कर्मवीर भरत खण्डकाव्य के आधार पर कैकेयी का चरित्र-चित्रण कीजिए: 'कर्मवीर भरत' खण्डकाव्य के रचनाकार लक्ष्मीशंकर मिश्र 'निशंक' हैं। इस खण्डकाव्य के स्त्
कर्मवीर भरत खण्डकाव्य के आधार पर कैकेयी का चरित्र-चित्रण कीजिए
'कर्मवीर भरत' खण्डकाव्य के रचनाकार लक्ष्मीशंकर मिश्र 'निशंक' हैं। इस खण्डकाव्य के स्त्री पात्रों में कैकेयी का चरित्र सर्वोपरि है। उसमें साहस, दृढ़ता, राजनीतिक कुशलता, विवेकशीलता, जनहित भावना, पुत्र- प्रेम आदि आदर्श भारतीय नारी के सभी गुण विद्यमान है। इस खण्डकाव्य में उसके चरित्र को उज्ज्वल दर्शाकर भारतीय नारी को गौरव प्रदान किया गया है। कैकेयी के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
(1) युद्ध - निपुण वीरांगना: कैकेयी का चरित्र एक वीरांगना का चरित्र है। वह अपने हृदय पर पत्थर रखकर जनहित के लिए अपने पुत्र को चौदह वर्ष के लिए वन भेज देती है । युद्धभूमि में भी वह अपने पति के साथ गयी थी और संकट में उनके प्राणों की रक्षा की थी । निम्नलिखित पंक्तियों से उसका वीरत्व प्रकट होता है-
असि अर्पण कर मैंने रण कंकण बाँधा है,
रणचण्डी का व्रत मैंने रण में साधा है।
मेरे बेटों ने पय पिया सिंहनी का है,
उनका पौरुष देख इन्द्र मन में डरता है । ।
(2) आदर्श माता: कैकेयी स्वाभिमानी होने के साथ-साथ आदर्श माता भी है। वह अपने पुत्रों को केवल सुखी ही नहीं देखना चाहती, अपितु उनके गौरव को भी बढ़ाना चाहती है। वह राम और भरत में भेद नहीं मानती-
राम-भरत में भेद? हाय कैसी दुर्बलता,
आगे चलते राम, भरत तो पीछे चलता ।
वह राम को इसलिए वन में भेजती हैं, जिससे वह वन में जाकर दुष्टों और आततायियों का विनाश कर मानवता का कल्याण कर सके।
(3) राष्ट्रीय और समाजवादी दृष्टिकोण अपनाने वाली आदर्श नारी: कैकेयी के चरित्र की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विशेषता उसका राष्ट्रीय और समाजवादी दृष्टिकोण है। उसे केवल अयोध्यावासियों के ही कल्याण का ध्यान नही है, अपितु पिछड़े हुए अशिक्षित वनवासियों का भी वह ध्यान रखती है। उसका मानवीय दृष्टिकोण अत्यधिक उदार है-
जिन्हें नीच पामर कहकर हम दूर भगाते ।
वे भी तो अपने हैं मानवता के नाते ।।
(4) राजनीति में कुशल: कैकेयी नारी होकर भी राजनीति में पूर्ण कुशल है । वह राजनीति के दाँव-पेच समझती है और समय के अनुसार उनका प्रयोग करना भी जानती है। राम को वन भेजने में भी उसकी राजनीतिक सूझ-बूझ का प्रमाण मिलता है। वनवासियों को अनुशासन सिखाना भी एक राजनीतिक दायित्व है। (5) अपराध स्वीकार करने वाली - खण्डकाव्य के कथानक के अनुसार कैकेयी ने जो कुछ भी किया उसके पीछे उसका कोई भी स्वार्थ नही था और न कोई बुरा भाव ही था । परन्तु जब परिस्थितियाँ बदल जाती हैं तथा परिणाम बुरे निकलने लगते हैं तो कैकेयी अपने आपको अपराधिनी स्वीकार कर लेती है तथा स्वयं ही अपने विषय में कह उठती है-
इस दुःखान्त नाटक की मैं हूँ सूत्रधारिणी ।
हरे-भरे रघुकुल में प्रलय-विनाशकारिणी ।।
निष्कर्ष: रूप में कहा जा सकता है कि प्रस्तुत खण्डकाव्य में कैकेयी आदर्श माता, वीर स्त्री तथा समाजवादी दृष्टिकोण को अपनाने वाली आदर्श नारी है। निशंक जी ने कैकेयी के युग-युग से अभिशप्त चरित्र को आधुनिक परिवेश में सँवारने का सफल प्रयत्न किया है।
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