दरोगा अमीचन्द कहानी की कथावस्तु- प्रस्तुत कहानी “दारोगा अमीचन्द" की आरम्भिक अवस्था परिचयात्मक रूप में आयी है। बात सन् 1934 की है जब देश भर की जेलें ए,
दरोगा अमीचन्द कहानी की कथावस्तु - Daroga Amichand Kahani Ki kathavastu
दरोगा अमीचन्द कहानी की कथावस्तु- कहानी साहित्य की ऐसी विधा है जो जीवन के साथ चलती है। कहानी घटना के क्रम को उसकी यथार्थ स्थिति में प्रस्तुत करती हुई पाठकों को कुछ सोचने-विचारने पर मज़बूर करती है। कथावस्तु कहानी की आलोचना का पहला व महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। कथावस्तु में तीन स्थितियां अपेक्षित हैं - आरम्भ, विकास और चरम सीमा। आरम्भ में कहानीकार घटना व पात्रों का परिचय देता है और विकासावस्था कहानी के कथ्य से जुड़ी घटनाओं और पात्रों के संघर्ष का परिचय देती है और चरम सीमा पर कहानीकार अपने उद्देश्य को स्पष्ट करता है। प्रस्तुत कहानी “दारोगा अमीचन्द" की आरम्भिक अवस्था परिचयात्मक रूप में आयी है। बात सन् 1934 की है जब देश भर की जेलें ए, बी, सी क्लास के असन्तुष्ट आन्दोलन कर्ताओं से भरी थीं जो 'सियासी' नाम की बिरादरी में शामिल होकर दिन काट रहे थे। लेखक ने एक जेल और एक दारोगा अमीरचन्द को घटना के केन्द्र में रख कर चित्रण किया है। दारोगा अमीरचन्द एक जालिम प्रवृत्ति के व्यक्ति थे जो स्वार्थी वृत्ति के कारण अंग्रेज़ सरकार के पिट्ठू बने हुए थे, सियासी कैदियों पर अत्याचार करते थे और दारोगा से डिप्टी साहब और राय साहब की पदोन्नति पा चुके थे और अब ब्रिटिश एम्पायर का आर्डर उन्हें शीघ्र मिलने वाला था। खत्री बिरादरी के अमीरचन्द मूंछें ऐसी उमेठ कर रखते थे मानो ठाकुर हों। कहानी के विकास में जेल में अकाली कैदियों और अमीरचन्द के बीच व्याप्त तनाव को चित्रित किया गया है। लेखक ने इस प्रसंग में अकाली दल की सामूहिक एकता के समक्ष जल्लाद व निडर अमीचन्द की मानसिक कायरता का वर्णन किया है। अकाली दल परेड वाले दिन अमीरचन्द को आई.जी. के दौरे में असमर्थ दारोगा प्रमाणित कर सकते थे लेकिन एक बुजुर्ग के परामर्श से सहमत होकर मात्र यही निर्णय लिया कि सुलह करने आए दारोगा से मोल - तोल नहीं करेंगे वरन् एक बार "हमारे सामने अपनी मूंछे नीची कर ले, फिर हम सब उसके कायदे-कानून मान लेंगे।" कथानक की चरम सीमा में हम पाते हैं कि जल्लाद प्रवृत्ति के अमीचन्द ने अकाली दल के समक्ष अपनी मूंछें नीची कीं और उसकी जेल में आई. जी. नियन्त्रण की व्यवस्था उचित न पाकर उसे पुनः दारोगा बना दिया और अपने प्रति सरकार के इस रवैया को सहन न कर पाने के कारण अमीचन्द को मुंह छिपाने के लिए नौकरी से त्यागपत्र देना पड़ा।
कहानी का कथानक मौलिकता लिए है तो सजीव व यथार्थ रूप से राजनीतिक व सामाजिक व्यवस्था का परिचय देता है और स्पष्ट करता है कि आज़ादी पाना व अमीरचन्द जैसे पिट्ठलग्गू व्यक्ति का अंह टूटना उस समय की अनिवार्यताएं थीं।
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