परीक्षा भवन का दृश्य पर निबंध - Pariksha Bhavan ka Drishya Essay in Hindi: दो वर्ष पूर्व मैंने दसवीं कक्षा की बोर्ड की परीक्षा दी थी। उस समय 'परीक्षा'
परीक्षा भवन का दृश्य पर निबंध - Pariksha Bhavan ka Drishya Essay in Hindi
परीक्षा भवन का दृश्य पर निबंध: दो वर्ष पूर्व मैंने दसवीं कक्षा की बोर्ड की परीक्षा दी थी। उस समय 'परीक्षा' के साथ 'बोर्ड' शीर्षक ने इतना अधिक भयभीत कर रखा था कि प्रश्नपत्र और उत्तर पुस्तिका के अतिरिक्त परीक्षा भवन में अन्य कुछ सूझता ही नहीं था । अब पुनः बोर्ड की परीक्षा देने का समय आ गया है। पूर्व अनुभव के कारण इस बार 'बोर्ड की परीक्षा' के भूत ने कम ही भयभीत किया। मैंने परीक्षा के दौरान परीक्षा भवन का जायजा भी लेने का निश्चय किया। सोचा इस अनुभव को कलमबंद करके रख लूँ तो छपवाकर दूसरों को लाभान्वित करने का पुण्य कमा लूँगा।
प्रत्येक वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष लगता रहा कि अभिभावक मेरे पीछे हाथ धोकर ही पड़ गए थे। पूरा वर्ष पढ़ाई की व्यस्तता में ही बीता। घर के बड़ों के साथ-साथ छोटे भी पढ़ने की सलाह देने से नहीं चूके। माँ-पिता जी सदा यही कहते कि विद्यालय का अंतिम वर्ष है, यदि इस परीक्षा में सर्वोत्तम अंक आ गए तो जीवन-लक्ष्य को पाने में सरलता होगी। मनचाहे पाठ्यक्रम में आसानी से प्रवेश हो जाएगा, 'योग्यता - सूची' में नाम आ जाएगा... इत्यादि । मैंने भी उनके सुझाव को नतमस्तक हो शिरोधार्य किया । अपना अधिक-से-अधिक समय पढ़कर परीक्षाओं में सर्वोत्तम अंक प्राप्त करके, जहाँ अपने अभिभावकों को प्रसन्न किया वहीं बोर्ड की योग्यता सूची में आकर विद्यालय का नाम ऊँचा करने का मूक, किंतु विश्वासपूर्ण आश्वासन अपने अध्यापकों को दिया। इसी प्रकार पढ़ने में समय कैसे हवा हो गया, भान ही नहीं हुआ।
जिस दिन कक्षा में परीक्षा की तिथियों की घोषणा की गई तो मन भयभीत हो उठा, मैं पसीने-पसीने हो गया, अवाक् हो, हम छात्र एक-दूसरे का मुँह ताकते रह गए। परीक्षा के लिए मैं पूर्णतया तैयार था, पर, परीक्षा का नाम सुनते ही अच्छे- अच्छों के छक्के छूट जाते हैं। परीक्षा से पलायन का कोई रास्ता नहीं था। हम सभी साथियों ने 'कारगिल के इस युद्ध' को बहादुरी, समझदारी एवं कठोर परिश्रम करके जीतने का प्रण किया। कहा भी गया है कि आती हुई मुसीबत का सामना यदि हँस कर किया जाए तो वह आसानी से टल जाती है। अब मैंने परीक्षा की तिथियों के अनुसार विषयों को 'पढ़ना' आरंभ कर दिया। इस प्रकार शरीर में भय के कंपन विशेष ने जो घर कर लिया था, उसे इस प्रकार पढ़कर कम करने में मैं सफल रहा।
