बहू की विदा एकांकी का सारांश : 'बहू की विदा' विनोद रस्तोगी का लोकप्रिय एकांकी है। इसमें दहेज की समस्या उठाई गई है। जीवनलाल एक धनी व्यापारी है। उनके लड
बहू की विदा एकांकी का सारांश और उद्देश्य
बहू की विदा एकांकी का सारांश
बहू की विदा एकांकी का सारांश : 'बहू की विदा' विनोद रस्तोगी का लोकप्रिय एकांकी है। इसमें दहेज की समस्या उठाई गई है। जीवनलाल एक धनी व्यापारी है। उनके लड़के रमेश की शादी कमला से हुई है। कमला का बड़ा भाई प्रमोद उसे लेने के लिए कमला के घर आता है। परंतु जीवनलाल कमला की बिदाई नहीं करता। वह प्रमोद से कहता है कि- "जाओ, कह देना जाकर अपनी माँ से अगर बेटी को बिदा करना चाहती है तो पहले उस घाव के लिए मरहम भेजे घाव का मरहम अर्थात शादी में पूरे पैसे नहीं दिए थे। पाँच हजार रूपए लाकर दे दो तभी कमला की बिदाई होगी। प्रमोद कहता है जो हमारी बहन है क्या वह आपकी कुछ नहीं ? तो जीवनलाल कहते हैं बेटी, बेटी है और बहू। राजेश्वरी बेटी और बहू में अंतर नहीं मानती। राजेश्वरी के बार-बार समझाने के बाद भी जीवनलाल कमला को बिदा नहीं करता। कमला का पति रमेश अपनी बहन गौरी को लाने के लिए गया है। जो कमला की स्थिति है वैसी ही वहाँ गौरी की भी है। रमेश गौरी को बिना लिए ही खाली हाथ आया है। जीवनलाल कहते हैं- "गौरी कहाँ है ? तो रमेश कहता है, उन्होंने विदा नहीं की। बाबूजी कह रहे थे दहेज पूरा नहीं दिया गया। बेटी और बहू की अजीब उलझन में वे पड़ जाते हैं। जीवनलाल की आँखें खुल जाती हैं। और कमला को विदा करने के लिए तैयार हो जाते हैं।
बहू की विदा एकांकी का उद्देश्य
बहू की विदा एकांकी का उद्देश्य : 'बहू की विदा' एकांकी में दहेज की समस्या उठाई गई है। दहेज लेना या दहेज देना दोनों बातें गलत हैं। पढ़े लिखे लोग भी दहेज की माँग करते हैं। तब इस समस्या की गंभीरता स्पष्ट होती है । दहेज लेना अच्छी बात नहीं है। अगर इसे रोकता है तो सामाजिक प्रबोधन की आवश्यकता है। प्रस्तुत एकांकी के माध्यम से रस्तोगीजी ने महत्वपूर्ण सामाजिक समस्या को उजागर किया है।
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