संसद भवन पर निबंध (Sansad Bhawan par Nibandh)
संसद भवन भारत की राजधानी दिल्ली में राष्ट्रपति भवन से 750 मीटर की दूरी पर, संसद मार्ग पर स्थित है। संसद भवन को ब्रिटिश वास्तुकार एड्विन लूट्यन्स और सर हर्बर्ट बेकर द्वारा डिज़ाइन किया गया था और इसका निर्माण 1921 और 1927 के बीच किया गया था। संसद भवन का उद्घाटन भारत के तत्कालीन वायसराय लार्ड इरविन ने 18 जनवरी 1927 को किया था। संसद भवन वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना है। यह विश्व के सर्वोत्तम संसद भवनों में से एक माना जाता है। संपूर्ण भवन के निर्माण कार्य में कुल 83 लाख रुपये की लागत आई। गोलाकार गलियारों के कारण इसको शुरू में सर्कलुर हाउस कहा जाता था।
इसे जनवरी 1927 में शाही विधान परिषद की सीट के रूप में खोला गया था। भारत में ब्रिटिश शासन के अंत के बाद, इसे संविधान सभा ने अपने अधिकार में ले लिया, और फिर 1950 में भारत का संविधान लागू होने के बाद भारतीय संसद ने इसे अपने अधिकार में ले लिया।
संसद भवन की संरचना
संसद भवन एक विशाल वृत्ताकार भवन है जिसका व्यास 560 फुट (170.69 मीटर) है और जिसकी परिधि लगभग 536.33 मीटर है तथा यह लगभग छह एकड़ (24281.16 वर्ग मीटर) क्षेत्रफल में फैला हुआ है। संसद भवन के प्रथम तल पर खुले बरामदे के किनारे-किनारे क्रीम रंग के बालुई पत्थर के 144 स्तंभ हैं और प्रत्येक स्तंभ की ऊंचाई 27 फुट (8.23 मीटर) है । भवन के 12 द्वार हैं जिनमें से पाँच के सामने द्वार मंडप बने हुए हैं। संसद मार्ग पर स्थित द्वार सं0 1 मुख्य संसद भवन का द्वार है। संसद भवन में भवन के भीतर और बाहर फव्वारों की बनावट, भारतीय प्रतीकों "छज्जों" के प्रयोग जो दीवारों और खिड़कियों पर छाया का काम करते हैं और संगमरमर से बनी तरह-तरह की "जाली" प्राचीन इमारतों और स्मारकों में झलकते शिल्प कौशल का स्मरण कराते हैं । इसमें भारतीय कला की प्राचीन विशेषताओं के साथ ध्वनि व्यवस्था, वातानुकूलन, साथ-साथ भाषांतरण और स्वचालित मतदान आदि जैसी आधुनिक वैज्ञानिक उपलब्धियां शामिल हैं।
संसद भवन की आंतरिक संरचना
इस भवन का केंद्र बिंदु केंद्रीय कक्ष (सेंट्रल हाल) का विशाल वृत्ताकार ढांचा है। केंद्रीय कक्ष के गुबंद का व्यास 98 फुट तथा इसकी ऊँचाई 118 फुट है। यह विश्व के बहुत शानदार गुबंदों में से एक माना जाता है। भारत की संविधान सभा की बैठक (1946-49) भी इसी कक्ष में हुई थी। 1947 में ब्रिटिश हुकूमत से भारतीयों के हाथों में सत्ता का ऐतिहासिक हस्तांतरण भी इसी कक्ष में हुआ था। इस कक्ष का प्रयोग अब दोनों सदनों की संयुक्त बैठक के लिए तथा राष्ट्रपति और विशिष्ट अतिथियों-राज्य या शासनाध्यक्ष आदि के अभिभाषण के लिए किया जाता है। कक्ष राष्ट्रीय नेताओं के चित्रों से सज़ा हुआ है। केंद्रीय कक्ष के तीन ओर लोक सभा, राज्य सभा और ग्रंथालय के तीन कक्ष हैं। उनके बीच सुंदर बग़ीचा है जिसमें घनी हरी घास के लान तथा फव्वारे हैं। इन तीनों कक्षों के चारों ओर एक चार मंजिला वृत्ताकार इमारत बनी हुई है। इसमें मंत्रियों, संसदीय समितियों के सभापतियों और पार्टी के कार्यालय हैं। लोक सभा तथा राज्य सभा सचिवालयों के महत्वपूर्ण कार्यालय और संसदीय कार्य मंत्रालय के कार्यालय भी यहीं हैं।
उपसंहार
संसद भवन परिसर हमारे संसदीय लोकतंत्र के प्रादुर्भाव का साक्षी रहा है। इस इमारत की एक एक दीवार भारत के इतिहास की गवाह है। संसद के सत्रों के दौरान और अन्य महत्वपूर्ण अवसरों पर भवन में महत्वपूर्ण स्थलों को विशेष रूप से पुष्पों से सुसज्जित किया जाता है। भारत में ब्रिटिश शासन के अंत के बाद, इसे संविधान सभा ने अपने अधिकार में ले लिया, और फिर 1950 में भारत का संविधान लागू होने के बाद भारतीय संसद ने इसे अपने अधिकार में ले लिया।