धीरे-धीरे वह समय भी आ पहुँचा जिस दिन मुझे परीक्षा देने जाना था। सारी रात परीक्षा के भूत ने रूप बदल-बदलकर मुझे डराया था। इसलिए भोर में ही आँख खुल गईं। माँ ने जब मुझे उठने को पुकारा, उस समय तक मैं उस दिन के विषय को पूर्णतया समाप्त कर आश्वस्त हो चुका था कि प्रथम पर्चा तो बहुत ही अच्छा जाएगा इसलिए मैंने मुस्कराकर माँ का स्वागत किया, माँ भी मुझे देख प्रसन्न हो गईं।
परीक्षा के लिए निर्देशित सभी आवश्यक सामग्री मैंने रात को ही तैयार कर ली थी। घर से चलने के पूर्व माँ ने मुझे मीठी एवं स्वादिष्ट खीर खिलाई। मनपसंद खीर खाकर मेरा मन भी प्रसन्न हो गया। माता-पिता के साथ परीक्षा से एक घंटा पूर्व ही मैं घर से निकला।
परीक्षा केंद्र घर से पाँच किलोमीटर दूर था। जहाँ पहुँचने में मुझे लगभग दस मिनट लगे। वहाँ जाकर देखा तो मेरे अनेक साथी पहले ही पहुँच चुके थे। प्रथम परीक्षा अंग्रेजी विषय की थी, इसलिए हमारी अंग्रेजी विषय की अध्यापिका भी वहाँ आ गईं थीं। सभी बच्चे उन्हें घेरे अपनी विभिन्न शंकाओं का निवारण कर रहे थे। मैंने भी उनके चरण-स्पर्श करके उन्हें प्रणाम किया। अध्यापिका जी सौम्य एवं शांत भाव से हम छात्रों की शंकाओं को दूर कर रहीं थी साथ ही साथ परीक्षा भवन के अनेक नियमों के पालन पर जोर देकर अनेक निर्देश दे रही थीं।
निर्धारित समय से आधा घंटा पूर्व सभी परीक्षार्थियों को परीक्षा केंद्र में प्रवेश करने का आदेश प्राप्त हुआ। विद्यालय के दो अध्यापक द्वार पर हमारे प्रवेश पत्रों की जांच कर रहे थे। मेरे एक मित्र को प्रवेश पत्र न होने के कारण प्रवेश की अनुमति नहीं मिली। मैं भी अन्य साथियों के साथ परीक्षा भवन में प्रवेश कर गया। रह-रहकर मुझे अपने साथी की याद आ रही थी, जो रुआंसा हो एक ओर खड़ा था। हमारी अंग्रेजी विषय की अध्यापिका की विश्वसनीयता पर उसे परीक्षा भवन में प्रवेश की अनुमति मिल गई।
परीक्षा भवन में प्रवेश करने पर वहाँ की सुव्यवस्था देख हम सभी चकित रह गए। बैठने की समुचित एवं आरामदायक व्यवस्था थी। बैंचों पर सभी परीक्षार्थियों के अनुक्रमांक स्पष्ट अंकों में लिखे थे, भवन में प्रकाश तथा ताजी व शीतल वायु की समुचित व्यवस्था थी। इस केंद्र में अध्यापकगणों द्वारा छात्रों का मार्गदर्शन तथा समय-समय पर उद्घोषणा का निर्देशन प्रशंसनीय था।
परीक्षा से पूर्व एक अज्ञात भय ने छात्रों को घेर रखा था कि न जाने प्रश्न-पत्र कैसा होगा ? सभी एक-दूसरे को उत्तर दिखाने अथवा बताने का अनुरोध कर रहे थे। मेरे पीछे बैठे मेरे साथी ने भी मुझे उत्तर बताने का निवेदन किया, मैं आश्वासन कैसे देता, मैं तो स्वयं ही भयभीत था। इतने में उत्तर पुस्तिका बाँटने की उद्घोषणा हुई तो चारों ओर सन्नाटा छा गया। सभी अध्यापकों ने बड़ी तत्परता से उत्तर पुस्तिकाएँ बाँटी और प्रत्येक परीक्षार्थी के पास जा-जाकर