मुक्तियज्ञ' खण्डकाव्य का कथानक संक्षेप में प्रस्तुत कीजिए: 'मुक्तियज्ञ' खण्डकाव्य सुमित्रानन्दन पन्त के 'लोकायतन' महाकाव्य का अंश है जिसके कथानक में
मुक्तियज्ञ' खण्डकाव्य का कथानक संक्षेप में प्रस्तुत कीजिए
'मुक्तियज्ञ' खण्डकाव्य सुमित्रानन्दन पन्त के 'लोकायतन' महाकाव्य का अंश है जिसके कथानक में भारतीय स्वाधीनता संग्राम की शौर्यगाथा का चित्रण है। गाँधी जी का चरित्र चित्रण करता यह खण्डकाव्य साबरमती से शुरू हुई डांडी यात्रा के साथ आरम्भ होता है। नमक कानून का उल्लंघन करने के पीछे गाँधी जी का उद्देश्य भारतीय जनता में ब्रिटिश शासन के अत्याचारों के प्रति जागृति लाना तथा स्वदेश-राग उन्नयन था। इस दुस्साहस को ब्रिटिश प्रशासन ने विद्रोह मान सभी नेताओं को जेल में बन्द कर दिया। जैसे-जैसे दमन चक्र बढ़ता गया, मुक्तियज्ञ भी तीव्र होता गया। गाँधी जी ने भारतीय जनता का मन स्वाधीनता की ओर मोड़ दिया और स्वदेशी अपनाने का नारा दिया।
यह आन्दोलन समग्र भारत में प्रसारित हो गया और भारतीय जनता गाँधी के नेतृत्व में स्वराज के लिए एकजुट हो गयी। गाँधी जी ने सामाजिक कुरीतियों जैसे अस्पृश्यता, धार्मिक भेदभाव इत्यादि के विरुद्ध भी संघर्ष का बिगुल फूंक दिया। 1927 में साइमन कमीशन के बहिष्कार के बाद राष्ट्रव्यापी आन्दोलन की लहर और भी तीव्र हुई और सन् 1942 ई. में गाँधी ने 'भारत छोड़ो' आन्दोलन के साथ मुक्तियज्ञ को अन्तिम आहुति देने का आह्वान भारतीय जनता से किया।
उसी रात्रि गाँधी समेत काँग्रेस के सभी नेता बन्दी बना लिए गये और जनता ने हाथों हाथ इस आन्दोलन के संचालन का भार लिया। चारों तरफ हड़ताल, तालाबन्दी आन्दोलन- धरनों, हत्याओं से ब्रिटिश शासन की चूलें हिल गयी । इधर वैयक्तिक स्तर पर पत्नी कस्तूरबा की मृत्यु भी गाँधी को कर्त्तव्य पथ से विचलित न कर पायी और अन्ततः मुस्लिम लीग की जिद पर अलग हुए पाकिस्तान और विभाजन का दंश लिये हुए भारत 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्र हुआ। जब भारत में स्वतंत्रता का उत्सव मनाया जा रहा था तब गाँधी नोआखाली में भड़के साम्प्रदायिक दंगों को शान्त कराने में लगे थे। नोआखाली के इस हिन्दू-मुस्लिम संघर्ष ने गाँधी के मन में घाव कर दिया और उन्होंने आमरण अनशन का निश्चय किया । तदन्तर 30 जनवरी, 1948 ई0 को नाथूराम गोड़से ने महात्मा गाँधी की गोली मारकर हत्या कर दी। कवि भारत की एकता की कामना के साथ इस खण्डकाव्य को समाप्त करता है तथा खण्डकाव्य के माध्यम से सन्देश देना चाहता है कि भले ही गाँधी के शरीर की हत्या कर दी गयी हो किन्तु उनका दर्शन, विचार तथा उद्देश्य आज भी भारतीय जनमानस में बसे हैं।
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