सीमा-रेखा एकांकी की समीक्षा : सीमा-रेखा विष्णु प्रभाकर की एक राष्ट्रीय चेतनाप्रधान एकांकी है। इसकी कथावस्तु आज के लोकतंत्र की विसंगतियों के बीच से ली गई है। राष्ट्रीय चेतना के अभाव में आंदोलन व राष्ट्रीय संपत्ति की हानि चिंता का विषय बन चुकी है। कथावस्तु का संगठन एक ही परिवार के चार भाइयों के स्वार्थ-संघर्ष से हुआ है। चारों भाई अलग-अलग वर्गों के प्रतिनिधि हैं तथा उनकी सोच भी अलग-अलग है। कथावस्तु का आरंभ उपमंत्री शरतचंद्र की बैठक से होता है। उन्हें फोन पर आंदोलनकारियों की बेकाबू भीड़ पर पुलिस द्वारा गोली चलाने की सूचना मिलती है। जिसमें उनके बड़े भाई का १० वर्षीय पुत्र अरविंद मारा जाता है। उन्हें २० लोगों के घायल व ५ लोगों के मारे जाने की सूचना मिलती है।
सीमा-रेखा एकांकी की समीक्षा Seemarekha Ekanki-ki Samiksha
सीमा-रेखा विष्णु प्रभाकर की एक राष्ट्रीय चेतनाप्रधान एकांकी है। इसकी कथावस्तु आज के लोकतंत्र की विसंगतियों के बीच से ली गई है। राष्ट्रीय चेतना के अभाव में आंदोलन व राष्ट्रीय संपत्ति की हानि चिंता का विषय बन चुकी है। कथावस्तु का संगठन एक ही परिवार के चार भाइयों के स्वार्थ-संघर्ष से हुआ है। चारों भाई अलग-अलग वर्गों के प्रतिनिधि हैं तथा उनकी सोच भी अलग-अलग है।
आरंभ— कथावस्तु का आरंभ उपमंत्री शरतचंद्र की बैठक से होता है। उन्हें फोन पर आंदोलनकारियों की बेकाबू भीड़ पर पुलिस द्वारा गोली चलाने की सूचना मिलती है। जिसमें उनके बड़े भाई का १० वर्षीय पुत्र अरविंद मारा जाता है। उन्हें २० लोगों के घायल व ५ लोगों के मारे जाने की सूचना मिलती है।
स्वाभाविक विकास—अरविंद की मृत्यु व भीड़ के अनियंत्रित होने के साथ कथानक का विकास होता है। जिससे सरकार, पुलिस, विपक्ष व जनता के बीच का संघर्ष सामने आता है। पुलिस कप्तान विजय और भीड़ को नियंत्रित करने के लिए जाते हैं।
चरम सीमा—विजय और सुभाष भीड़ को नियंत्रित करने का प्रयास करते हैं। विजय भीड़ पर गोली चलाने आदेश नहीं देता। भीड़ संतुलन खो बैठती है। वह ‘अरविंद कहाँ है’ चिल्लाता है। विजय भीड़ से कहता है– ‘अरविंद को मारा है, तुम मुझसे इसका बदला लो’। विजय और सुभाष दोनों बेकाबू भीड़ में कुचलकर मारे जाते हैं। यही पर एकांकी की चरम सीमा है।
अंत— एक ही परिवार के तीन लोगों की मृत्यु से भीड़ शांत हो जाती है। इन तीनों की मृत्यु एक घर की नहीं राष्ट्र क्षति है। अंत में एकांकी यही संदेश देता है कि, ‘‘जनतंत्र में सरकार और जनता के बीच विभाजक रेखा होती।’’
भाषा-शैली— एकांकी की भाषा सरल, सरस, व्यावहारिक एवं वातावरण के अनुकूल है। उर्दू के शब्दों के प्रयोग से इसमें स्वाभाविकता व गतिशीलता उत्पन्न हो गई है। संवाद सरल, संक्षिप्त व कथा के अनुरूप हैं। संवादों के द्वारा एकांकीकार ने पात्रों के मनोभावों को सफलतापूर्वक व्यक्त किया है। एकांकी में आवश्यकता के अनुरूप भावात्मक, विचारात्मक, संवादात्मक आदि शैलियों का प्रयोग हुआ है।
संकलन-त्रय— एकांकी में स्थान, समय तथा कार्य (संकलन-त्रय) का सुंदर संकलन है। संपूर्ण एकांकी का कथानक उपमंत्री शरतचंद्र की बैठक में कुछ समय में घटित हो जाता है। अन्य घटनाएँ सूचना के रूप में प्रस्तुत की गई हैं। एकांकी में प्रस्तुत सभी घटनाएँ एक दूसरे से संबंधित हैं।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि ‘सीमा-रेखा’ एकांकी कला की दृष्टि से पूर्ण रूप से सफल है। एकांकी के सभी
तत्वों का इस एकांकी में निर्वाह किया गया है।
bahut khub...
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