गीतिकाव्य की परिभाषा, स्वरुप, विशेषताएं और तत्व बताइए: सामान्यतः गेय - मुक्तक ही गीतिकाव्य या प्रगीत काव्य कहलाते हैं। 'गीतिकाव्य' का शाब्दिक अर्थ है
गीतिकाव्य की परिभाषा, स्वरुप, विशेषताएं और तत्व बताइए
सामान्यतः गेय - मुक्तक ही गीतिकाव्य या प्रगीत काव्य कहलाते हैं। 'गीतिकाव्य' का शाब्दिक अर्थ है - वह काव्य, जो गाया जाए। परन्तु प्रत्येक गाए जाने वाले काव्य को गीतिकाव्य नहीं कहा जा सकता। गीतिकाव्य वही होता है, जिसे गाते समय गाने वाला पूर्ण तन्मय हो उठे।
गीतिकाव्य की उत्पत्ति तभी होती है, जब भावों के आदेश से प्रेरित होकर निजी उद्गारों को काव्योजित भाषा में प्रकट किया जाता है। व्यक्ति के व्यक्तित्व और उसकी आंतरिक अनुभूतियों तथा भावों को सजीव भाषा द्वारा साक्षात् कराने की क्षमता ही प्रगीत-काव्य की विशेषता है। व्यक्तित्व, भाच और अनुभूति की 8 तीव्रता उसमें रागात्मकता का समावेश कर देती है। गीतिकाव्य की इन्हीं विशेषताओं को लक्ष्य कर महावेदव वर्मा ने गीतिकाव्य का विवेचन करते हुए लिखी है "सुख - दुख' की भावावेशमयी अवस्था, विशेषकर गिने-चुने शब्दों में स्वी साधना के उपयुक्त चित्रण कर देना ही गीति है।" अतः गीतिकाव्य के तीन प्रधान लक्ष्य हुए (1) रागात्मकता (2) निजीपन और (3) अनुभूति की प्रधानता। दूसरे शब्दों में, हम इन्हें गेयत्व, स्वानुभूति का भाव और कोमल भाव की सघनता भी कह सकते है।
गीतिकाव्य का स्वरूप (Giti Kavya ka Swaroop)
काव्य और संगीत का घनिष्ठ संबंध है। यह संबंध प्राचीन युग से चला आ रहा है। गीतिकाव्य कविता का सबसे अधिक लोकप्रिय प्रकार है। इसे गेय मुक्तक, प्रगीतकाव्य, गीतिकाव्य और अंग्रेजी में लिरिक (Lyric) कहते है। गीतिकाव्य का मूल आधार भाव है। यह भाव किसी प्रेरणा के कारण गीत के रूप में फूट निकलता है। गीतिकाव्य की रचना उसी समय होती है, जब भाव घनीभूत होकर आवेश के साथ काव्योचित भाषा में अभिव्यक्त होते हैं।
गीतिकाव्य कवि के हृदय का स्पंदन है। इसमें कवि प्रेम, विरह, वेदना, हर्ष- विषाद का वर्णन करता है। गीतिकाव्य विषय प्रधान होता है। इसमें कवि अपने सुख-दुख की तीव्रतम अनुभूति को संगीत प्रधान कोमलकांत पदावली द्वारा व्यक्त करता है। डॉ. गणपतिचंद्र गुप्त गीतिकाव्य के स्वरूप पर विचार व्यक्त करते हुए लिखते है कि गीतिकाव्य एक ऐसी लघु आकार एवं मुक्तक शैली में रचित रचना है, जिसमें कवि निजी अनुभूतियों या किसी एक भाव-दशा का प्रकाशन संगीत या लयपूर्ण कोमल पदावली में करता है। महादेवी वर्मा ने गीतिकाव्य को इस प्रकार परिभाषित किया है, 'सुख-दुख की भावावेशमयी अवस्था विशेष को गिने-चुने शब्दों में स्वर साधना के उपयुक्त चित्रण कर देना ही गीत है।' अतः निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि वैयक्तिक सुख-दुखात्मक अनुभूति तीव्र वेग में जब शब्द के रूप में प्रकट होती है तो वह गीत का रूप धारण कर लेती है।
गीतिकाव्य की विशेषताएं (Giti Kavya ki Visheshtaen)
- गीतिकाव्य में व्यक्तिगत अनुभूति की प्रमुखता रहती है।
- गीतिकाव्य का संबंध बुध्दि से न होकर हृदय से रहता है।
- गीतिकाव्य में भावावेश की प्रबलता रहती है।
- गीतिकाव्य में गेयता और संगीतात्मकता होती है।
- गीतिकाव्य की भाषा सरल, मधुर और कोमल होती है।
- गीतिकाव्य में संक्षिप्तता होती है।
गीतिकाव्य के तत्व (Giti Kavya ke Tatva)
- वैयक्तिकता
- तीव्र भावावेश
- संगीतात्मकता
- संक्षिप्तता
- कोमलकान्त पदावली
(1) वैयक्तिकता :- गीतिकाव्य व्यक्तिप्रधान काव्य माना जाता है। गीतिकाव्य कवि की निजी सुख-दुखमयी अभिव्यक्ति है। गीतिकाव्य में निजी भावनाओं का प्रकाशन होता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं की गीत केवल वैयक्तिक सुख-दुख की अभिव्यक्ति है। गीत में अभिव्यक्त पराया दुख भी अपना लगता है और अपना पराया।
(2) तीव्र भावावेश :- भावानुभूति के बिना गीतिकाव्य काव्य का निर्माण हो ही नहीं सकता। कवि की तीव्र भावनाएँ गीत बनकर अभिव्यक्त होती है।
(3) संगीतात्मकता :- गीतिकाव्य में संगीतात्मकता और गेयता का विशेष स्थान होता है। इससे गीत अधिक प्रभावी होता है। गीत में छंद एवं लय का निर्वाह इस प्रकार हो कि उसे गाया जा सके।
(4) संक्षिप्तता :- गीतिकाव्य में संक्षिप्तता का होना अनिवार्य है। अनुभूति की आवेशमयी स्थिति एवं तीव्रतम अवस्था थोड़े समय तक ही रह सकती है। अतः अनुभूति की अखंडता और प्रभाव के लिए संक्षिप्तता बहुत ही आवश्यक है।
(5) कोमलकान्त पदावली :- गीतिकाव्य में कोमल भावनाओं के अनुरूप कोमल, सुंदर, प्रवाहपूर्ण, प्रभावशाली एवं कलात्मक भाषा शैली होती है। जिसके कारण गीतों में रोचकता निर्माण होती है।
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