गबन उपन्यास की समस्या पर प्रकाश डालिए।

गबन उपन्यास की समस्या : समस्या-निरूपण की दृष्टि से प्रेमचंद के उपन्यासों में 'गबन' का महत्वपूर्ण स्थान है। गबन उपन्यास में मध्यवर्गीय समाज की इन समस्य

गबन उपन्यास की समस्या पर प्रकाश डालिए।

गबन उपन्यास की समस्यासमस्या-निरूपण की दृष्टि से प्रेमचंद के उपन्यासों में 'गबन' का महत्वपूर्ण स्थान है। गबन उपन्यास में मध्यवर्गीय समाज की इन समस्याओं को उभारा गया है, जिनसे आज का सामान्य पाठक भली-भाँति परिचित है। उपन्यास के नायक और नायिका मध्यम वर्ग से संबंध रखते हैं और उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद ने प्रारंभ से ही इन समस्याओं को उनके जीवन अत्यंत कुशलता ने बाँध दिया है। आभूषण-प्रेम, सामाजिक प्रतिष्ठा की भावना और षड्यंत्रपूर्ण व अव्यवस्थित पुलिस व्यवस्था के त्रिकोण में ही उनके जीवन के महत्त्वपूर्ण भाग का विकास हुआ है।

'गबन' में प्रधान रूप से नारी की आभूषण-प्रियता तथा मध्यवर्ग की दिखावट की प्रवृत्ति की समस्या को उठाया गया है। कलकत्ता की घटनाओं के द्वारा उपन्यासकार ने पुलिस के हथकंडों का पर्दाफास भी किया है। पुलिस संबंधी कथानक के संयोजन से पुलिस एवं न्याय- प्रबंध की समस्या को सम्मुख लाया गया है। इसके अतिरिक्त वैवाहिक समस्या आदि समस्याओं को लेखक उपन्यास में प्रसंगानुकूल उठाता चला है, लेकिन इसमें से कोई भी समस्या प्रधान नहीं कही जा सकती। प्रधान समस्या के निर्धारण के लिए हमें उपन्यास के नायक और नायिका की समस्याओं की ओर देखना पड़ेगा। रमानाथ और जालपा आभूषण-प्रियता के शिकार हैं और उनमें मध्यवर्गीय कृतिम प्रतिष्ठा प्राप्त करने की भावना कूट-कूट कर भरी पडी है। संपूर्ण उपन्यास में आभूषण प्राप्त करने के लिए किये गये प्रयासों का वर्णन है।

रमानाथ, जालपा की समस्याएँ ही उपन्यास की प्रमुख समस्या है जिनको प्रस्तुत करने के लिए लेखक ने विभिन्न परिस्थितियों एवं घटनाओं का चित्रण किया है। उपन्यास में कथानक का विकास इन्हीं दोनों पात्रों के कारण होता है। 'गबन की मुख्य समस्या के निर्धारण में इनका महत्वपूर्ण योगदान है।

गबन उपन्यास की समस्या

  1. आभूषण प्रेम की समस्या
  2. सामाजिक प्रतिष्ठा की समस्या
  3. वैवाहिक समस्या
  4. विधवा जीवन की समस्या
  5. ऋण की समस्या
  6. विदेशीपन की नकल 
  7. सुव्यवस्थित पुलिस-प्रबन्ध की समस्या

1. आभूषण प्रेम की समस्या:- नारी जाति की आभूषण-प्रियता की समस्या को 'गबन' में मुख्य रूप से रखा गया है। स्त्री चाहे धनी वर्ग की, चाहे मध्यवर्ग की और चाहे निम्न वर्ग की उसमें गहनों को प्राप्त करने की ललक एवं प्रेम समान होता है। इस उपन्यास का संपूर्ण कथानक नारी की इसी आभूषण-प्रियता पर आधारित है और उपन्यास का प्रत्येक स्त्री-पात्र गहनों के मोह में व्यस्त दिखाई देता है। जालपा बचपन से ही आभूषणों में पली है। जब वह तीन वर्ष की अबोध बालिका थी, उस समय उसके लिए सोने के चूड़े बनवाये गये थे। दादी जब उसे गोद में खिलाने लगती तो गहनों की ही चर्चा करती - 'तेरा दूल्हा तेरे लिए बड़े सुन्दर गहने लायेगा!' जब वह कुछ और बड़ी हुई, तब उसने गुडियों की गहने पहनाये थे। थोड़ा और बढ़ने पर अपने गाँव घर की स्त्रियों से वह गहनों की चर्चा सुना करती थी। इस तरह उसका जीवन एक ऐसी दुनिया में बीता था, जिसे मुंशी प्रेमचंद ने 'आभूषण-मंडित संसार कहा है। ऐसी स्थिति में जालपा का गहनों से विशेष मोह होना कोई आश्चर्य की बात नहीं थी। विवाह में ससुराल से चंद्रहार न आने पर उसे इसी कारण विशेष क्षोभ होता है।

