Hindi Essay on "Scout Guide", "स्काउट गाइड पर निबंध" for Class 5, 6, 7, 8, 9 & 10 वर्तमान स्काउटिंग नामक संस्था का अधिकांश प्रारूप भारतीय परम्परागत शिक्षा प्रणाली में निहित था जब हमारे ऋषि, मुनि तथा आचार्य प्रकृति की गोद में आश्रमों में बाल ब्रह्मचारियों को हर प्रकार की शिक्षा दिया करते थे। भारतवर्ष में 1909 में स्काउटिंग और 1911 में गर्ल्स गाइडिंग प्रारम्भ हुई। बंगलौर में प्रथम स्काउट टुप और प्रथम गाइड कम्पनी का श्रीगणेश हुआ। अन्य शहरों में भी टूप खुले किन्तु उनका सीधा सम्पर्क इंग्लैण्ड से था और ये संस्थायें विदेशी युरोपीय बालकों के लिए ही थी। श्रीमती ऐनी बेसेण्ट ने भारतीय बच्चों को भी स्काउटिंग में प्रवेश देने के लिए दिल्ली में लेजिस्लेटिव एसेम्बली में बड़ा प्रभावकारी भाषण दिया।
Hindi Essay on "Scout Guide", "स्काउट गाइड पर निबंध" for Class 5, 6, 7, 8, 9 & 10
प्रस्तावना : आज समाज को ऐसे युवकों की आवश्यकता है, जो समाज की नि:स्वार्थ सेवा कर सकें। किराए पर लाये हुए सेवक, सेवक नहीं कहे जाते, उन्हें लोग नौकर कहते हैं। आज देश को त्याग और बलिदान करने वाले नवयुवकों की आवश्यकता है जो अपने देश की, समाज की, हर समय और हर स्थिति में सेवा करने के लिये उद्यत रहें। भाड़े के सेवकों से कभी देश का भला नहीं हुआ करता। उसके लिये सच्चे समाज-सेवी चाहिये, जो जनता के सुख-दु:ख को पहचान सकें और उसे अपना समझ सके।
सेवा, सहानुभूति एवं सहृदयता की कोमल और पवित्र भावनाओं का उदयकाल मनुष्य की बाल्यावस्था ही है। अच्छी या बुरी आदतें जैसी भी इस काल में मनुष्य में आ जाती हैं। वे जीवन भर उसके साथ रहती हैं। बुढ्डे तोते को आप नहीं पढ़ा सकते। तोते का बच्चा सरलता से राधा कृष्ण कहने लगता है। इसी दृष्टिकोण को लेकर समाज सेवा की पवित्र भावनाओं को। बाल्यकाल में ही जन्म देने के लिये बालचर संस्था का अपना विशेष महत्व है। ताकि बाल्यकाल में ही जन्म देने के लिये बालचर संस्था का अपना विशेष महत्व है। इसका प्रशिक्षण केन्द्र आज प्रत्येक विद्यालय है। नदी में डूबते हुए कितने व्यक्तियों को आज तक बालचरों ने बचाया, अग्नि की भयानक ज्वालाओं में भस्म होते हुए कितने घरों की रक्षा की, कराहते हुए टूटी। टॉग वाले कितने व्यक्तियों को अस्पताल पहुंचाया, कितने लोगों की उन्होंने प्राथमिक चिकित्सा। की, आज यह तथ्य सर्वविदित है। आज कौन है जो बालचर संस्था के महत्व को नहीं पहचानता, जबकि देश के ऊपर आपत्तियों के काले बादल छाये हुए हैं। आन्तरिक और बाह्य युद्ध की चिंगारियाँ चारों ओर दहक रही हैं। ऐसी स्थिति में बालचर संस्था के सदस्य ही देश के अवैतनिक सच्चे सिपाही सिद्ध होंगे।
