मद्य निषेध या नशाबंदी पर निबंध - Nasha Bandi Par Nibandh

दोस्तों आज हमने मद्य निषेध या नशाबंदी पर निबंध लिखा है। यह निबंध कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10 और 12 के लिए उपयुक्त है। Here you will...

दोस्तों आज हमने मद्य निषेध या नशाबंदी पर निबंध लिखा है। यह निबंध कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10 और 12 के लिए उपयुक्त है। Here you will find Nibandh and paragraph on Nasha Bandi and madya nishedh for students.

मद्य निषेध या नशाबंदी पर निबंध - Nasha Bandi Par Nibandh

मदिरापान या अन्य नशीले पदार्थों का सेवन हानिकारक होता है। आज के मद्य निषेध पर Long तथा Short निबंध प्रस्तुत किया जा रहा है। इस निबंध के माध्यम से हम जानेंगे कि आखिर मदिरा पान एक सामाजिक कलंक क्यों है तथा मद्य निषेध या नशाबंदी क्यों आवश्यक है। 

मद्य निषेध पर निबंध / नशाबंदी पर निबंध 

मदिरापान एक सामाजिक बुराई है। मदिरा पीने से आनंद का अनुभव होता है इसमें संदेह नहीं। परंतु मदिरा पीने के पश्चात मनुष्य में तर्क करने की शक्ति खत्म हो जाती है। वह अच्छे-बुरे और नैतिक-अनैतिक में फर्क नहीं कर पाता। उसका दिमाग शिथिल पड़ जाता है और विवेक शून्य हो जाता है। 

शराबबंदी पर कानून : धारा 21 द्वारा संविधान ने राज्यों को अधिकार दिया है कि वह सार्वजनिक सम्मति के अनुसार शराबबंदी के नियमों को बनाए। भारतवर्ष में भी इस विषय में तीव्र मतभेद है कि क्या शराबबंदी को कानून द्वारा बंद करना उचित है या सार्वजनिक सम्मति उत्पन्न करके सामाजिक सुधार के रूप में इसे धीरे-धीरे प्रचलित करना चाहिए।  

शराबबंदी के विरोध में तर्क : विरोधियों का कथन है कि सदाचार को बलपूर्वक उत्पन्न नहीं किया जा सकता, इसे तो शिक्षा द्वारा बचपन से चरित्र में अंकित किया जा सकता है। कानून से किए गए बलात्कार का परिणाम भयंकर प्रतिक्रिया ही होती है। विरोधियों का यह भी कथन है कि शराबबंदी से राष्ट्रीय आय में व्यर्थ की कमी उत्पन्न हो जाएगी। भारत की आमदनी पहले से ही कम है और शिक्षा, स्वास्थ्य, निर्माण आदि के अनेकों कार्य इसी कमी के कारण रुके पड़े हैं। केवल भावुकता में पड़कर आय के एक बड़े स्रोत को हाथ से नहीं जाने देना चाहिए। 
शराबबंदी के पक्ष में तर्क : विरोधियों के यह सब कथन किसी हद तक मनोवैज्ञानिक दृष्टि से सत्य हैं परंतु भारत पुनर्निर्माण के दृष्टिकोण से इनकी तर्क अस्पष्ट है। यदि कानून द्वारा सती प्रथा, बाल विवाह आदि सामाजिक बुराइयों को रोकना वांछनीय था, तो शराब बंदी को रोकना वांछनीय क्यों नहीं हो सकता? जो व्यक्ति पूरी तरह से नशे के गुलाम हैं, उन्हें कानून द्वारा ही सीधे रास्ते पर लाया जा सकता है। हां, बाल शिक्षा एवं प्रौढ़ शिक्षा द्वारा भी शराब खोरी को बंद करने का प्रयत्न नितांत आवश्यक है। पर कानून द्वारा रोकना भी अनुचित नहीं है। 

उपसंहार : स्वतंत्र भारत में जातीय पुनर्निर्माण का विशाल कार्य हमारे सम्मुख है हमें शीघ्र चहुँमुखी  उन्नति करनी है। देश की निर्धनता को दूर करना है, अविद्या को मिटाना है, रोगों का कष्ट निवारण करना है। इसके लिए व्यक्ति को शराब खोरी जैसे दुराचार की तरफ प्रवृत्त करने वाली बुराई से बचाना अत्यंत जरूरी है। शराबखोरी सचमुच सभी बुराइयों की जड़ है। इसका शिकार होकर मनुष्य झूठ, धोखा, चोरी, व्यभिचार, जुआ आदि को भी बुरा नहीं मानता। धन का अपव्यय, अनउत्तरदायित्व, अकर्मण्यता आदि व्यसनों में वह लिप्त हो जाता है। और देश की  महान हानि करता है। अतः कानून द्वारा शराब खोरी पर अंकुश लगाया जाना आवश्यक है। इसीलिए महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद शराब बंदी को संविधान में स्थान देने पर बल दिया। अतएव संविधान की धारा संख्या 46 से इसे राष्ट्र का प्रेरक सिद्धांत स्वीकार कर लिया गया

