कमलेश्वर का व्यक्तित्व और कृतित्व: बीसवीं शती के सशक्त लेखक के रूप में कमलेश्वर बहुपक्षीय प्रतिभा के स्वामी थे। वे एक साथ उपन्यासकार, कहानीकार, नाटकका
कमलेश्वर का व्यक्तित्व और कृतित्व
कमलेश्वर का व्यक्तित्व
बीसवीं शती के सशक्त लेखक के रूप में कमलेश्वर बहुपक्षीय प्रतिभा के स्वामी थे। वे एक साथ उपन्यासकार, कहानीकार, नाटककार, पत्रकार, स्तंभ लेखक, पटकथा लेखक व समीक्षक थे। इनका पूरा नाम कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना था और घर का नाम कैलाशनाथ था। इनका जन्म 6 जनवरी, 1932 में कटरा मैनपुरी उत्तरप्रदेश में हुआ। मैनपुरी से ही सन् 1946 में हाई स्कूल की परीक्षा पास कर सन् 1950 में के. पी. इंटर कॉलेज इलाहाबाद से पूरी की और सन् 1954 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एम.ए. किया । पाँच वर्ष की आयु में ही इनके पिता की मृत्यु हो गई थी तो घर का भार इनकी माता और भाई सिद्धार्थ पर आ गया। असमय सिद्धार्थ की मृत्यु के बाद घर चलाने का बोझ कमलेश्वर पर आ गया । अतः एक खाता-पीता परिवार गरीबी से जूझने लगा। कमलेश्वर स्वयं लिखते हैं- "एक अमीर कहे जाने वाले घर में गरीबों की तरह रहना। खाना खाकर भी भूखा रहना, अकुलाहट भरे दुःखों के बीच भी हँस सकना, बच्चा होते हुए भी व्यस्कों की तरह निर्णय लेना, यह मेरी आदत नहीं मजबूरी थी।" वे हर कक्षा में प्रथम आते थे। पढ़ाई के साथ वो छोटे-मोटे काम भी करते थे जिससे घर का खर्चा चलता था। साबुन से लेकर अपनी कलम के लिए स्याही वे खुद बनाते थे। संघर्ष ही इनका जीवन रहा है। इन्होंने अपने जीवन में कई कार्य और नौकरियाँ की हैं। प्रकाश प्रेस, मैनपुरी में प्रूफरीडिंग की तथा 'बहार' मासिक पत्रिका इलाहाबाद में पचास रूपए माहवार पर सम्पादन कार्य किया और 'कहानी' मासिक पत्रिका इलाहाबाद में एक सौ रूपए माहवार पर कार्य किया। राजकमल प्रकाशन में साहित्य सम्पादक रहे। सेंट जोसेफ सेमिनरी में हिन्दी अध्यापन कार्य किया। आल इंडिया रेडियो तथा टेलीविजन में स्क्रिप्टराइटर सारिका, धर्मयुग, जागरण और दैनिक भास्कर जैसे प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं के संपादक भी रहे। दूरदर्शन के अतिरिक्त महानिदेशक के पद पर भी कार्य किया। 27 जनवरी, 2007 में 75 वर्ष की आयु पूर्ण कर फरीदाबाद में अंतिम सांस ली।
उनके कृतित्व के लिए वे समय-समय पर सम्मानित हुए। सन् 2003 में 'कितने पाकिस्तान' उपन्यास के लिए 'साहित्य अकादमी' पुरस्कार से सम्मानित हुए और 2005 में वे राष्ट्रपति महोदय द्वारा 'पद्मभूषण' से अलंकृत हुए। इसके अतिरिक्त शलाका पुरस्कार', 'शिवपूजन सहाय', 'शिखर सम्मान' आदि से भी सम्मानित हुए हैं। 'कितने पाकिस्तान' से कमलेश्वर एकदम चर्चा में आ गए। उनके लेखन में कई रंग देखने को मिलते हैं। मुम्बई में उनकी टी.वी. पत्रकारिता बहुत महत्त्वपूर्ण रही। 'कामगार विश्व' नाम के कार्यक्रम द्वारा गरीबों, मज़दूरों की पीड़ा और उनकी दुनिया को अपनी आवाज़ दी।
कमलेश्वर का कृतित्व
कमलेश्वर ने अपने 75 वर्षीय जीवन में बारह उपन्यास, सत्रह कहानी संग्रह के साथ नाटक तथा दो यात्रा संस्मरण हिन्दी साहित्य को प्रदान किए।
उपन्यास— 'एक सड़क सत्तावन गलियाँ', 'डाक बंगला', 'तीसरा आदमी', 'समुंद्र में खोया हुआ आदमी', 'काली आंधी', 'आगामी अतीत', 'सुबह... दोपहर... शाम', 'पति-पत्नी और वह', 'रेगिस्तान', 'लौटे हुए मुसाफिर', 'वही बात', 'एक और चंद्रकांता', 'कितने पाकिस्तान', 'अंतिम सफर' उपन्यास अधूरा रह गया था जिसे गायत्री कमलेश्वर के अनुरोध पर तेजपाल सिंह धामा ने पूरा किया।
कहानी संग्रह– राजा निरबंसिया, 'मांस का दरिया', 'कस्बे का आदमी', 'खोई हुई दिशाएँ', 'बयान', 'जार्ज पंचम की नाक', 'आज़ादी मुबारक', 'कोहरा', 'कितने अच्छे दिन', 'मेरी प्रिय कहानियाँ', 'मेरी प्रेम कहानियां ।
नाटक- 'अधूरी आवाज़', 'रेत पर लिखे नाम', 'चारुलता', 'रेगिस्तान', 'कमलेश्वर के बाल नाटक' ।
यात्रा संस्मरण – 'खंडित यात्राएं', 'अपनी निगाह में ।
समीक्षा— नई कहानी की भूमिका, नई कहानी के बाद, मेरा पन्ना, दलित साहित्य की भूमिका
आत्मकथ्य- 'जो मैंने किया', 'यादों के चिराग', 'जलती हुई नदी' ।
सम्पादन– मेरा हमदम: मेरा दोस्त तथा अन्य संस्मरण, समानान्तर - 1, गर्दिश के दिन, मराठी कहानियाँ, तेलुगू कहानियाँ, पंजाबी कहानियाँ, उर्दू कहानियाँ।
फिल्में- इन्होंने लगभग सौ हिंदी फिल्मों का लेखन किया जिनमें 'सारा आकाश', 'आँधी', 'अमानुष', 'मौसम', 'मि. नटवरलाल', 'द बर्निंग ट्रेन', 'राम बलराम', 'बदनाम बस्ती', 'तुम्हारी कसम' आदि प्रमुख हैं।
इसके साथ-साथ वह एक अच्छे स्क्रिप्ट लेखक थे। दूरदर्शन (टी.वी.) धारावाहिकों में 'चंद्रकांता', 'युग', 'बेताल पचीसी', 'आकाश गंगा', 'रेत पर लिखे नाम इत्यादि का लेखन किया ।
कमलेश्वर का कथा साहित्य यथार्थ पर आधारित है क्योंकि इनके लिए यथार्थ से हटकर लिखना बेईमानी के बराबर है। जिंदगी इनकी रचनाओं के केन्द्र में है। जिंदगी के सभी स्तर और सभी पक्ष इनके साहित्य में मिलते हैं। इसके अतिरिक्त इन्होंने आधुनिकता और आधुनिकता बोध के प्रमुख बिन्दुओं को भी चित्रित किया है तथा आधुनिक परिवेश के बनावटीपन को यथार्थ के साथ जोड़ा है।
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