रुप्पन बाबू का चरित्र चित्रण - रूप्पन अठारह वर्षीय युवक है। वे वैद्यजी के छोटे बेटे हैं। वे दसवीं कक्षा में तीन साल से पढ़ाइ कर रहे हैं। रुप्पन बाबू आ
रुप्पन बाबू का चरित्र चित्रण - Ruppan Babu Ka Charitra Chitran
रुप्पन बाबू का चरित्र चित्रण - रूप्पन अठारह वर्षीय युवक है। वे वैद्यजी के छोटे बेटे हैं। वे दसवीं कक्षा में तीन साल से पढ़ाइ कर रहे हैं। रुप्पन बाबू आवारे अनुशासनहीन विद्यार्थी वर्ग के प्रतिनिधि नेता हैं। रुप्पन बाबू पढ़ाई को छोड़कर नेतागिरी और गुंडागर्दी में अधिक रुचि रखते हैं।
नेता बनने के लिए उनके लिए सबसे बड़ा आधार है - सबको एक निगाह से देखना। वे इसलिए दारोगा और हवालात में बैठे चोर को, नकल करने वाले विद्यार्थी और कॉलेज के प्रिंसिपल को एक निगाह से देखते हैं। वे काम करते हैं और सबसे काम लेते हैं। वे अपने को पैदाइशी नेता समझते हैं, क्योंकि उनके पिता वैद्यजी भी नेता हैं। इसलिए दुकानदार उन्हें सामान अर्पित करते हैं। मुफ्त सेवा प्रदान करते हैं। वे अपने को नेता साबित करने के लिए सफेद धोती और रंगीन बुशशर्ट पहनते थे और गले में रेशम का रुमाल लपेटते थे। धोती का कछ उनके कंधे पर पड़ा रहता था। वे दुबले-पतले थे, लेकिन सभी पर बोलबाला था। वे जासूसी किताब पढ़ने के शौकीन हैं। जेब में दो कलमें भी होती हैं, बिना स्याही की। कलाई में घड़ी पहनते हैं।
वे प्रिंसिपल को अपना अधीनस्थ कर्मचारी समझते थे। वे कॉलेज के अध्यापकों के आचरण से असंतुष्ट थे। कॉलेज के मास्टर उनसे डरते थे और देखते ही नमस्ते कहते थे। वे कॉलेज प्रिंसिपल को धमका सकते हैं, आदेश भी दे सकते हैं।
कॉलेज के विद्यार्थी उनके इशारे पर चलते हैं। कॉलेज की सालाना बैठक में चुनाव के समय पिता के विपक्ष को भगाने के लिए रुप्पन बाबू के चेले हॉकी स्टिक लेकर तैनात होते हैं । मेले में दारोगाजी जब रुप्पन से चोरी पकड़ने के लिए सहयोग मांगते हैं, तब रुप्पन बाबू कहते हैं - " हमारा पूरा सहयोग है। यकीन न हो तो कॉलेज के किसी भी स्टुडेंट को गिरफ्तार करके देख लें ।”
रुप्पन बाबू की मान्यता है कि देश की शिक्षा -पद्धति बेकार हो गई है। कॉलेज के मास्टरों के बारे में वह रंगनाथ से कहता है - "मास्टर पढ़ाना-लिखाना छोड़कर सिर्फ पालिटिक्स भिड़ाते हैं।” वे नेता बनने के लिए गाँव-सेवा करना चाहते हैं, सबसे संबंध बनाए रखना चाहते हैं - "हर समस्या के समाधान के लिए गुटबंदी में विश्वास रखते हैं। एक कूटनीतिज्ञ की भाँति वे किसी भी हालत में प्रतिपक्ष को चित करने में विश्वास रखते हैं। इसलिए समय के अनुसार चलना पसन्द करते हैं। महात्मा गांधी के सत्य और अहिंसा का मार्ग अपनाना अब खतरे से खाली नहीं है । उचित - अनुचित का हिसाब लगाते रहने से प्रतिपक्ष जीत जाएगा । इसलिए अपने को बचाने के लिए किसी भी तरीके से शत्रु का विनाश करना चाहिए।
अनुभव अनेक विचारों को बदल देता है। पहले वे प्रिंसिपल को खुशामदी टट्टू और पिता का गुलाम समझते थे। बाद में उनको लगता है कि पिताजी की भीड़ में अपना उल्लू सीधा करने में वे लगे हुए हैं। अपने स्वार्थ के लिए वे दूसरों को बलि भी चढ़ा सकते हैं। मास्टर खन्ना आदि उनको अनुशासन हीन और हर बात में अडंगा डालने वाले समझते थे। अब उनको लगा कि खन्ना की मांग उचित है। वे हर अन्याय का विरोध करते हैं। इसलिए प्रिंसिपल के जानी दुश्मन बन गए हैं। वे वाइस प्रिंसिपल की नियुक्ति पर प्रिंसिपल से दृढ़तापूर्वक कहते हैं -“ प्रिंसिपल साहब, मैं समझता हूँ कि हमारे यहाँ एक वाइस प्रिंसिपल होना चाहिए। खन्ना सबसे ज्यादा सीनियर हैं। उन्हीं को बन जाने दीजिए। सिर्फ नाम की बात है, तनख्वाह तो बढ़नी नहीं है।"
इसलिए खन्ना से जब त्यागपत्र पहलवानों के दबाव पर लिखा लिया जाता है, वे विरोध करके कहते हैं - "ऐसा नहीं हो सकता। आप जबरदस्ती इनसे इस्तिफा नहीं लिखा सकते। ये इस्तिफा नहीं देंगे।”
किशोर रुप्पन बाबू अपना छैलापन नहीं छिपाते। वे बेला से प्रेम करते हैं। उसे प्रेम पत्र लिखते हैं । कभी-कभी अश्लील सिनेमा, संगीत बोलते हैं । वे प्रेयसी बेला को एकाधिक प्रेमपत्र लिखने के बाद भी बेला से कोई उत्तर नहीं मिलता।
उन्हें भंग पीने का शौक है। पिताजी की गालियाँ खाकर वह तिलमिला उठता है और शराब भी पीता है । रंगनाथ के पूछने पर वह बताता है - " कभी न कभी तो शुरू करना ही पड़ता। शिवपालगंज में रहना है तो इसी तरह रह जाएगा । .. यहाँ महात्मागांधी बनने से काम नहीं चलेगा।"
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