तेनालीराम और रसगुल्ले की जड़। Tenali Raman Stories in Hindi
विजयनगर की सुख-समृद्धि का कारण
वहां की सरल व्यापार नीतियां थीं। हिंदुस्तान में ही नहीं कि ईरान और बुखारा जैसे
देशों से भी महाराज की व्यापार संधि थी। एक बार ईरान का व्यापारी मुबारक हुसैन
विजयनगर की यात्रा पर आया। महाराज कृष्णदेव राय ने उसका खूब स्वागत किया, फिर सम्मान सहित
उसे राजमहल में ठहराया। कई सेवक उसकी सेवा सत्कार के लिए तैनात कर दिए गए। एक दिन
रात्रि में भोजन के बाद महाराज ने हुसैन के लिए चांदी की थाली में रसगुल्ले भरकर
भेजें।
महाराज इस इंतजार में थे कि सेवक
आकर कहेगा कि हुसैन को रसगुल्ले बड़े स्वादिष्ट लगे और उन्होंने रोज-रोज भोजन के
बाद रसगुल्ले भेजने की इच्छा व्यक्त की है, परंतु जब सेवक वापस आया तो
रसगुल्लों से भरी तस्तरी उसके हाथों में थी। महाराज सहित सभी दरबारी उसकी सूरत देखने
लगे।
महाराज के पूछने पर सेवक ने
बताया, “अन्नदाता! हुसैन ने एक भी रसगुल्ला नहीं खाया और यह कहकर वापस भेज दिया कि
हमें रसगुल्लों की जड़ चाहिए।”
महाराज हैरान रह गए और बोले, “रसगुल्लों की
जड़, यह क्या होता है?” अगले दिन दरबार
में महाराज ने सभी दरबारियों के सामने अपनी समस्या रखी और बोले “बड़े दुख की बात होगी यदि हम हुसैन की इच्छा पूरी ना कर पाए। क्या आप
लोगों में से कोई भी इस समस्या को हल कर सकता है?” सभी
दरबारी एक दूसरे का मुंह देखने लगे।
हिम्मत करके पुरोहित बोला, “महाराज। ईरान
में ऐसी कोई चीज होगी होती होगी, मगर हिंदुस्तान में नहीं।
हमें उसे साफ-साफ बता देना चाहिए कि रसगुल्लों की कोई जगह नहीं होती।” तभी तेनालीराम बोला, “कैसे नहीं होती पुरोहित जी?
हमारे हिंदुस्तान में ही होती है। बड़े अफसोस की बात है कि सबसे
अधिक रसगुल्ले खाने वाले पुरोहित जी को रसगुल्ले की जड़ का भी पता नहीं।”
राजपुरोहित जी यह सुनकर तिलमिला
गए। महाराज ने तेनालीराम से रसगुल्ले की जड़ हाजिर करने को कहा। तेनालीराम फौरन
उठकर चले गए। एक घंटा बाद वे चांदी की थाली को कपड़े से ढके हुए दरबार में आए और
बोले, “महाराज! रसगुल्ले की जड़ हाजिर है, फौरन मेहमान की
सेवा में भेजी जाए।” सारा दरबार हैरान था, सभी देखना चाहते थे की रसगुल्ले की जड़ कैसी होती है किंतु तेनालीराम ने
स्पष्ट इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि वह पहले रसगुल्ले की जड़ मेहमान को
दिखाएंगे बाद में किसी और को।
महाराज स्वयं रसगुल्लों की जड़
देखना चाहते थे। अतः उन्होंने एक मंत्री को आदेश दिया कि मेहमान को यही बुलाया
जाए। मंत्री स्वयं उसे लेने गया। हुसैन के आने पर महाराज ने सेवक को इशारा किया।
सेवक ने तेनालीराम के हाथ से थाली लेकर मेहमान के आगे रख दी। हुसैन ने थाली को
देखते ही कहा, “वाह! वाह! हिंदुस्तान में यही वह चीज है जो ईरान में नहीं मिलती।”
सभी दरबारी फटी-फटी आंखों से उस वस्तु
को देख रहे थे। थाली में छिले हुए गन्ने के छोटे-छोटे टुकड़े थे। और उस दिन सम्राट
तेनालीराम से इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने अपने गले की बेशकीमती माला उतारकर उसके
गले में डाल दी। हुसैन ने भी खुश होकर उसे एक ईरानी कालीन उपहार में दिया।
0 comments: