आधे अधूरे नाटक में बिन्नी का चरित्र चित्रण: आधे अधूरे में बड़ी लड़की अर्थात् बिन्नी की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है। वह महेन्द्रनाथ एवं सावित्री की बड़ी
आधे अधूरे नाटक में बिन्नी का चरित्र चित्रण
बिन्नी का चरित्र चित्रण: आधे अधूरे में बड़ी लड़की अर्थात् बिन्नी की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है। वह महेन्द्रनाथ एवं सावित्री की बड़ी लड़की तथा अशोक एवं बिन्नी की बड़ी बहन है। नाटककार ने बिन्नी का परिचय इस प्रकार दिया है- "उम्र बीस से ऊपर नहीं। भाव में परिस्थितियों से संघर्ष का अवसाद और उतावलापन । कभी-कभी उम्र से बढ़कर बड़प्पन साड़ी माँ से साधारण पूरे व्यक्तित्व में एक बिखराव।"
बिन्नी अपनी मर्जी से अपनी माँ के प्रेमी मनोज से शादी करने पर भी विवाहित जीवन की खुशियों से वंचित है। मनोज के साथ रहते हुए भी अलगाव-बोध से पीड़ित है सावित्री द्वारा पूछने पर वह स्पष्ट कहती है कि-
"शादी से पहले मुझे लगता था कि मैं मनोज को अच्छी तरह जानती हूँ पर अब आकर ... अब आकर लगने लगा है कि वह जानना बिल्कुल जानना नहीं था।"
बिन्नी के विषय में महत्त्वपूर्ण बात यह है कि उसकी स्थिति नाटक की मूल समस्या का उद्घाटन करने में बहुत सहायक है। वह अपने परिवार की स्थिति को अपने संवादों एवं व्यवहार से स्पष्ट करती है। अपने माता-पिता के आपसी सम्बन्धों के खोखलेपन और पारिवारिक परिवेश की कटुता को स्पष्ट करते हुए वह पुरुष चार अर्थात जुनेजा को बताती है---
"आप शायद सोच भी नहीं सकते कि क्या - क्या होता रहा है यहाँ । डैडी का चीखते हुए ममा के कपड़े तार-तार कर देना. .. उनके मुँह पर पट्टी बाँधकर उन्हें बंद कमरे में पीटना खींचते हुए गुसलखाने में कमोड पर ले जाकर ...( सिहरन ) मैं तो बयान भी नहीं कर सकती कि कितने-कितने भयानक दृश्य देखे हैं इस घर में मैंने ।" बिन्नी की चारित्रिक विशेषताएँ इस नाटक में निम्नलिखित रूप में ऊभर कर आई है--
आवारा एवं हताश युवती
बिन्नी के चरित्र में अपनी माँ सावित्री की भाँति ही आवारापन भी दिखाई देता है। यह आवारापन सम्भवतः उसके अन्दर अपने माता-पिता के आवारापन को देखकर ही उपजा है। वह अपनी माँ के प्रेमियों को प्रत्यक्ष रूप से घर में आता-जाता देखती थी। एक दिन स्वभावतः अपने घर में आने वाले मनोज नामक युवक के प्रति वह भी आकर्षित हो जाती है और एक रात बिना घर वालों को बताए वह मनोज के साथ भाग जाती है - एक नया घर बसाने। वह घर तो बसा लेती है किन्तु वहाँ खुश नहीं रह पाती क्योंकि एक व्यक्ति से आजीवन सम्बद्ध हो जाना तो उसने सीखा ही नहीं था। उसकी माँ ही जब एक व्यक्ति से सम्बन्ध न रख सकी तो वह कैसे रह पाती और भागकर अपने पिता के घर आ गई। इस प्रकार उसके चरित्र में आवारापन के साथ ही हताशा भी घर कर गई। उसकी निराशा का चित्रण निम्नलिखित संवाद से होता है-
"स्त्री: तू खुश है वहाँ पर ?
बडी लड़की: (बचते स्वर में) हाँ SS बहुत खुश हूँ ।
स्त्री: सचमुच खुश है ?
बड़ी लड़की: और क्या ऐसे ही कह रही हूँ?
