मैं हार गई कहानी की मूल संवेदना: 'मैं हार गई' कहानी लेखिका की राजनैतिक चेतना को व्यक्त करती है। इस कहानी की मूल संवेदना में व्यंग्य के माध्यम से भ्रष्
मैं हार गई कहानी की मूल संवेदना : Main Haar Gayi Kahani ki Mool Samvedna
मैं हार गई कहानी की मूल संवेदना: 'मैं हार गई' कहानी लेखिका की राजनैतिक चेतना को व्यक्त करती है। इस कहानी की मूल संवेदना में व्यंग्य के माध्यम से भ्रष्ट नेताओं की कलुषित राजनीति को उद्घाटित किया है। लेखिका कहना चाहती है कि आज के माहौल में हम आदर्श समाजसेवी, देश-प्रेमी नेता की कल्पना करने के प्रयास में हार जाते हैं ।
कहानी की 'मैं' चूँकि बड़े नेता की पुत्री है, जो कवि सम्मेलन में एक कवि की कविता सुनकर भड़क उठती है। कविता में प्रथम अभिनेत्री की तस्वीर को चूमने वाला, बाद में शराब पीने वाला और तद्नंतर बडी गंभीरता से 'गीता' को बगल में दबाकर बाहर निकलने वाले बेटे को देखकर उसके पिता अपने बेटे की भविष्यवाणी करते हैं- "यह साला तो आजकल का नेता बनेगा।" लेखिका इस कविता को सुनने के बाद तिलमिला जाती है और वह इस कविता का जवाब कहानी द्वारा देना चाहती है। लेखिका अपनी कहानी में सर्वगुण संपन्न नेता बनाने की योजना बनाती है। वह प्रथम अपने नेता को गरीब किसान के घर जन्म देती है, क्योंकि उसने सुना और पढ़कर महसूस किया था कि "कमल कीचड़ में उत्पन्न होता है, वैसे ही महान आत्माएँ गरीबों के घर ही उत्पन्न होती हैं।” सर्वगुणों से संपन्न नेता का जन्म लेखिका गाँव के एक गरीब की झोपड़ी में कराती है। इस बालक के सीने में बड़े-बड़े अरमान मचलते हैं, बड़ी उमंग करवटें लेती है। वह अत्याचार सह नहीं सकता पर उसके घर पर तबाही का आलम है। पिता की मृत्यु हो गई है, माँ की आँखों की रोशनी चली गई है, विधवा बुआ और क्षयग्रस्त बहन है। गरीब घर में पैदा हुए उस बालक को देश तो प्यारा है, पर परिवार के लोग भी प्यारे हैं। नेता की रचनाकार लेखिका उसे प्रेरित करती है - "जानते नहीं नेता लोग कभी अपने परिवार के बारे में नहीं सोचते, वे देश के, संपूर्ण राष्ट्र के बारे में सोचते हैं। पर उसकी परेशानी है कि उसके गुजारे साधन नहीं है। घर की विषम परिस्थितियों को संभालने के वह मजदूरी है और एक दिन परेशानियों से तंग आकर चोरी करने की सोचता है। भावी नेता चोरी जैसा जघन्य कार्य करके नैतिकता का हनन करे ये लेखिका को पंसद नहीं था । इसलिए उसने कहानी के टुकड़े-टुकड़े कर दिये ।
गरीबी मनुष्य में अपराधवृत्ति को जन्म देती है यह सोचकर दूसरी बार लेखिका ने अपने नेता का जन्म समृद्ध परिवार मे किया। उसकी स्कूली शिक्षा अच्छे स्कूल में हुई। उसकी प्रतिभा को लेखिका ने निखारा। वह जोशीले भाषण देता और गाँव में जाकर बच्चों को पढ़ाता। अमीर होकर भी वह सादगी का जीवन बिताने लगा, पर उसमें भी परिवर्तन आने लगा । रईसों के कॉलेज में प्रवेश करते ही वह उनकी संगत में ऊँची चीजें सीखने लगा कॉफी हाउस, जुआ - शराब के आधीन होकर छमिया के धमाके में नेता के सेवा-भाव, देश-प्रेम, नैतिकता सब धुँधले हो गये। लेखिका को बड़ी निराशा और ग्लानि हुई कि उसने ऐसे नेता को अपनी कलम से निर्मित किया । लेखिका को लगा कि जिस कवि ने भरी सभा में 'बेटे के भविष्य' कविता के साथ जो नहला फटकारा था उस पर वह इक्का तो क्या दुक्का भी न मार सकी। लेखिका ने स्वीकार कर लिया कि मैं हार गई बुरी तरह हार गई। लेखिका एक आदर्श नेता को न गरीबी में बना सकी न अमीरी में गरीबी के असह्य दुःख और अमीरी की ऊँची चीजों में फँसा हुआ व्यक्ति आदर्श नेता नहीं बन सका और लेखिका हार गई। इस प्रकार इस कहानी में लेखिका कहना चहती है कि वर्तमान परिस्थिति में जब राजनीति इतनी दूषित हो गई है, चारों और षड्यंत्र हैं धोखा है ऐसे माहौल में नेता तो आदर्शवादी हो ही नहीं सकते।
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