2. सामाजिक प्रतिष्ठा की समस्या:- 'गबन' की दूसरी समस्या समाज मे प्रतिष्ठा प्राप्त करने की है। इस समस्या का संबंध मध्य वर्ग के उन कम आय वाले परिवारों से है, जो मनोरंजन, फैशन और विलास के लिए उन सभी उपकरणों को जुटाते हैं, जिनका उपयोग केवल धनी वर्ग करता आया है। यह वर्ग आर्थिक साधनों के अभाव में भी व्ययसाध्य कार्यों में जी खोलकर खर्च करता है। रमानाथ के रूप में लेखक ने ऐसे ही वर्ग का प्रतिनिधि-चरित्र प्रस्तुत किया है, जो आडंबर तथा मिथ्या-प्रदर्शन का पक्षपाती है। उसके चरित्र में दिखावट की प्रवृत्ति प्रारंभ से है और अंत तक चलती है। विवाह के अवसर पर रमा- नाथ की मिथ्या-प्रदर्शन की भावना पर लेखक ने लिखा है- दयानाय दिखावट और नुमाइश को चाहे, अनावश्यक समझें, रमानाथ उसे परमावश्यक समझता था।

3. वैवाहिक समस्या :- प्रेमचंदयुगीन समाज में लड़की का विवाह एक बहुत बड़ी समस्या थी। समस्या तो आज भी है, लेकिन आज की स्थिति पहले से काफी परिवर्तित हो गई है। उस समय धन के आधार पर ही विवाह होते थे। लड़का योग्य है या अयोग्य विद्वान् है या मूर्ख, युवा है या वृद्ध, इसकी ओर कोई ध्यान नहीं देता था। लड़की के माता- पिता केवल यह देखते कि लड़का कितना धनी है, उसके माता-पिता के पास कितनी धन-संपत्ति है। रमानाथ और जालपा के विवाह द्वारा प्रेमचंद विवाह के लिए स्वास्थ्य और चरित्र की अनिवार्यता पर बल देते हैं। यहाँ यह ज्ञातव्य है कि 'निर्मला' आदि उपन्यासों की भाँति 'गबन' में विवाह की समस्या को विस्तार से नहीं उठाया गया, परन्तु जिन- जिन पहलुओं को चित्रित किया गया है, वह कम महत्वपूर्ण नहीं हैं।

4. विधवा जीवन की समस्या :- अनमेल विवाह के साथ-साथ एक अन्य समस्या की ओर भी प्रेमचंद ने पाठकों का ध्यान आकर्षित करना चाहा है- और वह है पति की मृत्यु के उपरांत विधवा की सामाजिक स्थिति की समस्या। रतन के चरित्र द्वारा इसी ओर अप्रत्यक्ष रूप में संकेत दिया गया है। वस्तुतः प्रेमचंद विधवाओं की दयनीय दशा के कारण बहुत दुःखी थे और उनको वह सभी सुविधाएँ दिलाने के पक्ष में थे, जो उन्हें नैतिक दृष्टि से मिलनी चाहिए। 'गबन' में विधवा की समस्या को उतने विस्तृत एवं व्यापक रूप में नहीं उठाया गया जितना सेवासदन आदि उपन्यासों में परन्तु विधवा-जीवन की जिस समस्या की प्रस्तुत किया गया है, वह कम महत्वपूर्ण नहीं है। गबन में प्रेमचंद ने विधवाओं के आर्थिक अधिकार की समस्या को चित्रित किया है। रतन के पति की मृत्यु के उपरांत उसका भतीजा संपत्ति पर अधिकार कर लेता है क्योंकि सम्मिलित परिवार में विधवा का अपने पुरुष की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होता। रतन की करुणा-स्थिति भारतीय की पराधीनता की ओर संकेत करती है। उन्हें पति की संपत्ति पर अधिकार देकर ही समस्या का निदान किया जा सकता है।