पुरुष एक: (बिल्कुल दूसरी तरफ मुँह किए ) यह तो कोई जवाब नहीं है।
बड़ी लड़की: (तुनककर) तो जवाब क्या तभी होता अगर मैं कहती कि मैं खुश नहीं हूँ, बहुत दुखी हूँ?" घर के कुण्ठित और विषैले वातावरण से मुक्ति के लिए वह मनोज के साथ भाग जाती है, किन्तु अपने नये जीवन को स्वाभाविक नहीं बना पाती । यही बिन्नी का आवारापन है और इसी आवारापन के कारण अपने नये घर में दमघोटू वातावरण, अपरिचय, अजनबीपन से हताश एवं निराश है।
पारिवारिक यन्त्रणाओं से पीड़ित
बिन्नी जिस परिवार में पली और बड़ी हुई है। वह इतना अनुशासनहीन एवं चरित्रहीन परिवार है कि बिन्नी को संस्कारगत आदर्श मिल नहीं पाते हैं। बिन्नी ने विघटनशील परिवार के विघटन को प्रत्यक्ष रूप से झेला है। पिता महेन्द्रनाथ के रूप मे कभी दब्बूपन देखती है तो कभी अपने उसी पिता का राक्षसी रूप माँ सावित्री की महत्वाकांक्षाओं से उसे वह आवारापन की शिक्षा-दीक्षा मिली है। अपने घर को वह चिड़ियाघर मानती है। वह अपने घर के दमघोटू एवं भयावह वातावरण का खुलाशा जुनेजा अंकल के सामने करती है-
"आप शायद सोच भी नहीं सकते कि क्या-क्या होता रहा है यहाँ । डैडी का चीखते हुए ममा के कपड़े तार-तार कर देना. ... उनके मुँह पर पट्टी बाँधकर उन्हें बन्द कमरे में पीटना ... खींचते हुए गुसलखाने में कमोड पर ले जाकर... ( सिहरकर ) मैं तो बयान भी नहीं कर सकती कि कितने-कितने भयानक दृश्य देखे हैं इस घर में मैंने ।"
इतना ही नहीं घर में उससे छोटे अशोक और किन्नी भी उसका सम्मान नहीं करते हैं। प्रेमी मनोज के संग भागकर नया घर बसाती है तो यहाँ भी पारिवारिक यातनाएँ उसकी पीछा नहीं छोड़ती हैं। उसका दामपत्य जीवन सुखी नहीं है। वह मनोज को छोड़कर वापस उसी घर के विषाक्त वातावरण में आने के लिए मजबूर है। वह मानती है कि वह इस घर से कुछ ऐसी चीज या हवा ले गई है जो उसे सहज नहीं रहने देती है।
विखराव भरा व्यक्तित्व
पारिवारिक विघटन अजनबीपन कुण्ठा एवं अलगाव - बोध ने बिन्नी के व्यक्तित्व को कुचल कर रख दिया है। सम्पूर्ण नाटक में उसके चेहरे पर अवसाद तथा उतावलापन झलकता है। वह कभी युवाओं की तरह चंचल होकर मनोज के साथ घर से भाग जाती है और कभी प्रौढ़ों की तरह अपने परिवार के सदस्यों को शिक्षाप्रद सांत्वना देती है। अपने इस बिखराव को दूर करने अथवा उससे मुक्ति पाने के लिए बीना कभी मनोज से लड़ पड़ती है, कभी उससे दूर रहना चाहती है, कभी उसकी इच्छा के विरुद्ध नौकरी कर लेना चाहती है। उसके मन में गुबार फट नहीं पाता, अपनी माँ से अपने इस बिखराव को वह इन शब्दों में व्यक्त करती है-
"एक गुबार सा है जो हर वक्त मेरे अन्दर भरा रहता है और मैं इंतजार में रहती हूँ जैसे कि कब कोई बहाना मिले जिससे बाहर निकल लूँ...क्योंकि मुझे कहीं लगता है कि... कैसे बताऊँ क्या लगता है? वह (मनोज) जितने विश्वास के साथ यह बात करता है, उससे... उससे मुझे अपने से एक अजब-सी चिढ़ होने लगती है। मन कहता है-मन करता है कि आस-पास की हर चीज को तोड़-फोड़ डालूँ ।"
बिन्नी का यह बिखराव उसके व्यक्तित्व को अधूरा बना देता है। वह मनोज से सच्चा प्यार करके भी उसके साथ अजनदीपन महसूस करती है। उसके मन की यही अशान्ति उसके दुःखों का मूल कारण बनती है।
पारिवारिक रिश्तों में संवेदनशीलता
बिन्नी के चरित्र का सबसे उज्ज्वल पक्ष यह है कि वह पारिवारिक रिश्तों में अत्यंत संवेदनशील है। वह अपने माता-पिता, भाई-बहन एवं पति मनोज के साथ गहन रूप से जुड़ी है। माता-पिता के घर का तनाव उसे खलता है। वह घर के दमघोटू वातावरण से भागी जरूर थी। परन्तु उसे अपने परिवार के सभी सदस्यों से बहुत लगाव है। बिन्नी खुद अपने दाम्पत्य जीवन की एक रसता से तनाव पूर्ण है। फिर भी अपने माता-पिता का तनाव कम करना चाहती है। वह अपनी माँ की सहेली जैसी बनकर उसके तनाव को कम करना चाहती है यथा
बड़ी लड़की - ( उसके पीछे जाकर ) ममा! तुम तो आदी ही रोज-रोज ऐसी बातें सुनने की। कब तक इन्हें मन पर लाती रहोगी? (उसकी तरफ आती) एक तुम्हीं करने वाली हो सब कुछ इस घर में अगर तुम्हीं
पिता के प्रति भी उसकी सहानुभूति है। वह अपने भाई-बहन को ममता एवं शिक्षा देती है । परन्तु उसकी विडंबना यह है कि वह अपने परिवार को तनाव एंव घुटन से मुक्ति दिलाने में कोई कारगर भूमिका नहीं निभा पाती है। वस्तुतः उसकी एक मूल ने उसके संघर्ष की जड़ बना दिया है।
अतः कहा जा सकता है कि पारिवारिक परिस्थतियों ने बिन्नी जैसी सुशिक्षित युवती को चंचल हृदया, आवारा कुंठित एवं बिखर व्यक्तित्व की स्वामिनी बना दिया है। पारिवारिक यन्त्रणाओं से अभिशप्त इस युवती के पूरे व्यक्तित्व में बिखराव एवं अधूरापन दिखाई देता है । परन्तु अपने इस बिखरे व्यक्तित्व में भी वह पारिवारिक रिश्तों में अत्यन्त संवेदनशील है। अपने आप टूटकर अपने परिवार को बचाए रखने की कोशिश उसके चरित्र उज्ज्वल पक्ष है।
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