पंचतंत्र की कहानी उल्लुओं की बस्ती। Panchtantra Story in Hindi: एक वृक्ष पर एक उल्लू रहता था। उल्लू को दिन में कुछ भी दिखाई नहीं देता था। उल्लू दिनभर अपने घोंसले में छिपा रहता था। जब रात होती थी, तो शिकार के लिए बाहर निकलता था। गर्मी के दिन थे, दोपहर का समय। आकाश में सूर्य आग के गोले की तरह चमक रहा था। बड़े जोरों की गर्मी पड़ रही थी। कहीं से उड़ता हुआ एक हँस आया और वृक्ष की डाल पर बैठ कर बोला, ‘बड़ी भीषण गर्मी है। आकाश में सूर्य आग के गोले की तरह चमक रहा है।’
पंचतंत्र की कहानी उल्लुओं की बस्ती। Panchtantra Story in Hindi
एक वृक्ष पर एक उल्लू रहता था। उल्लू को दिन में कुछ भी दिखाई नहीं
देता था। उल्लू दिनभर अपने घोंसले में छिपा रहता था। जब रात होती थी, तो शिकार के लिए बाहर
निकलता था। गर्मी के दिन थे, दोपहर का
समय। आकाश में सूर्य आग के गोले की तरह चमक रहा था। बड़े जोरों की गर्मी पड़ रही
थी। कहीं से उड़ता हुआ एक हँस आया और वृक्ष की डाल पर बैठ कर बोला, ‘बड़ी भीषण गर्मी है। आकाश
में सूर्य आग के गोले की तरह चमक रहा है।’
हँस की
बात उल्लू के कानों में भी पड़ी। वह बोल उठा, ‘क्या कह रहे हो ?
सूर्य चमक रहा है ?
बिल्कुल झूठ। चंद्रमा के चमकने की बात कहते तो मान भी लेता।‘ हँस बोला, ‘चंद्रमा तो दिन में चमकता
नहीं, रात में
चमकता है। इस समय दिन है। दिन में सूर्य ही चमकता है। जब सूरज का प्रकाश तीव्र रूप
से फैल जाता है तो भयानक गर्मी पड़ती है। आज सचमुच बड़ी भयानक गर्मी पड़ रही है।‘
उल्लू
मजाक उड़ाते हुए हंसा और बोला।,
‘अभी तो तुम सूर्य की बात कर रहे थे, अब सूर्य के प्रकाश की बात करने लगे। बड़े मूर्ख
लग रहे हो। अरे भाई, ना सूर्य
है, ना
प्रकाश। यह तो हमारे मन का भ्रम है।‘ हँस ने उल्लू को समझाने का बड़ा प्रयास किया कि आकाश में सूर्य चमक
रहा है और उसके कारण गर्मी पड़ रही है, पर उल्लू अपनी बात पर अड़ा रहा। हँस के अधिक समझाने पर भी वह यही
कहता रहा कि ना तो सूर्य है, ना ही
सूर्य का प्रकाश है और ना ही गर्मी पड़ रही है।
उल्लू और
हँस जब देर तक अपनी-अपनी बात पर अड़े रहे, तो उल्लू बोला की पास ही में दूसरे पेड़ पर मेरे सैकड़ों जाति भाई
रहते हैं। वह बड़े बुद्धिमान हैं। चलो, उनके पास चलकर निर्णय कराएं कि आकाश में सूर्य है या नहीं।‘ हँस ने उल्लू की बात मान
ली। उल्लू उसे साथ लेकर दूसरे पेड़ पर गया। दूसरे पेड़ पर सैकड़ों उल्लू रहते थे।
उल्लू ने अपने भाइयों को एकत्र करके कहा, ‘भाइयों, इस हँस
का कहना है, इस समय
दिन है और आकाश में सूर्य चमक रहा है। आप लोग ही निर्णय करें, इस समय दिन है या नहीं, और आकाश में सूर्य चमक रहा
है या नहीं।‘
उल्लू की
बात सुनकर उसके सभी जाति भाई बोले कि क्या कह रहे हो आकाश में सूर्य चमक रहा है ? बिल्कुल अंधे हो। हमारी
बस्ती में ऐसी झूठी बात का प्रचार मत करो।‘ पर हँस चुप नहीं रह सका, बोला, ‘मैं झूठ
नहीं बोल रहा हूं। इस समय दिन है और आकाश में सूर्य चमक रहा है।‘ हँस की बात सुनकर सभी उल्लू
क्रोधित हो उठे और हँस को मारने के लिए झपट पड़े। हँस अपने प्राण बचा कर भाग गया।
खुशकिस्मती थी की दिन होने के कारण उन लोगों को कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। यदि
दिखाई पड़ता, तो वह
हंस को अवश्य मार डालते। उधर दिन होने के कारण हंस को दिखाई पड़ रहा था। उसने
सरलता से भागकर उल्लूओं से अपनी रक्षा की।
हँस ने
बड़े दुख के साथ अपने आप से ही कहा, ‘यह बात सच है कि इस समय दिन है और आकाश में सूर्य चमक रहा है, पर उन लोगों ने संख्या में
अधिक होने के कारण सच को भी झूठ से हरा दिया।' जहां मूर्खों का बहुमत होता है, वहां इसी प्रकार सत्य को भी
असत्य सिद्ध कर दिया जाता है।
कहानी से
शिक्षा :
मूर्ख
मनुष्य विद्वान की बात को भी सच नहीं मानता।
मूर्खों
की सभा में सत्य को भी असत्य ठहरा दिया जाता है।
मूर्खों
की बड़ाई से ना तो प्रसन्न होना चाहिए और ना ही बुराई करने से अप्रसन्न होना चाहिए, क्योंकि मूर्ख तो मूर्ख ही
होते हैं।
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