राजनीतिक संस्कृति के अर्थ एवं आयाम स्पष्ट कीजिए। ऑमण्ड और पॉवेल के अनुसार - "राजनीतिक संस्कृति किसी राज-व्यवस्था के सदस्यों में राजनीति के प्रति व्यक
राजनीतिक संस्कृति का अर्थ एवं आयाम
राजनीतिक संस्कृति शब्द का विशद्ध रूप से प्रयोग ऑमण्ड एवं पॉवेल द्वारा किया गया। इन्होंने अपनी पुस्तक "तुलनात्मक राजनीति : एक विकासात्मक दृष्टिकोण" में राजनीतिक संस्कृति के विविध पक्षों का विस्तृत विश्लेषण किया है। ऑमण्ड एवं पॉवेल की अवधारणा के अनुसार राजनीतिक संस्कृति का अर्थ एवं आयामों का विश्लेषण निम्नांकित शीर्षकों के माध्यम से किया जा सकता है -
राजनीतिक संस्कृति का अर्थ
ऑमण्ड राजनीतिक संस्कृति को कार्य के प्रति अभिमुखीकरण' कहते हैं। ऑमण्ड और पॉवेल द्वारा संयुक्त रूप से विकासशील देशों की राजनीतिक व्यवस्थओं के अध्ययन में राजनीतिक संस्कृति का व्यापक अर्थ प्रस्तुत किया गया। ऑमण्ड और पॉवेल के अनुसार - "राजनीतिक संस्कृति किसी राज-व्यवस्था के सदस्यों में राजनीति के प्रति व्यक्तिगत अभिवत्तियों और दिग्विन्यासों का प्रतिरूप है।" इस प्रकार ऑमण्ड और पॉवेल द्वारा दिये गए राजनीतिक संस्कृति के अर्थ का व्यापक विश्लेषण किया जाए तो स्पष्ट होता है कि उनके अनुसार राजनीतिक संस्कृति उन मूल्यों, परम्पराओं, मान्यताओं व प्रक्रियाओं का समूह है जोकि किसी भी राजनीतिक व्यवस्था में शासकों व शासितों में उक्त व्यवस्था के प्रति पाए जाते हैं। राजनीतिक व्यवस्था में सामान्य जनता, जनप्रतिनिधि अथवा शासक, प्रशासनिक अधिकारी, कार्मिक इत्यादि सभी राजव्यवस्था के सदस्या होते हैं। इनके राजनीतिक मूल्य, अभिवृत्तियों व विचारधाराओं के समह को ऑमण्ड व पॉवेल के अनुसार, राजनीतिक संस्कृति कहा गया है। अपने विश्लेषण में ऑमण्ड-पॉवेल ने राजनीतिक व्यवस्था के प्रति व्यक्तियों के दृष्टिकोणों को प्रमुख स्थान दिया है।
राजनीतिक संस्कति के आयाम
ऑमण्ड और पॉवेल के अनसार राजनीतिक व्यवस्था के प्रति व्यक्तियों का दृष्टिकोण कुछ तत्वों पर निर्भर करता है, जिन्हें व्यक्ति के सन्दर्भ में 'राजनीतिक संस्कृति के परिवर्त्य' कहते हैं। इन्हीं के आधार पर इसके आयामों का निर्धारण होता है। इस आधार पर राजनीतिक संस्कृति के ऑमण्ड और पॉवेल ने निम्नलिखित तीन आयामों का उल्लेख किया है -
(1) ज्ञानात्मक अभिमुखीकरण - ज्ञानात्मक अभिमुखीकरण व्यक्ति को अपने व्यक्तिगत हितों के माध्यम से राजनीतिक संस्कृति में भाग लेने के लिए तैयार करने का काम करते हैं। इसका आशय यह है कि व्यक्ति राजनीतिक वस्तुओं, घटनाओं, क्रियाओं और विभिन्न राजनीतिक मुद्दों पर कितना और किस प्रकार का ज्ञान रखता है ? यह ज्ञान सही या गलत भी हो सकता है। दोनों ही अवस्थाओं में यह ज्ञान व्यक्ति के राजनीतिक व्यवहार को नियमित करता है।
(2) भावात्मक अभिमुखीकरण - इसका सम्बन्ध व्यक्ति की उन भावनाओं से है जिनके कारण वह राजनीतिक गतिविधियों से लगाव या अलगाव, पसन्दगी तथा नापसन्दगी रखने लगता है। इसी के आधार पर वह राजनीतिक प्रक्रियाओं में सहभागी बनता है या उससे अलग रहता है। इस प्रकार यह भी एक महत्वपूर्ण आयाम है।
(3) मूल्यांकनात्मक अभिमुखीकरण - इसके अन्तर्गत व्यक्ति राजनीतिक संगठन, उसके कार्यो, लक्ष्यों और उपलब्धियों का मूल्यांकन करता है। यदि राजनीतिक संगठन और उसके कार्य उसकी मूल्यांकन की कसौटी पर खरे उतरते हैं तो संगठन के प्रति उसकी सक्रियता और लगाव बढ़ जाता है, अन्यथा इसमें गिरावट आ जाती है। इसमें कठिनाई यह है कि व्यक्ति को हर राजनीतिक गतिविधियों का अर्थ करना होता है। यह अर्थ मूल्यों के आधार पर होता है और ये मूल्य स्वयं उसके हितों से ही निर्धारित हो सकते हैं। अतः कई बार व्यक्ति अपने हित का ध्यान रखने लग जाता है। श्रेष्ठ और विकसित राजनीतिक संस्कृति के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति राष्ट्र और अपने साथी नागरिकों के प्रति सहानुभूति का अनुभव करें, उनके मन और मस्तिष्क में सरकारी कार्यों और निर्णयों से लाभ प्राप्ति की अपनेक्षाएँ हों और यह भाव हो कि सरकारी निर्णय में उनकी भी भूमिका है। इस स्थिति को एक लोकतान्त्रिक लोक-कल्याणकारी व्यवस्था द्वारा ही जन्म दिया जा सकता है।
इस प्रकार ऑमण्ड तथा पॉवेल ने राजनीतिक संस्कृति के विशिष्ट आयामों का सुव्यवस्थित विश्लेषण किया है। इन आयामों के आधार पर राजनीतिक संस्कृति के सही प्रतिमानों का विश्लेषण किया जा सकता है।
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