दरोगा अमीचंद कहानी की भाषा शैली और उद्देश्य: दरोगा अमीचंद कहानी की रचना करते समय लेखक का ध्यान उद्देश्य पर केन्द्रित रहना चाहिए, क्योंकि कहानी मात्र
दरोगा अमीचंद कहानी की भाषा शैली और उद्देश्य
दरोगा अमीचंद कहानी की भाषा शैली
भाषा शैली : प्रभावान्विति कहानी का विशेष गुण है और भाषा शैली के बिना प्रभावान्विति संभव नहीं अर्थात् भाषा शैली कहानी का विशेष तत्त्व है। अज्ञेय एक कवि भी हैं अतएव उनकी भाषा परिमार्जित, विशुद्ध, सरल व सांकेतिक होती है। प्रस्तुत कहानी में लेखक ने घटनानुरूप शब्दों व मुहावरों का प्रयोग किया है, उर्दू, पंजाबी व अंग्रेजी शब्दों के प्रयोग से अभिव्यक्ति में सार्थकता आयी है तथा कहानी में घटना का दृश्य प्रस्तुत हो जाता है। कहानी में मुहावरों का प्रयोग भी मिलता है – मसलन मश्हूर है, "एक खालसा सवा लाख। निम्नांकित तुलनात्मक अभिव्यक्ति क्रांतिकारियों की दृढ़ मन'स्थिति का परिचय देती है - 'जुल्म तो उन्होंने बहुत कर लिए, अकालियों पर कोई असर नहीं हुआ। मानो गैंडे की पीड़ पर कोड़े पड़ रहे हों: सौ पड़ें तो क्या हज़ार पड़े तो क्या। आत्मकथात्मक शैली में लिखी गई इस कहानी में लेखक ने तर्कों व निष्कर्षों द्वारा व्यंग्य को सफलतापूर्वक संप्रेषित किया है - "सुलह करने आए बनिये से मोल तोल नहीं करना चाहिए।"
"मामला संगीन हैं, हड़ताल का नहीं बलवे का है।" इत्यादि।
दरोगा अमीचंद कहानी का उद्देश्य
उद्देश्य : दरोगा अमीचंद कहानी की रचना करते समय लेखक का ध्यान उद्देश्य पर केन्द्रित रहना चाहिए, क्योंकि कहानी मात्र घटना व दो-एक पात्रों द्वारा अपना प्रभाव डालती है । प्रस्तुत कहानी का उद्देश्य स्वतन्त्रता के पूर्व जब द्वितीय विश्वयुद्ध की भूमिका तैयार हो गई थी उस समय भारतीय नागरिकों की वृत्ति का चित्रण करना जो छोटे-छोटे स्वार्थों की पूर्ति के लिए अंग्रेजों के पिट्टू बने हुए थे । आज़ादी प्राप्त करने के इच्छुक भारतीय जिनका मुंह बंद करने व क्रांति को रोकने के लिए जेल भेज दिया जाता था उन पर यह पिट्ठू ही जुल्म ढ़ाते थे । अंग्रेज़ों के इन पिट्टुओं के संदर्भ में दारोगा अमीचन्द का उदाहरण दिया जा सकता है जो दारोगा से डिप्टी व डिप्टी से राय सहब बन चुका था और ब्रिटिश एम्पायर का खिताब पाने की इच्छा से क्रांतिकारियों पर जुल्म ढ़ाता था तथा काले पानी की सजा दिलाता था । लेखक ने आपबीती के रूप में एक यथार्थ को निरूपित किया है ।
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