सेवा, सहानुभूति एवं सहृदयता की कोमल और पवित्र भावनाओं का उदयकाल मनुष्य की बाल्यावस्था ही है। अच्छी या बुरी आदतें जैसी भी इस काल में मनुष्य में आ जाती हैं। वे जीवन भर उसके साथ रहती हैं। बुढ्डे तोते को आप नहीं पढ़ा सकते। तोते का बच्चा सरलता से राधा कृष्ण कहने लगता है। इसी दृष्टिकोण को लेकर समाज सेवा की पवित्र भावनाओं को। बाल्यकाल में ही जन्म देने के लिये बालचर संस्था का अपना विशेष महत्व है। ताकि बाल्यकाल में ही जन्म देने के लिये बालचर संस्था का अपना विशेष महत्व है। इसका प्रशिक्षण केन्द्र आज प्रत्येक विद्यालय है। नदी में डूबते हुए कितने व्यक्तियों को आज तक बालचरों ने बचाया, अग्नि की भयानक ज्वालाओं में भस्म होते हुए कितने घरों की रक्षा की, कराहते हुए टूटी। टॉग वाले कितने व्यक्तियों को अस्पताल पहुंचाया, कितने लोगों की उन्होंने प्राथमिक चिकित्सा। की, आज यह तथ्य सर्वविदित है। आज कौन है जो बालचर संस्था के महत्व को नहीं पहचानता, जबकि देश के ऊपर आपत्तियों के काले बादल छाये हुए हैं। आन्तरिक और बाह्य युद्ध की चिंगारियाँ चारों ओर दहक रही हैं। ऐसी स्थिति में बालचर संस्था के सदस्य ही देश के अवैतनिक सच्चे सिपाही सिद्ध होंगे।
वर्तमान स्काउटिंग नामक संस्था का अधिकांश प्रारूप भारतीय परम्परागत शिक्षा प्रणाली में निहित था जब हमारे ऋषि, मुनि तथा आचार्य प्रकृति की गोद में आश्रमों में बाल ब्रह्मचारियों को हर प्रकार की शिक्षा दिया करते थे। पठन-पाठन के अतिरिक्त कुटिया अथवा तम्बू का निर्माण, पाक विद्या, प्राथमिक चिकित्सा, सेवा-सुश्रुषा, सखा भाव, मार्ग निर्माण, पशु-पक्षियों का साहचर्य, होता था। आखेट, खेल-कूद, व्यायाम तथा सैन्य शिक्षा जैसे जटिल विषयों का समावेश शिक्षा के अन्तर्गत होता था।
स्काउट का इतिहास : बालचर संस्था का जन्म एक अंग्रेज महाशय के हाथों से हुआ था जिनका नाम था 'सर रॉबर्ट बैदन पाँवल'। सन् 1900 में जिस समय अफ्रीका में बोअर-युद्ध हो रहा था, तब उन्होंने इस प्रकार की बालचर सेना का निर्माण किया था। इस सेना से अंग्रेजों को युद्ध में बड़ी सहायता मिली। उन्होंने बालचरों को स्वयं सैनिक प्रशिक्षण दिया था। अपने इस सफल अनुभव के आधार पर उन्होंने यह निश्चय किया कि यह संस्था युद्ध के अतिरिक्त शान्तिकाल में भी उपयोगी सिद्ध हो सकती है। इसी दृढ़ निश्चय के आधार पर उन्होंने संस्था का देश और विदेशों में प्रचार किया।
भारत में स्काउट गाइड की स्थापना : भारतवर्ष में 1909 में स्काउटिंग और 1911 में गर्ल्स गाइडिंग प्रारम्भ हुई। बंगलौर में प्रथम स्काउट टुप और प्रथम गाइड कम्पनी का श्रीगणेश हुआ। अन्य शहरों में भी टूप खुले किन्तु उनका सीधा सम्पर्क इंग्लैण्ड से था और ये संस्थायें विदेशी युरोपीय बालकों के लिए ही थी। श्रीमती ऐनी बेसेण्ट ने भारतीय बच्चों को भी स्काउटिंग में प्रवेश देने के लिए दिल्ली में लेजिस्लेटिव एसेम्बली में बड़ा प्रभावकारी भाषण दिया। महामना मदनमोहन मालवीय तथा डॉ० हृदयनाथ कुंजरू ने भी प्रयास किए किन्तु अंग्रेजी सरकार पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अतः स्काउटिंग से मिलती-जुलती संस्था प्रारम्भ की गई जिनमें श्रीमती ऐनी बेसेण्ट द्वारा प्रतिपादित “Sons and Daughters of India” नामक संस्था प्रमुख थी। जिसका लक्ष्य था I Serve” 1914 में पंडित श्रीराम वाजपेयी ने लोक सेवा बालक दल की स्थापना शाहजहाँपुर में की जिसके अध्यक्ष पं० मदनमोहन मालवीय एवं सचिव डॉ० हृदय नाथ कुंजरू थे। चेन्नई में श्री जे० आई० आइनक द्वारा ब्वाय शिकारी मूवमेंट चलाया गया तथा श्री वी० आर० चेयरमैन ने स्कूल ब्वाय लीग ऑफ ऑनर नामक संस्था का निर्माण किया। सेंट्रल हिन्दू स्कूल के प्रधानाध्यापक डॉ० जी० एस० आशुतोष ने विद्यार्थियों की कैडेट कोर नाम की संस्था स्थापित की।
