मुस्लिम विवाह एक समझौता है - हिन्दू विवाह की तरह मुस्लिम विवाह एक धार्मिक संस्कार न होकर एक समझौता होता है जिसका उद्देश्य बच्चे पैदा करना व उन्हें वैध
मुस्लिम विवाह एक समझौता है। स्पष्ट कीजिए।
अथवा 'मुस्लिम विवाह एक समझौता है ? इस कथन की पुष्टि कीजिए।
भारत के मुसलमानों में विवाह का जो रूप मिलता है वह उनमें प्रचलित आदि विवाह का परिमार्जित रूप है। अरब में प्रचलित यह विवाह अव्यवस्थित व अस्थिर था। इस प्रकार के विवाह में स्त्रियों के अधिकार असीमित थे। इसको बीना विवाह कहते हैं। इसका स्थान बाल नामक विवाह ने लिया जिसमें स्त्रियों के स्थान पर अधिकार पुरुषों को मिल गया।
मुस्लिम विवाह एक समझौता है
हिन्दू विवाह की तरह मुस्लिम विवाह एक धार्मिक संस्कार न होकर एक समझौता होता है जिसका उद्देश्य बच्चे पैदा करना व उन्हें वैधता प्रदान करना होता है। मुस्लिम कानून के अनुसार मुस्लिम विवाह की परिभाषा का सार ऊपर की व्याख्या में आ गया है फिर भी कानून के अनुसार मुस्लिम विवाह विषमलिंगियों के मध्य एक समझौता है जिसका उद्देश्य पारस्परिक सुख, सन्तानोत्पत्ति व बच्चों को वैधता प्रदान करना है।
डी. एफ. मुल्ला ने लिखा है : "विवाह (निकाह) एक समझौते के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसका उद्देश्य बच्चों को जन्म देना व उन्हें वैद्यता प्रदान करना है।'
उपरोक्त व्याख्याओं में मुस्लिम विवाह को एक समझौता माना गया है जिसका प्रमुख उद्देश्य सन्तानोत्पत्ति व बच्चों को वैधता प्रदान करना है। यह समझौता इसलिए कहा गया है, क्योंकि इसमें भारतीय समझौता अधिनियम की सभी बातें मिलती हैं। उदाहरणार्थ (1) एक पक्ष से प्रस्ताव आता है। प्रायः यह प्रस्ताव लड़के के पक्ष से आता है। (2) इस प्रस्ताव की स्वीकृति होती है जिसमें दो पुरुषों या एक पुरुष दो स्त्रियों की साक्ष्य या गवाही आवश्यक है। ये गवाह सही दिमाग के वयस्क के होने चाहिए। यह स्वीकृति एक बैठक में होनी चाहिए। इस समझौते के फलस्वरूप वर पक्ष से कन्या को प्रतिफल के रूप में मेहर देना होता है।
इस्लाम कुंवारेपन को प्रोत्साहित नहीं करता और विवाह करने पर बल देता है। मुसलमानों में बहुविवाह मान्य है। एक पुरुष एक समय में चार पत्नियाँ रख सकता है। तलाक के नियम बहुत उदार हैं और अदालत व उसके बिना दोनों ही ढंग से तलाक हो सकता है।
मुस्लिम विवाह की शर्तें
(1) विवाह के समय समझौते के योग्य होना। सही दिमाग हो और वर की कम से कम 15 वर्ष उम्र हो,
(2) नाबालिक बच्चों के विवाह उनके संरक्षकों की स्वीकृति से हो सकते हैं।
(3) विवाह की स्वीकृति स्वेच्छा से बिना दबाव के दी जानी चाहिए।
(4) एक मुसलमान एक समय में चार पत्नियाँ रख सकता है किन्तु स्त्री को एक समय में एक विवाह की ही अनुमति है।
(5) एक मुसलमान अपने धर्म की स्त्री के अतिरिक्त कितबिया विवाह यहूदी या ईसाई स्त्री से कर सकता है किन्तु मूर्ति पूजकों से विवाह की आज्ञा नहीं है। मुस्लिम स्त्री को यह सुविधा नहीं है।
(6) मुसलमानों में अति निकट के रक्त सम्बन्धियों में विवाह का वर्जन है। विवाह की शर्ते न मानने से विवाह फासिद या अनियमित तथा वातिल या अवैध हो सकता है। शर्ते मानने से ही विवाह सही होता है।
मेहर का अर्थ
मेहर वह धन है जो लड़के के पक्ष से विवाह समझौते के फलस्वरूप लड़की को दिया जाता है या देने का वचन दिया जाता है। कपाड़िया के अनुसार, इसे वधू-मूल्य नहीं समझना चाहिए। यह तो पत्नी के सम्मान में दिया जाने वाला धन है। कानूनी दृष्टि से मेहर को चुकाए बिना पति को सहवास का अधिकार प्राप्त नहीं होता। मेहर की रकम लड़की के परिवार की स्थिति के अनुसार मिलती है।
मेहर चार प्रकार का होता है :
1. निश्चित मेहर - यह मेहर विवाह समझौते के समय पति-पत्नी में निश्चित रूप से तय हो जाता है।
2. उचित मेहर - यदि विवाह के समय मेहर तय न हुआ हो तो अदालत मेहर की रकम को तय कर देती है।
