भारत में वर्ग निर्धारण के प्रमुख आधार - 1. आय के स्रोत या प्रकृति के आधार पर वर्ग निर्धारण 2. सम्पत्ति या धन के आधार पर वर्ग निर्धारण 3. उत्पादन के सा
भारत में वर्ग निर्धारण के प्रमुख आधार बताइए
इस लेख में भारत में वर्ग निर्धारण के प्रमुख आधार का वर्णन किया गया है
भारत में वर्ग निर्धारण के प्रमुख आधार
1. आय के स्रोत या प्रकृति के आधार पर - वर्ग निर्धारण में आय के स्रोतों पर विशेष ध्यान दिया जाता है, क्योंकि समाज में उस वर्ग को अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता है जो असामाजिक स्रोतों से आय प्राप्त करता है, जैसे - चोरी, डाका, काला बाजारी आदि। उनकी तुलना में व्यापार, व्यवसाय, उद्योग, नौकरी आदि के आय के स्रोतों को अच्छा माना जाता है। अतः स्पष्ट है कि आय के स्रोत व आय की प्रकृति भी वर्ग निर्धारण का आधार है।
2. सम्पत्ति या धन के आधार पर वर्ग निर्धारण - वर्तमान युग आर्थिक युग है। यही कारण है कि प्रत्येक समाज में वर्ग निर्धारण का एक महत्वपूर्ण आधार धन या सम्पत्ति बन गया है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि सम्पत्ति या धन व्यक्ति को एक निश्चित सामाजिक प्रस्थिति प्रदान करने में महत्वपूर्ण माध्यम है क्योंकि इसी के द्वारा व्यक्ति को आदर, मान-सम्मान एवं सुखसुविधाएँ मिलती हैं। इस आधार पर निम्नलिखित तीन वर्ग स्पष्ट हए हैं
(i) उच्च वर्ग - इस वर्ग में समाज के उन व्यक्तियों को रखा जा सकता है जिनके पास अत्यधिक धन या सम्पत्ति होती है तथा जो उत्पादन के साधनों पर एकाधिकार रखते हैं तथा विलासिता व वैभवयुक्त माध्यमों व साधनों का उपभोग करते हैं।
(ii) मध्यम वर्ग - मध्यम वर्ग, उच्च तथा निम्न वर्ग के बीच की स्थिति वाले सदस्यों का समूह होता है, जिनकी आय के निश्चितस्रोत होते हैं, जिनसे वह अपनी आवश्यकताओं तथा इच्छाओं की पूर्ति करता है।
(iii) निम्न वर्ग - इस वर्ग के पास न तो इतनी धन या सम्पत्ति ही होती है और न ही आय के सशक्त व स्थायी स्रोत ही होते हैं, जिनसे ये अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकें। दूसरे शब्दों में निम्न वर्ग ऐसे व्यक्तियों का समूह होता है जो अपनी आवश्यकताएँ व इच्छाएँ पूर्ण कर पाने में सक्षम नहीं होते।
3. उत्पादन के साधन के आधार पर वर्ग निर्धारण - वर्ग निर्धारण का एक प्रमुख आधार उत्पादन के साधनों पर नियन्त्रण रखना भी है। प्रत्येक युग में समाज के उच्च वर्ग ने (मालिक जमींदार या सामन्त या पूँजीपति) उत्पादन के साधनों को अपने नियन्त्रण में रखा । इसी से ये समाज के उच्च वर्ग कहे गए और इसी की शक्ति द्वारा इन्होंने अपने अधीनस्थ सर्वहारा वर्ग का शोषण किया। अतः स्पष्ट है कि उत्पादन के साधनों के प्रभुत्व के आधार पर वर्गों का निर्माण हुआ।
4. निवास की स्थिति के आधार पर वर्ग निर्धारण - वर्ग निर्धारण में व्यक्ति के निवास स्थान का भी महत्व होता है जैसे भारतीय समाज में निम्न जातियों को गाँव के बाहर तथा उच्च जातियों को गाँव के अन्दर रखा जाता है। वर्तमान युग में भी यही स्थिति है। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि निवास स्थान का चुनाव व्यक्ति अपनी स्थिति के अनुरूप ही करते हैं। अतः स्पष्ट है कि निवास की स्थिति के आधार पर वर्ग का निर्धारण किया जा सकता है।
6. शैक्षणिक योग्यता के आधार पर वर्ग निर्धारण : प्रत्येक समाज मे अशिक्षित व्यक्तियों की अपेक्षा शिक्षित व्यक्तियों को अधिक श्रेष्ठ समझा जाता है और उन्हे अधिक प्रतिष्ठा दी जाती है। अतः प्रत्येक समाज मे शैक्षणिक योग्यता भी वर्ग निर्माण का प्रमुख आधार है।
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