बहुत प्रयास करने के उपरान्त भी जब भारतीय बालकों को स्काउटिंग में प्रवेश नहीं मिला तो सुश्री ऐनी बेसेण्ट ने भारतीय बालकों के लिए स्वतन्त्र स्काउट संस्था स्थापित की, जिसका नाम रखा गया “इण्डियन ब्वायज स्काउट एसोसियेशन”। एक अक्टूबर, 1916 को चेन्नई में अडयार नामक स्थान पर इसकी रैली हुई। इसका अपना झण्डा बना और प्रतिज्ञा में देश शब्द सम्मिलित किया गया। टुपों का नामकरण भारतीय महापुरुषों के नाम पर आधारित था। सन् 1918 में पंडित श्री राम वाजपेयी अपने 100 स्वयंसेवकों के साथ प्रयाग के कण मेले में पधारे और प्रयाग सेवा समिति के साथ मिलकर मेले में कार्य किया। महामना मदन मोहन मालवीय जी के आग्रह पर वाजपेयी जी इलाहाबाद आ गए। 1 दिसम्बर, 1918 को “अखिल भारतीय सेवा समिति” ब्वाय स्काउट एसोसियेशन की स्थापना हुई। जिसके संरक्षक तत्कालीन गवर्नर हरकोर्ट बटलर थे।
मालवीय जी की सेवा समिति ब्वाय स्काउट संस्था तथा श्रीमती ऐनी बेसेण्ट की "इण्डियन ब्वॉय स्काउट संस्था के अतिरिक्त अनेक स्थानों पर मिलती-जुलती स्वतन्त्र संस्थायें खुली जैसे सन् 1915 में द सिन्ध ब्वॉय स्काउट एसोसियेशन, सन् 1916 में 'द बांगली ब्वॉय स्काउट लीग द ब्वाय ऑफ बंगाल, “द पारसी स्काउटिंग सोसाइटी” द ब्वॉय स्काउट ऑफ आगरा एण्ड अवध'। इसके अतिरिक्त अनेक रियासतों ने स्काउटिंग संस्थायें खोलीं, अतः स्वतन्त्रता प्राप्ति के उपरान्त एक राष्ट्रीय संस्था की स्थापना 7 नवम्बर 1950 को भारतीय राष्ट्रीय स्काउट की गई जिसका नाम “भारत स्काउट और गाइड” रखा गया। 15 अगस्त, 1951 को “गर्ल्स गाइड एसोसियेशन इन इण्डिया का समावेश इसमें किया गया। अब समस्त भारत में एकमात्र संस्था भारत स्काउट और गाइड है। प्रत्येक राज्य की स्काउट संस्थायें इसी राष्ट्रीय संस्था से संबद्ध हैं।
स्काउट गाइड/बालचर संस्था का आधुनिक स्वरुप : बालचर संस्था का आधुनिक स्वरूप एक सुसंगठित सूक्ष्म सैनिक प्रयास है। आठ वर्ष की अवस्था वाला या इससे अधिक अवस्था का प्रत्येक बालक इस संस्था का सदस्य बनकर अपने को गौरवशाली समझता है। स्काउट कहलाने में उसे एक विशेष स्वाभिमान का अनुभव होता है। बालचरों को विधिवत् उनके कर्त्वयों का ज्ञान कराया जाता है। उन्हें देश और समाज की सेवा करने की प्रतिज्ञा लेनी होती है। एक पैट्रोल में आठ बालचर होते हैं। उनका नायक पैट्रोल लीडर कहा जाता है, जो उन सब में तेज होता है और उनका पथ-प्रदर्शन करता है। चार पेट्रोल से अधिक पैट्रोल का एक टुप बनाया जाता है, जिसका नायक टुप लीडर कहा जाता है। प्रत्येक टुप का अधिकारी एक स्काउट मास्टर होता है, जो आगे टुप के प्रत्येक स्काउट की शिक्षा, वेश-भूषा, कर्तव्य-पालन, अनुशासन आदि की देखभाल रखता है तथा उन्हें प्रशिक्षण भी देता है। जिले के समस्त ट्रप डिस्ट्रिक्ट स्काउट कमिश्नर के अधीन होते हैं। डिस्ट्रिक्ट स्काउट कमिश्नर किसी ऐसे प्रतिभाशाली योग्य पुरुष को बनाया जाता है, जो जिले की समस्त टुपों का संचालन कर सके। प्रान्त की समस्त बालचर संस्थायें प्रान्तीय स्काउट कमिश्नर के अधीन होती हैं, जो समय-समय पर उनके द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करती हैं।