3. सत्वर मेहर - यह वह मेहर है जो विवाह से पूर्व व सहवास के पहले पति को चुकाना पड़ता
4. स्थगित मेहर - यह मेहर वह है जो विवाह के समय तय हो जाता है किन्तु विवाह विच्छेद के समय देना पड़ता है।
यह आवश्यक नहीं कि मेहर की रकम एक-बार में ही चुका दी जाये। यदि दोनों पक्षों में सहमति हो तो इसे दो बार में भी दिया जा सकता है।
मुसलमानों में विवाह विच्छेद (तलाक)
मुसलमानों में विवाह विच्छेद सरल है। तलाक के अधिकार पुरुष को अधिक हैं। यही नहीं तलाक अदालत व बिना आदालत दोनों ही तरीकों से हो सकता है। इसी तरह तलाक लिखित व अलिखित दोनों हो सकते हैं, साथ ही विवाह विच्छेद की अनेक विधियों का प्रचलन है। मुस्लिम विवाह-विच्छेद अधिनियम, 1939 के अनुसार तलाक सम्बन्धी पत्नी को अनेक निर्योग्यताओं को समाप्त कर दिया गया है।
बिना अदालत के विवाह-विच्छेद - मुसलमानों में बिना अदालत के तलाक का अधिकार पुरुषों को है। स्त्रियां पति की सहमति के बिना तलाक नहीं दे सकतीं। इस श्रेणी के तलाक लिखित व अलिखित दोनों ही प्रकार के होते हैं। इन दोनों के लिए दोनों पक्ष को सही दिमाग का व बालिग होना चाहिए।
1. अलिखित तलाक -
बिना अदालत अलिखित या मौखिक तलाक के तीन प्रकार हैं -
1. तलाके अहसन - इसमें पत्नी के तुहर (मासिक धर्म) के समय एक बार तलाक की घोषणा की जाती है और इद्दत के समय पति-पत्नी का सहवास नहीं होता।
2. तलाके हसन - इसमें तीनों तुहरों के समय तलाक की घोषणा की जाती है और इद्दत के समय सहवास नहीं होता।
3. तलाके उल-विददत - किसी तुहर के समय एक वाक्य में एक बार तलाक की घोषणा पति करता है। इसके लिए किसी गवाह की भी जरूरत नहीं।
2. लिखित तलाक -
1. इला - अल्लाह की कसम खाकर यदि कोई पुरुष तीन या चार माह तक अपनी पत्नी के साथ सहवास न करे तो तलाक हो जाता है।
2. जिहर - यदि पति अपनी पत्नी की तुलना ऐसी स्त्री से करता है जिससे विवाह निषिद्ध है तो पत्नी पति से प्रायश्चित करने को कह सकती है या अदालत में अर्जी दे सकती है और यदि पति माफी नहीं मांगता तो तलाक हो सकता है।
3. खुला - पत्नी की इच्छा व परस्पर सहमति से तलाक हो सकता है। इसमे पति द्वारा पत्नी को मेहर वापस लौटाना होता है।
4. मुबारत - यह तलाक पति पत्नी की सहमति से होता है। अतः खुला की भांति इसमें क्षतिपूर्ति की आवश्यकता भी नहीं होती।
5. लियान - यदि पति पत्नी पर व्यभिचार का आरोप लगाता है तो पत्नी को न्यायालय से तलाक मांगने का अधिकार है। यदि पति माफी मांग लेता है तो तलाक नहीं होता।
3. अदालत से तलाक
मुस्लिम विवाह-विच्छेद कानून 1939 के अनुसार, तलाक के एकतरफा नियमों में सुधार किया गया और स्त्रियों को तलाक के अधिकार दिये गये। इस कानून के अन्तर्गत निम्नलिखित परिस्थितियों में तलाक हो सकता है :
1. यदि पति के विषय में चार वर्ष तक कोई सूचना न मिले।
2. यदि पति लगातार दो वर्ष तक पत्नी का भरण-पोषण करने में असमर्थ रहा हो।।
3. जब पति को सात वर्ष या इससे अधिक की कारावास की सजा हो जाये।
4. जब उचित कारण के बिना पति अपने वैवाहिक कर्तव्य का पालन तीन वर्ष से नहीं कर रहा
5. विवाह के समय से पति नपुंसक हो।
6. दो वर्ष से पति पागल हो, कोढ़ या अन्य किसी विषाक्त गुप्त रोग से पीड़ित हो।
7. जब 15 वर्ष की उम्र के पहले लड़की की शादी कर दी गई हो और यौन सम्बन्ध स्थापन से पहले 18 वर्ष आयु के पूर्व विवाह का प्रत्याख्यान कर दिया हो और जब पति शारीरिक या आचरण सम्बन्धी क्रूरता का दोषी हो, या बदनाम व्यक्तियों से सम्बन्धित हो, या बदनाम जीवन व्यतीत करता हो, या पत्नी को बदनाम जीवन व्यतीत करने के लिए बाध्य करता हो, या उसकी सम्पत्ति को बेचता हो या अपनी सम्पत्ति के उपभोग से रोकता हो, या पत्नी के धार्मिक कार्यों में बाधा पहुँचाता हो, या अन्य पत्नियों के समकक्ष व्यवहार न करता हो।
8. मुस्लिम कानून द्वारा मान्य किसी आधार पर भी तलाक हो सकता है।
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