अस्तित्ववाद का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
अस्तित्ववाद का आलोचनात्मक मूल्यांकन
अस्तित्ववाद का प्रादुर्भाव हीगलीय विचारों व पूँजीवादी यन्त्रिकता के विरोध में हआ। इसका मानना है कि परिस्थितियों मनुष्य को नहीं बनाती बल्कि मनुष्य स्वयं अपने वर्तमान व भविष्य का निर्माण करता है। अस्तित्ववाद के अनुसार मनुष्य कोई यन्त्रवत् वस्तु नहीं है अतः उसे कोरी वैज्ञानिकता, यान्त्रिकता के साथ नहीं समझा जा सकता है। इस प्रकार अस्तित्वाद का आलोचनात्मक मूल्यांकन करते हुए कहा जा सकता है कि अस्तित्ववाद मानवमुक्ति व मानववाद की स्थापना व मानव के सर्वांगीण विकास को सुनिश्चित करना है। यद्यपि अस्तित्ववाद में भी कई दोष हैं, जैसे यह परिस्थितियों की भूमिका को पूर्णतया उपेक्षित करता है, तथापि इन दोषों के बावजूद अस्तित्ववाद मानव की गरिमा स्वतन्त्रता अधिकारों की रक्षा इत्यादि की दृष्टि से एक अत्यन्त ही महत्वपूर्ण धारणा है।