सुभान खाँ कहानी का सारांश - प्रस्तुत पाठ में रामवृक्ष बेनीपुरीजी ने सुभान खाँ नामक एक ऐसे मुसलमान का रेखाचित्र खींचा है जो वास्तव में ख़ुदा का नेक बंद
सुभान खाँ कहानी का सारांश - Subhan Khan Summary in Hindi
सुभान खाँ कहानी का सारांश - प्रस्तुत पाठ में रामवृक्ष बेनीपुरीजी ने सुभान खाँ नामक एक ऐसे मुसलमान का रेखाचित्र खींचा है जो वास्तव में ख़ुदा का नेक बंदा है और जिसके लिए हिंदू-मुस्लिम एकता अपनी जिंदगी से भी ज्यादा कीमती है। उसमें अपने धर्म के प्रति जितनी श्रद्धा है, उतना दूसरे धर्म के प्रति आदर भी है। एक ओर वे बच्चों के साथ बच्चे होते हैं तो सांप्रदायिक कट्टरपंथियों के सामने चट्टान की तरह खड़े होते हैं। इसमें लेखक ने अपने बचपन की अनेक घटनाओं के आधार पर सुभान खाँ के चरित्र का ताना-बाना बुना है।
रामवृक्ष बेनीपुरी के रेखाचित्र 'सुभान खाँ' में सुभान खाँ का उदात्त चरित्र प्रस्तुत किया गया है। लेखक ने सुभान खाँ के माध्यम से धर्मनिष्ठा, भाईचारा, सदाचार, सद्भावना तथा हिंदू-मुस्लिम एकता आदि उच्चतम मानवी मूल्यों की प्रतिष्ठा देने का सफल प्रयास किया है।
सुभान खाँ एक मुस्लिम चरित्र है अतः लेखक उनकी धार्मिक वृत्ति को अभिव्यक्त करते हुए बताता है कि सुभान खाँ की लंबी, सफेद चमकती हुई दाढ़ी है। वह नियमित रूप से नमाज पढ़ते हैं। उनकी हज करने की इच्छा है, लेकिन आर्थिक विवशता के कारण वह हज नहीं कर पाते। लेकिन वे हज के लिए तिनका तिनका अवश्य जमाते हैं। सुभान खाँ मुस्लिम होने के बावजूद लेखक के घर में एक सदस्य की तरह रहते हैं। उनके बीच धर्म को लेकर कभी कोई दिवार खड़ी नहीं होती। बल्कि लेखक का जन्म मन्नते माँगकर होने से उनके घरवाले मोहर्रम में अपनी आस्था विशेष रूप से प्रकट करते हैं। ईद-बकरीद के त्यौहार पर सुभान खाँ लेखक के परिवार को नहीं भूलते और होली - दिवाली से सुभान खाँ किनारा नहीं करते। इस प्रकार सुभान खाँ के चरित्र द्वारा धार्मिक सामंजस्य का चित्र उपस्थित होता है। सुभान खाँ धर्मनिष्ठ होने के कारण उनका सपना था कि गाँव में एक मस्जिद बनाए । अथक परिश्रम के बाद उनका यह सपना साकार होता है। दिन बीतते हैं। लेखक बड़े होकर शहर चले जाते हैं और सुभान खाँ बूढ़े हो जाते हैं। जिस गाँव में लोग धर्म के परे मानवता को महत्व देते थे उसी गाँव में हिंदू - मुस्लिम अलगाव का वातावरण पनपने लगता है। शहर में तो आए दिन दंगे, खून-खराबा होता रहता है । हिरों की यह बिमारी देहात तक पहुँचती है। गाँव में गाय और बाजे के नाम पर तकरारें होने लगती हैं। कुर्बानी के अवसर पर मुसलमान निर्णय करते हैं कि वे मस्जिद में गाय की कुर्बानी देंगे। इस बात से बड़ा हंगामा खड़ा होता है। लेकिन सुभान खाँ चट्टान जैसे खड़े होकर स्थिति का सामना करते हैं। वह न तो हिंदुओं का पक्ष लेते हैं और ना ही मुसलमानों का । कुर्बानी के दिन मस्जिद के दरवाजे की चौखट पर 'मेरी लाश पर ही कोई भीतर घुस सकता है' कहकर बैठ जाते हैं। सुभान खाँ के सामने सभी हिंदू-मुस्लिम इकट्ठा होते हैं। उनकी आँखों में आँसू देखकर कुर्बानी का सवाल गायब हो जाता है। वे साक्षात देवदूत से प्रतीत होते हैं, जिसके रोम-रोम से प्रेम और भाईचारे का संदेश निकलकर समस्त वातावरण में व्याप्त होता है।
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