स्काउट गाइड की ड्रेस : सेना के समान स्काउटों की वेशभूषा भी एक समान होती है, उसमें अमीरी और गरीबी का कोई प्रश्न नहीं होता। सब समान वस्त्र पहिनते हैं, साथ-साथ भोजन करते हैं तथा पारस्परिक सहयोग से समस्याओं को सुलझाते हैं। इस प्रकार विद्यार्थी में समानता और सहयोग की भावना का प्रारम्भ से ही उदय हो जाता है। प्रत्येक बालचर खाकी मौजे, खाकी नेकर, खाकी कमीज और खाकी टोपी या खाकी साफा पहनता है। खाकी टोपी के विषय में तो अब कुछ नियम शिथिल-सा हो गया है, परन्तु शेष वेश-भूषा अब भी ज्यों-की-त्यों है। सबके समान जूते होते हैं, सभी स्कार्फ धारण करते हैं। प्रत्येक स्काउट की वेशभूषा में सीटी, झण्डी और लाठी की भी अनिवार्यता है। ये तीनों वस्तुये अपना-अपना विशेष महत्व रखती है और समय पड़ने पर बालचर की सहायक सिद्ध होती है।
स्काउट गाइड की शिक्षा : मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सहायक सिद्ध होने के लिये बालचरों को अनेक प्रकार की शिक्षा दी जाती है। उन शिक्षाओं से वे आपत्तिग्रस्त मनुष्यों की सेवा करते हैं। शिक्षायें ये हैं—भोजन बनाना, तैरना, नदी पर पुल बनाना, घायल को पट्टी बाँधना, प्रारम्भिक चिकित्सा करना, घायल को अस्पताल पहुँचाना, गाँठ लगाना, मार्ग ढूंढना, सिगनल देना, सामयिक घर बनाना, सामयिक सड़क बनाना, आदि। बालचर को इन विषयों की कई परीक्षायें उत्तीर्ण करनी पड़ती हैं। वह एक डायरी रखता है, जिसमें वह अपने दैनिक कार्यक्रम का उल्लेख करता है, स्वास्थ्य रक्षा के लिये उसे सभी तरह के खेल खिलाये जाते हैं। ऊपर लिखी हुई सभी शिक्षायें समाज सेवा से भी सम्बन्धित हैं और सैनिक शिक्षा से भी। सैनिक के लिये ये सभी बातें जानना अत्यन्त आवश्यक होता है।
स्काउट गाइड के कर्त्तव्य : बालचर का प्रथम कर्तव्य है कि वह दीन-दुखियों की सेवा करे और उनसे सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करें। उसका प्रत्येक कार्य समाज हित की दृष्टि से होना चाहिये। दूसरों की सहायता के लिये उसे सदैव तत्पर रहना चाहिये, चाहे दिन हो या रात वह कभी भी बुलाया जा सकता है। बालचर का प्रमुख कर्तव्य है कि वह अपने प्राणों को संकट में डालकर दूसरों के प्राणों की रक्षा करे। सर्वसाधारण का हित ध्यान में रखें तथा अपने कर्तव्य का पूर्ण रूप से पालन करे। उसे सत्यवादी, सहानुभूतिपूर्ण, संवेदनशील, देशभक्त,कर्तव्य-परायण, आज्ञा-पालक, दयालु एवं सहनशील होना चाहिये। उसे साहसी एवं ईश्वर-निष्ठ होना चाहिये। ईश्वर में विश्वास और श्रद्धा रखते हुए भयंकर-से-भयंकर स्थिति में भी साहस नहीं खाना चाहिये और अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिये। उसे आपस में बन्धुत्व की भावना रखते हुए परावलम्बन एवं सहयोग से कार्य कर चाहिये। बालचर को व्यक्ति-हित और समाज-हित दोनों का ही ध्यान रखना चाहिये।
