हार की जीत कहानी का सारांश - Haar Ki Jeet Kahani Ks Saransh
हार की जीत कहानी का सारांश - किसी के हार के बिना किसी की जीत असंभव है। किसी की जीत तभी निश्चित होती है, जब कोई-न-कोई हारता है। परंतु कभी-कभी ऐसा भी हो जाता है कि व्यक्ति कुछ मामलों में जीतकर भी हार जाता है और कभी हार कर भी जीत जाता है। प्रस्तुत कहानी में सुदर्शनजी ने इस बात को स्पष्ट करने के लिए खड्गसिंह नामक डाकू की काल्पनिक कथा बताई है। डाकू खड्गसिंह एक कुख्यात डाकू है। उसकी नजर बाबा भारती के सुलतान नामक घोड़े पर है। जहाँ डाकू अपनी बुराइयों के कारण कुख्यात है, वहीं ठीक इसके विपरित बाबा भारती का आचरण है। वे साधु प्रवृत्ति के व्यक्ति हैं। वे अपने इस स्वभाव के कारण ही गाँव में पहचाने जाते हैं। अपने घोडे सुलतान को वे अपनी संतान की भाँति चाहते हैं। एक दिन घात करके डाकू खड्गसिंह बाबा भारती का घोडा चुरा ले जाने लगता है। बहुत कोशिश के बाद भी जब वह नहीं रूकता तो जाते-जाते बाबा भारती डाकू से निवेदन करते हैं कि, तुम सुलतान को ले जा सकते हो, लेकिन इसका जिक्र किसी से नहीं करना, नहीं तो लोगों का गरीबी / लाचारी पर से विश्वास उठ जाएगा। उधर डाकू घोडा चुराकर ले तो जाता है, किंतु अंदर-ही-अंदर वह बेचैनी और हार महसूस करता है। इधर बाबा भारती भी उदास रहने लगते है। जीवन से हारे हुए लगने लगते है। किसी से कुछ नहीं कहते। एक दिन अचानक बीच रात में वह अपने सुलतान को अस्तबल में देखते हैं। डाकू बाबा भारती से अपनी इस हरकत पर क्षमा माँगता है । उसका हृदय परिवर्तन देखते हुए बाबा भारती भी उसे क्षमा कर देते हैं। अर्थात डाकू जीतकर हार जाता है और बाबा भारती हारकर जीत जाते हैं।