सुनन्दा का चरित्र चित्रण: जैनेन्द्र कुमार की कहानी 'पढ़ाई' की मुख्य पात्र सुनन्दा है। सुनन्दा एक ममतामयी माँ है। उसे अपनी बेटी के भविष्य की चिन्ता है
पढ़ाई कहानी की मुख्य पात्र सुनन्दा का चरित्र चित्रण
सुनन्दा का चरित्र चित्रण: जैनेन्द्र कुमार की कहानी 'पढ़ाई' की मुख्य पात्र सुनन्दा है। सुनन्दा एक ममतामयी माँ है। उसे अपनी बेटी के भविष्य की चिन्ता है । सुनन्दा की बेटी सुनयना अभी छः वर्ष की है। सुनन्दा को लगता है कि लाड-प्यार में पल कर यह बच्ची बिगड़ जाएगी और अच्छी तरह पढ़-लिख नहीं पाएगी अतः उसे कठोर अनुशासन में रखना चाहती है। अनुशासनप्रिय सुनन्दा को सुनयना का खेलना-कूदना, शोरगुल करना बिल्कुल पसन्द नहीं । उसे प्रतिपल महसूस होता है कि घर के अन्य सदस्य पति व ननद को सुनयना की चिन्ता नहीं और खीझ को यूं प्रकट करती है "छः बरस की लडकियाँ दूसरी जमात में पहुंच जाती हैं और एक यह है कि माँ का दूध नहीं छोड़ना चाहती, यों काम में माँ को अंगूठा दिखाकर भाग जाती है ।" वस्तुतः सुनन्दा असंतुष्ट वृत्ति की नारी है इसीलिए उसका हृदय चिन्तित रहता है। वह हमेशा सोचती है " एक तो लड़की है, वह यों बिगड़ी जा रही है। बिगड़ जाएगी तो फिर कौन संभालेगा, उन्हीं के सिर तो सब पड़ेगा। सो, वह भी औरों की तरह फिकर करना छोड़ बैठे, तो कैसे चलेगा।"
सुनन्दा पढ़ाई को महत्त्व देती है। वह चाहती है उसकी बेटी पढ़-लिख कर सुशिक्षित हो जाए तथा अच्छे घर-परिवार में अपने अच्छे संस्कार लेकर जाए। वह बच्ची को स्कूल में नहीं घर में ही पढ़ाना चाहती है, उसे आँख से ओझल नहीं करना चाहती। उसे स्कूल की अध्यापिका पर यकीन ही नहीं हो पाता "मैं पाठशाला भेजना नहीं चाहती। अध्यापिका सब ऐसी ही होती हैं, बच्चे का नेक ख्याल नहीं रखतीं और धमकाएँ, मारे भी, उसको क्या ठीक है। नहीं, बच्चे को मैं आंख ओझल नहीं करूगीं।"
सुनन्दा अविश्वासी प्रवृत्ति की नारी है। उसे किसी पर भी यकीन नहीं। न तो वह ननद पर विश्वास करती है न पति पर। जब ननद बच्ची को लाड़ से दूध पिलाती है और समझाती है तो भी वह खिन्न होती है और जब पति बच्ची की तरफदारी करता है तब भी वह झुंझलाती है। मनोवैज्ञानिक आधार पर सुनन्दा का अपना व्यक्तित्व बेटी को लेकर कुंठित है । वह उसके वर्तमान की अपेक्षा भविष्य को व्यक्तित्व की अपेक्षा समाज को अधिक महत्त्व देती है। वह ऐसी दुश्चिताओं से घिरी रहती है जिनकी अभी के हालात के साथ संगति नहीं बैठती । लेखक ने उसकी सोच को यूं अभिव्यक्त किया है उनके पेट की कन्या है, पर दुनिया बुरी है। उसने पढ़ना-लिखना जैसी भी चीज़ अपने बीच में पैदा कर रखी है। और उसी दुनिया में मास्टर लोग भी हैं, जो डंडा दिखाकर बच्चों को पढ़ा देंगे और आप से रुपया लेकर पेट पाल लेंगे। और दुनिया में एक चीज है प्रतिष्ठा और भी इसी तरह की बहुत सी चीजें है और फिर ब्याह, जिसमें एक सास मिलती है और एक ससुर मिलता है.... इस दुनिया को लेकर वह झंझट में पढ़ जाती है जबकि पति सोचता है कि आने वाले कल की चिन्ताओं को आहवान करना मूर्खता है । सुनयना अभी छोटी है, उसका मन खेल में ज्यादा पढ़ने में कम लगता है । सुनन्दा उसे पढाना चाहती है इसी कारण सुनयना की पिटाई भी करती है और तर्क देती है कि 'पिटकर दुबली होगी, तो डाक्टर है, डाक्टर के लिए पैसा है- पर लड़की को पढ़ाना है।"
अनुशासनप्रिय सुनन्दा मन की दुश्चिताओं के कारण कठोर स्वभाव की हो गई है। जब बेटी को पढ़ाने के लिए डांटते है तो वह रोती है और जिद्दी व्यवहार से पेश आती है तो सुनन्दा का वात्सल्य व ममता उमड़ पड़ती है और वह मास्टर जी से कहती है – 'मास्टर जी इसे तस्वीर वाला सबक पढ़ाना। और मास्टर जी इसके मन के मुताबिक पढ़ाना....अच्छा मास्टर जी आज छुटटी सही। जरा कल जल्दी आ जाना।"
बेटी को पढ़ाने की सुनन्दा की इच्छा इतनी बलवती है कि वह परिवार के सभी सदस्यों से उलझी रहती है और उसी की खातिर समझौता करने को भी तत्पर दिखती है । जब सुनन्दा पति से कहती है कि तुम उसकी पढ़ाई का थोड़ा ध्यान कर लिया करो तो पति कहता है कि जब तक तुम उसे सुनयना की जगह 'नूनो' कहती रहोगी वह बड़ी नहीं होगी, नूनो ही बनी रहेगी तो अपनी सहमति प्रकट करती है और यह एहसास करती है कि उसे बेटी को सही नाम से ही पुकारना चाहिए।
संक्षेप में कहानी में वर्णित सुनन्दा के चरित्र के माध्यम से लेखक ने स्पष्ट किया है कि बेटी को शिक्षित करना अनिवार्य है। इस अनिवार्यता को मां ही सबसे ज्यादा समझती है और इस ज्यादा समझ के कारण ही मां स्वयं मानसिक दुश्चिताओं की शिकार हो जाती है।
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