धोखेबाजी का फल - पंचतंत्र की कहानियाँ : एक तालाब के किनारे एक सारस रहता था। सारस बड़ा मक्कार था। वह प्रतिदिन तालाब की मछलियों को खाया करता और बड़े सुख के साथ जीवन व्यतीत करता था। उसे जब भी भूख लगती, तालाब के किनारे पहुंच जाता और पानी में से मछलियों को पकड़-पकड़ कर खा लिया करता था। इस तरह कई साल बीत गए। धीरे-धीरे सारस भी बूढ़ा होने लगा। उसके शरीर का बल घटने लगा। वह अब पहले की तरह मछलियों को पकड़ नहीं पाता था। जब भी मछलियों को पकड़ने के लिए चोंच बढ़ाता, मछलियां उछलकर भाग जाया करती थी। सारस चिंतित हो उठा, वह सोचने लगा इस तरह कैसे काम चलेगा? कोई उपाय करना पड़ेगा, जिससे भूखों मरने की नौबत ना आए।
धोखेबाजी का फल - पंचतंत्र की कहानियाँ
एक तालाब के किनारे एक सारस रहता था। सारस बड़ा मक्कार था। वह प्रतिदिन तालाब की मछलियों को खाया करता और बड़े सुख के साथ जीवन व्यतीत करता था। उसे जब भी भूख लगती, तालाब के किनारे पहुंच जाता और पानी में से मछलियों को पकड़-पकड़ कर खा लिया करता था।
इस तरह कई साल बीत गए। धीरे-धीरे सारस भी बूढ़ा होने लगा। उसके शरीर का बल घटने लगा। वह अब पहले की तरह मछलियों को पकड़ नहीं पाता था। जब भी मछलियों को पकड़ने के लिए चोंच बढ़ाता, मछलियां उछलकर भाग जाया करती थी। सारस चिंतित हो उठा, वह सोचने लगा इस तरह कैसे काम चलेगा? कोई उपाय करना पड़ेगा, जिससे भूखों मरने की नौबत ना आए।
सारस मक्कार तो था ही, उसने एक उपाय खोज निकाला सवेरे का समय था, सारस रोनी सूरत बनाकर तालाब के किनारे जा बैठा। ऐसा लग रहा था मानो, बड़ा दुखी हो। तालाब में रहने वाले एक केकड़े ने जब सारस को उदास देखा, तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने सारस के पास जाकर उससे पूछा, “क्या बात है चाचाजी, आज आप उदास क्यों हैं? आज आप मछलियों को भी पकड़ नहीं रहे हैं?
सारस ने बड़े दुख के साथ कहा, “क्या करूं भाई, आज मैं सचमुच बड़ा दुख दुखी हूं। मैं इतने दिनों से तालाब की मछलियों को खाता आ रहा हूं। आज मैंने मछलियों के बारे में बड़ी बुरी खबर सुनी है। उसे खबर ने हीं तो मेरे मन को दुखी कर दिया है। केकड़े ने कहा, “चाचा जी आपने कौन सी बुरी खबर सुनी है? दया करके मुझे भी बताइए।
सारस बोला, “थोड़ी देर पहले कुछ लोग यहां आए थे। वह कह रहे थे कि तालाब को मिट्टी से पाट दिया जाएगा और उस पर खेती की जाएगी। यदि तालाब को मिट्टी से पाट दिया जाएगा, तो सभी मछलियां मर जाएंगी। मछलियों के मरने के दुख से ही मेरा मन बड़ा दुखी है। यह सुनकर केकड़ा भी बड़ा दुखी हुआ। बोला, “सचमुच यह तो बुरी खबर है चाचाजी।
केकड़े ने तालाब की मछलियों को भी यह खबर सुनाई। मछलियाँ व्याकुल हो रोने-धोने लगी। मछलियां रोती हुई सारस के पास पहुँचीं और आंसू बहाते हुए बोली, “तालाब के पाट दिए जाने पर हम सब मर जाएंगे। दया करके हम सबका उद्धार करो। हम सबकी जान बचाओ।” सारस दुख के साथ बोला, “सचमुच बड़ा संकट आ गया है। किया जाए तो क्या किया जाए? तुम सब संख्या में अधिक हो और मैं अकेला हूं। मैं अकेला तुम सब की जान कैसे बचा सकता हूं?”
