या नहीं?
राम : क्यों नहीं मित्र, मैं बहुत लम्बे समय से एक उपन्यास का इंतज़ार कर रहा था और आज उसी उपन्यास का इस पुस्तक मेले में प्रक्षेपण किया गया और साथ ही वहाँ मौजूद लोगों को इसकी एक एक प्रतिलिपि भी वितरित की गई।
श्याम : अरे वाह! यह तो सोने पर सुहागा हो गया।
राम : बिल्कुल मित्र!
श्याम : अरे पता ही नही चला कब घर आ गया| चलो फिर मिलते हैं मित्र।
राम : बिल्कुल मित्र।
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