स्काउट गाइड से लाभ: बालचर संस्था समाज के लिये अत्यन्त उपयोगी है। बड़े-बड़े मेलो में, रामलीला में गंगा स्नान के पर्वों पर और बड़ी-बड़ी सभाओं में बालचर अनुशासन स्थापित करते हैं, प्रबन्ध करते हैं जनता की सुविधा और सुरक्षा का ध्यान रखते हैं। बड़े-बड़े मेलों में चारा, आग लगना, झगड़ा होना आदि घटनाये साधारण होता है। स्काउट अपने प्रबन्ध से कोई अव्यवस्था नहीं होने देते। छोटे-छोटे बच्चे मेलों की भीड़ में जो अपने माता-पिता से बिछुड़ जाते हैं और इधर-उधर रोते-चिल्लाते घूमा करते हैं, उन्हें उनके माता-पिता तक ढूंढकर पहुँचाना बालचरों का प्रशंसनीय कार्य है। गंगा के पर्वो पर जो बच्चे या बड़े स्नान करते-करते गंगा के प्रवाह में डूबने लगते हैं, बालचर अपने प्राणों को हथेली पर रखकर उनके प्राणों की रक्षा के लिए गंगा में एकदम कूद जाते हैं और उन्हें बचाने का प्राणपण से प्रयत्न करते हैं। इतना ही नहीं, बीमार की परिचर्या उन्हें इससे भी ऊपर उठा देती है। जिसका कोई नहीं होता, कराहते-कराहते दिन और रात बिता देते हैं, एक बूंट पानी के लिए भी जो तरसते रहते हैं, बालचर उनकी सेवा करता है, प्राथमिक उपचार करता है, इसके पश्चात् उन्हें अस्पताल पहुँचाता है। बालचर अपने सत्प्रयासों से कलह की अग्नि और वास्तविक अग्नि, दोनों को ही शान्त कर देता है। जहाँ आपस में दंगे और लड़ाई-झगड़े हो जाते हैं, ये स्वयं सेवक वहाँ नम्रतापूर्वक शान्ति स्थापित करते हैं और जहां वास्तविक आग लग जाती है वहां तो अपने प्राणों को हथेली पर रखकर आग में कूद पड़ते हैं और जान माल की रक्षा करते हैं।
इस संस्था से समाज को अनेक लाभ हैं। यह संस्था नि:स्वार्थ भाव से मानवता की सेवा करती है। जनता में स्वावलम्बन और आत्म-निर्भरता की भावनाओं को जाग्रत करती है। इस संस्था का सबसे बड़ा लाभ यह है कि छोटे-छोटे बालकों में सेवा-धर्म का उदय होता है, वे सबके कल्याण में अपना कल्याण समझने लगते हैं, समाज का हित उनका अपना हित होता है। इस प्रकार उनका चरित्र एक आदर्श चरित्र बन जाता है। वे देश के कर्मठ और मनस्वी नागरिक बन जाते हैं। देश की सुख-समृद्धि, ऐश्वर्य और वैभव, ऐसे ही नागरिकों पर आधारित होता है।
उपसंहार : आज देश को और समाज को ऐसी ही नि:स्वार्थ सेवी संस्थाओं की आवश्यकता है । बालचर संस्था का उद्देश्य और लक्ष्य वास्तव में प्रशंसनीय है। बच्चे भी इसमें बड़े उत्साह से भाग लेते हैं। खाकी वर्दी पहन कर वे एक विशेष गौरव का अनुभव करते हैं। परन्तु दुःख का विषय है कि आज देश में जितना संरक्षण इस संस्था को प्राप्त होना चाहिये था, उतना नहीं प्राप्त हो रहा। इसलिए कलों और कॉलिजों में भी इस दिशा में उदासीनता आती जा रही है। शिक्षा प्रेमियों और देश के समाज सुधारकों तथा सरकार का यह पुनीत कर्तव्य है कि वे इस समाज-सेवी संस्था को विशेष रूप से पल्लवित और पुष्पित करने के लिए विशेष सहयोग दें।
bahot acha likha aapne dost.
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