मछलियां रोने लगी। रो-रो कर कहने लगीं, “चाहे जैसे भी हो तुम्हें हमारी जान बचाने ही पड़ेगी।” सारस बोला, “अच्छा ठीक है भाई, मैं तुम सब को बारी-बारी से दूसरे तालाब में पहुंचा दूंगा। चलो सब तैयार हो जाओ।” मछलियां आपस में झगड़ने लगीं। एक कहती थी मैं पहले जाऊंगी और दूसरी कहती थी नहीं मैं पहले जाऊंगी। इस तरह सभी मछलियां एक दूसरे से पहले जाने के लिए उतावली हो उठीं।
सारस मछलियों को शांत करते हुए बोला, “अरे-अरे, तुम सब आपस में झगड़ क्यों रही हो? मैं बारी-बारी से सबको पहुंचा दूंगा।” सारस अपनी बात खत्म करके चार-पांच मछलियों को चोंच में दबाकर उड़ चला, पर वह उन्हें किसी दूसरे तालाब में नहीं ले गया। मार्ग में एक चट्टान पर जा बैठा और उन्हें खा कर फिर तालाब के किनारे जा पहुंचा। सारस ने तालाब के किनारे पहुंचकर कुछ देर विश्राम किया। जब भूख लगी तो फिर मछलियों के पास जा पहुंचा और पहले की ही तरह 4 से 5 मछलियों को चोंच में दबाकर उड़ चला। उन मछलियों को भी उसने पहले की तरह चट्टान पर रख कर बैठ कर खा डाला। वह हामेशा चार से पांच मछलियों को चोंच में दबाकर उस चट्टान पर आता और उन्हें खा जाता। इस प्रकार सारस ने सैकड़ों मछलियों का काम तमाम कर दिया।
तालाब में एक केकड़ा ही बचा था। सारस जब सैकड़ों मछलियों को दूसरे तालाब में पहुंचाने के बहाने मारकर खा चुका, तो केकड़े में सारस से कहा, “चाचा जी आप सैकड़ों मछलियों को दूसरे तालाब में पहुंचा चुके हो। दया करके अब मुझे भी पहुंचा दो। सारस ने कुछ सोचा और बोला, “चलो इस बार केकड़े को भी ले चलो। मछलियां तो बहुत खा चुका हूं, अब केकड़े को भी खाना चाहिए।”
सारस केकड़े को चोंच में दबाकर उड़ चला। जब चट्टान के पास पहुंचा, तो नीचे उतरने लगा। केकड़े को आश्चर्य हुआ। उसने सोचा यहां कोई तालाब दिखाई नहीं दे रहा है, फिर यह सारस नीचे क्यों उतर रहा है? केकड़ा बोला, “चाचा जी यहां तो कोई तालाब दिखाई नहीं पड़ रहा है, फिर आप नीचे क्यों उतर रहे हो?”
सारस ने उत्तर दिया, “हां कोई तालाब तो नहीं है, पर चट्टान तो है। देख रहे हो ना उस चट्टान को? मैं तुम्हें उसी चट्टान पर ले चल रहा हूं। चट्टान पर पहुंचने पर तुम्हें सब मालूम हो जाएगा। केकड़े ने चट्टान की ओर देखा। चट्टान के आसपास मछलियों की हड्डियों का ढेर लगा था। केकड़े को समझने में देर नहीं लगी कि सारस धोखेबाज है। यह मछलियों को दूसरे तालाब में पहुंचाने के बहाने उसी चट्टान पर मारकर खा गया है। यह हड्डियां मछलियों की है। यह मुझे भी इस चट्टान पर बैठ कर मार कर खा जाएगा।
बस फिर क्या था केकड़े ने अपने पंजे सारस की गर्दन में गड़ाने आरंभ कर दिए। सारस फड़फड़ाने लगा और केकड़े को जमीन पर फेंकने का प्रयास करने लगा, पर केकड़ा उसकी गर्दन से चिपक गया था। वह रह-रहकर अपने पंजों उसकी गर्दन में गड़ाने लगा। सारस पीड़ा से व्याकुल होकर धरती पर गिर पड़ा और मृत्यु के मुंह में चला गया। केकड़ा धीरे-धीरे वापस अपने तालाब में जा पहुंचा।
मछलियों ने केकड़े को देखकर पूछा, “क्यों भाई तुम्हें तो सारस दूसरे तालाब ले गया था? केकड़े ने उत्तर दिया, “मछलियों ईश्वर को धन्यवाद दो, तुम सब मारी जाने से बच गई। सारस बड़ा धोखेबाज था। वह दूसरे तालाब में पहुंचाने के बहाने मछलियों को ले जाता था और एक चट्टान पर बैठ कर उन्हें निगल जाता था। वह जितनी मछलियों को ले गया था, सब को मारकर खा गया है।
वह मुझे भी खा जाना चाहता था, पर मैं उसके चाल को समझ गया। मैंने अपने पंजे सारस की गर्दन में गड़ाकर उसे मार डाला। धोखे से मछलियों के मारे जाने की खबर सुनकर सभी मछलियां बहुत दुखी हुई, पर धोखेबाज सारस की मृत्यु की खबर से वह प्रसन्न भी थीं। उन्होंने केकड़े को धन्यवाद तो दिया ही, धोखेबाज सारस की मृत्यु पर हर्ष भी मनाया।
कहानी से शिक्षा :
- कपट का व्यापार सदा नहीं चलता।
- जो दूसरों को धोखा देता है उसे एक ना एक दिन सजा होनी ही पड़ती है।
- जो धोखेबाज को मारता है वह यश का भागी होता है।
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