औपचारिकताएँ पूरी करने में सहायता दी। औपचारिकताएँ पूर्ण करने के बाद मैंने आँखें बंद कीं और ईश्वर को याद किया कि वे इस समय मेरी मदद करें और जो कुछ स्मरण किया था, पढ़ा था, सब याद आ जाए। समय से 10-15 मिनट पूर्व हमें प्रश्न- पत्र दिए गए। तीन अलग कोड नंबरों में प्रश्न-पत्र थे। अपने प्रश्न-पत्र को प्राप्त कर सबसे पहले मैंने मन-ही-मन अपने गुरुओं के और अपने माता- पिता के चरण स्पर्श किए। इसके बाद प्रश्न-पत्र पर अपना अनुक्रमांक व अपना नाम लिखा। फिर एक-एक करके सभी प्रश्न पढ़ डाले प्रश्न-पत्र पढ़कर मेरा दिल बल्लियों उछलने लगा। मैंने प्रसन्नता से अपने मित्रों के चेहरों पर दृष्टिपात किया तो पाया कि कुछ साथी तो प्रसन्न थे पर अनेकों के चेहरे लटके हुए तथा उदास थे। वे इधर-उधर नज़रें दौड़ा रहे थे, पर अध्यापकों की पैनी दृष्टि सब कुछ भाँप रही थी।
निर्धारित समय पर एक लंबा अलार्म बजा और परीक्षा आरंभ करने की घोषण की गई। सभी परीक्षार्थी उत्तर लिखने में व्यस्त हो गए। केवल अध्यापकों के आने-जाने की ध्वनि ही सुनाई दे रही थी। मैं भी अपनी उत्तर पुस्तिका में सिर गाड़कर बैठ गया। कई बार अपने साथियों की 'शी- शी' की ध्वनि सुन मैं अनजान बना रहा कि कहीं इनके साथ मैं भी धरा न जाऊँ। एक-दो बार पानी पीकर ताज़गी प्राप्त करने की इच्छा हुई पर, समयाभाव के डर से मैंने इस इच्छा को तिलांजलि दे दी। सभी प्रश्नों के उत्तर मुझे आते थे इसलिए अनवरत, अविराम तीन घंटे लिखता रहा।
सभी प्रश्नोत्तर समाप्त करने के पश्चात् उन उत्तरों को पुनः दोहराया, प्रश्नों के अंकों की जाँच की, वर्तनी आदि की जाँच की अर्थात् अंक गँवाने का मैं कोई अवसर छोड़ना नहीं चाहता था। समय-समय पर उद्घोषणा के अनुसार मैं अपनी आज की परीक्षा से पाँच मिनट पूर्व ही निबट गया था। इस अंतिम घड़ी में कुछ छात्र कुछ जानने की आशा में इधर-उधर देख रहे थे। ठीक समय पर पुनः एक लंबा अलार्म बजा। सभी अध्यापक सधे हुए कदमों एवं हाथों से अनुक्रमांक जाँच कर उत्तरपुस्तिका एकत्रित कर रहे थे। मेरी उत्तर पुस्तिका लेते समय अध्यापिका जी ने प्रशंसनीय दृष्टि से देखकर 'सुंदर हस्तलेख' कहा तो मैं आत्मविभोर हो उठा और मैंने मुस्कुराकर उन्हें धन्यवाद दिया ।
परीक्षा भवन के भीतर हम सब मित्रों ने आपस में मिलकर आज के पर्चे के बारे में परामर्श किया। भवन से बाहर निकलने पर माता-पिता को बेसब्री से अपनी प्रतीक्षा करते पाया । मेरे चेहरे की मुस्कान ने उनकी सारी शंकाएँ दूर कर दीं।पिता जी ने मुझे गले से लगा लिया। परीक्षा भवन की सुव्यवस्था एवं अध्यापकों के सजग, सचेत एवं सुचारू मार्ग-दर्शन के कारण आज की परीक्षा बहुत अच्छी रही ।
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