5. ऋण की समस्या :- मध्यवर्ग के व्यक्ति की आर्थिक स्थिति अधिक दृढ़ नहीं होती, किन्तु समाज में अपनी प्रतिष्ठा बनाये रखने के लिए उसे व्यय काफी करना पड़ता है। इसका परिणाम यह होता है कि वह अनायास ही ऋण के जाल में उलझ जाता है- और ऐसा उलझता है कि उससे निकलना असंभव हो जाता है। 'गवन' में इस समस्या की ओर दीनानाथ और रमानाथ के माध्यम से संकेत किया गया है। बाबू दीनानाथ अपने पुत्र रमानाथ के विवाह के लिए कर्ज लेते हैं। उनका विचार है कि लड़की वाले के यहाँ से रुपये आने पर ऋण सर्राफ से पीछा छुराने के लिए 25,000 रुपये के गहने केवल 2500 रुपये में बेचने पड़ते हैं। इसी प्रकार रमानाथ भी अपनी पत्नी जालपा के गहने उधार ले आता है जिसके फलस्वरूप उसे अनेक कष्टों का सामना करना पड़ता है।

6. विदेशीपन की नकल : - 'गबन' में पाश्चात्य सभ्यता के अनु- करण की समस्या भी प्रस्तुत की गई है, यद्यपि यह गौण रूप में ही चित्रित हुई है। प्रेमचंद का युग पाश्चात्य सभ्यता के अन्धानुकरण की ओर तेजी से बढ़ रहा था। गवन में इस अनुकरण की प्रवृत्ति कहीं-कहीं देखी जा सकती है। रमेश और दयानाय काशी के धनी वकील की पत्नी रतन की चाय-पार्टी में विदेशी चीजों के प्रयोग की कटु आलोचना करते हैं। भारतीयों में पाश्चात्य अनुकरण की मनोवृत्ति आज भी विद्यमान है। वस्तुतः बाह्य रूप में स्वतंत्र होने पर भी हम अभी तक मानसिक रूप से स्वतंत्र नहीं हो सके हैं।

7. सुव्यवस्थित पुलिस-प्रबन्ध की समस्या :- प्रेमचंद ने 'गबन' में भारतीय पुलिस की कार्य-प्रणाली एवं उसके हथकंडों का चित्रण करके सुव्यवस्थित पुलिस-प्रबंध की समस्या को प्रस्तुत किया है। अंग्रेजी शासन में पुलिस न्याय की स्थापना के लिए नहीं थी, बल्कि वह अपनी स्वार्थ-सिद्धि के लिए न्याय का ढोंग रचती थी। वह सच्चे अपराधियों की खोज नहीं करती वरन् झूठे मुकदमें खड़ी करती है तथा झूठे गवाह एकत्र करके मिथ्या - न्याय का षड्यंत्र रचती है। रमानाथ के निर्दोष प्रमाणित होने पर भी पुलिस के अफसर उसे अपने चंगुल में फँसाए रखते हैं और उसका एक मुकदमें में गवाह के रूप में उपयोग करते हैं।

'गबन' में उपर्युक्त समस्याओं के अतिरिक्त अन्य छोटी-छोटी समस्याओं को भी चित्रित किया गया है। मनोरंजन के व्यवसाध्य साधनों की समस्या आर्थिक समस्या, दान का पाखण्ड, वकीलों और डॉक्टरों की स्थिति स्वदेशी-विदेशी समस्या, मिल मालिकों की दोहरी नीति, रिश्वत की समस्या, अछूतोद्धार की समस्या, पारिवारिक अव्यवस्थाएँ, वेश्या-जीवन की समस्या आदि अनेक समस्याओं को ''गबन' में गौण रूप में उठाया गया है। 

उपर्युक्त अध्ययन के आलोक में यह कहा जा सकता 'कि 'गबन' में उपन्यासकार ने समाज की विभिन्न समस्याओं को प्रस्तुत किया है।

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