कर्ण' खण्डकाव्य के आधार पर श्रीकृष्ण का चरित्र-चित्रण कीजिए: श्रीकृष्ण ‘कर्ण' खंडकाव्य के एक उदात्त चरित्र महापुरुष हैं। वे एक अवतारी पुरुष और भगवान क
कर्ण' खण्डकाव्य के आधार पर श्रीकृष्ण का चरित्र-चित्रण कीजिए
श्रीकृष्ण ‘कर्ण' खंडकाव्य के एक उदात्त चरित्र महापुरुष हैं। वे एक अवतारी पुरुष और भगवान के रूप में माने जाते हैं। अपने अलौकिक चरित्र में उन्होंने भारतीय जन-मानस को चमत्कृत किया है तथा अपने महान एवं अनुकरणीय चरित्र से लोगों को अत्यंत प्रभावित भी किया है। श्रीकृष्ण के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. परिस्थितियों के मर्मज्ञ: श्रीकृष्ण तो भगवान हैं। वे त्रिकालदर्शी हैं, भविष्यद्रष्टा हैं तथा परिस्थितियों को भली प्रकार समझने में सक्षम हैं। वे भली-भाँति जानते हैं कि धर्मयुद्ध में कर्ण को कोई मार नहीं सकता। तभी तो वे समय आने पर अर्जुन को कर्ण का वध करने का संकेत देते हैं। वे कहते हैं-
बाण चला दो, चूक गये तो लुटी सुकीर्ति सँजोयी।
2. पांडवों के रक्षक: श्रीकृष्ण पांडवों के परम हितैषी हैं। वे हर परिस्थिति में पांडवों की रक्षा करते हैं, क्योंकि पांडव सत्य, न्याय और धर्म के मार्ग पर चल रहे हैं, जिसकी स्थापना करने के लिए ही पृथ्वी पर उनका अवतार हुआ है। युद्ध में वे अर्जुन की रक्षा के लिए ही घटोत्कच को बुलवाते हैं और कर्ण के हाथ से उसका वध करवाकर अर्जुन का जीवन सुरक्षित करते हैं।
3. कूटनीतिज्ञ: कर्ण खंडकाव्य की प्रमुख घटनाओं में श्रीकृष्ण का विशेष हाथ है। वे पांडवों के परम हितैषी है। कृष्ण हर पल उनका ध्यान रखते हैं तथा समय-समय पर उन्हें सचेत भी करते हैं। शत्रु को नीचा दिखाना, साम, दाम, दंड, भेद की नीति द्वारा किसी भी प्रकार से उसे वश में करना वे भली प्रकार जानते हैं। कर्ण की शक्ति को जानकर ही वे जहाँ उसे साम नीति द्वारा पांडवों के पक्ष में करने का प्रयास करते हैं, वहीं दुर्योधन के अवगुणों को बताने में भेद नीति अपनाते हैं। वे कर्ण से कहते हैं-
दुर्योधन का साथ न दो, वह रणोन्मत्त पागल है।
द्वेष, दंभ से भरा हुआ, अति कुटिल और चंचल है ॥
दाम नीति का प्रयोग करते हुए वे कर्ण को प्रलोभन देते हैं-
चलो तुम्हें सम्राट बनाऊँ, अखिल विश्व का क्षण में।
कर्ण जब उनकी सभी बातों को ठुकरा देता है तो कृष्ण उसे अहंकारी भी बतलाते हैं। निश्चित ही वे सभी प्रकार की नीतियों में निष्णात हैं।
4. मायावी: कृष्ण की माया से महाभारत के सभी योद्धा परिचित है। वे महाभारत युद्ध में केवल अर्जुन के रथ के सारथी ही बने हैं और उन्होंने अस्त्र-शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा भी की, किंतु फिर भी सभी वीर योद्धा उनसे भयभीत रहते हैं। जिन बातों को बड़े-बड़े वीर प्रयत्न करके भी नहीं जान पाते, उन बातों को कृष्ण सजह रूप में ही जान लेते हैं। कर्ण भी कहता है कि कृष्ण की माया अर्जुन को तो छाया की तरह घेरे रहती है-
घेरे रहती है अर्जुन को छाया सदा तुम्हारी ।
5. पराक्रम-प्रेमी: कृष्ण पराक्रमी एवं शूरवीर पुरुषों की निष्पक्ष होकर प्रशंसा करते हैं। वे कर्ण को एक अपराजेय योद्धा समझते हैं तथा उसके शौर्य की प्रशंसा करते हुए कहते हैं-
धर्मप्रिय, धृति-धर्म धुरी को तुम धारण करते रहो।
वीर, धनुर्धर धर्मभाव तुम भू-भर में भरते हो।
अतः कृष्ण की चरित्र एक अलौकिक पुरुष, कूटनीतिज्ञ, पराक्रमी तथा अनेक सद्गुणों से युक्त है।
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