मद्य निषेध या नशाबंदी पर निबंध 

नशाबंदी की परिभाषा : वे पदार्थ जिनके सेवन से मानसिक विकृति उत्पन्न होती है नशीले या मादक द्रव्य कहलाते हैं। नशीली वस्तुओं पर प्रतिबंध या इनका व्यवस्थित प्रयोग नशाबंदी कहलाता है। किसी प्रकार के अधिकार, प्रवृत्ति, बल आदि मनोविकार की अधिकता, तीव्रता या प्रबलता के कारण उत्पन्न होने वाली अनियंत्रित या असंतुलित मानसिक अवस्था नशा होता है जैसे - जवानी का नशा, दौलत का नशा या मोहब्बत का नशा इनको व्यवस्थित रूप देना नशा बंदी है। 

प्रमुख नशीले पदार्थ : मादक द्रव्य कौन से हैं जिनसे मानसिक स्थिति विकृत हो जाती है? वह पदार्थ हैं शराब, अफीम, गांजा, भांग, चरस, ताड़ी, कोकीन आदि। कुछ स्वास्थ्य विशेषज्ञ तंबाकू, चाय और बीड़ी-सिगरेट को भी इस सूची में सम्मिलित करते हैं। प्राचीन काल में आसव और सोमरस को भी नशा माना जाता था। तांत्रिक अनुष्ठान में अमृत को भी नशा माना जाता है। कारण तांत्रिक अनुष्ठान में जो वारुणी है वह भी इसी अमृत की प्रतीक है। वर्तमान समय में भारत में नशाबंदी का तात्पर्य शराब और ड्रग्स पर प्रतिबंध या उसके व्यवस्थित प्रयोग से है क्योंकि यह पदार्थ अत्यधिक नशा देने वाले होते हैं। 

नशीले पदार्थों के सेवन से हानियां : अति सदा विनाशकारी होती है। जब शराब का अति प्रयोग हुआ तो लत पड़ गई। इस अत्यधिक शराब ने विष बनकर तन-मन को खोखला कर दिया। आंतों को सुखा दिया, किडनी और लीवर को दुर्बल और असहाय बना दिया। परिणामस्वरूप अनेक बीमारियां बिना मांगे ही शरीर से चिपट गई। ड्रग्स ने तो शरीर के हाजमे की शक्ति को ही नष्ट कर डाला और उसके अभाव में पेट पीड़ा का असाध्य रोग दे दिया जो व्यक्ति को दुर्बल कर देता है। 
स्खलन चेतना के कौशल का, मूल जिसे कहते हैं। एक बिंदु जिसमें विषाद के, नद उमड़े रहते हैं।।
नशा करने या मद्यपान करने से अनेक दुर्गुण उत्पन्न होते हैं। नशे में धुत होकर नशेड़ी अपना होश खो बैठता है, विवेक खो बैठता है। बच्चों को पीटता है, पत्नी की दुर्दशा करता है। लड़खड़ाते पैरों से मार्ग तय करता है, ऊल-जलूल बकता है। कोई ड्राइवर शराब पीकर जब गाड़ी चलाता है तो दूसरों के जान के लिए खतरनाक सिद्ध होता है। परिणामस्वरूप लाखों घर उजड़ जाते हैं. कई लोग बर्बाद हो जाते हैं। मिल्टन के शब्दों में ‘संसार की सारी सेनायें मिलकर इतने मानवों और इतनी संपत्ति को नष्ट नहीं कर सकती जितनी शराब पीने की आदत करती है।' वाल्मीकि ने मद्यपान की बुराई करते हुए लिखा है कि 'पानादर्थश्च धर्मश्च कामश्च पारिहीयते अर्थात मद्यपान करने से अर्थ धर्म और काम तीनों नष्ट हो जाते हैं।'

जहां 100 में से 80 लोग भूख से मर जाते हैं वहां दारू पीना गरीबों का रक्त पीने के बराबर है। - मुंशी प्रेमचंद
शराब भी क्षय जैसा एक रोग है जिसका दामन पकड़ती है उसे समाप्त करके ही छोड़ दी है। - भगवती प्रसाद वाजपेई
मदिरा का उपभोग तो स्वयं को भुलाने के लिए है स्मरण करने के लिए नहीं-महादेवी वर्मा
अकबर इलाहाबादी कहते हैं कि अंगूर की बेटी ने अर्थात शराब ने इतने जुल्म ढाए कि शुक्र है कि उसका बेटा न था। 
उसकी बेटी ने उठा रखी है दुनिया सर पर। खैरियत गुजरी की अंगूर के बेटा ना हुआ।। 
पूर्ण नशाबंदी असंभव : जो वस्तु खुलेआम नहीं बिकती, वह काले बाजार की शरण में चली जाती है। काला बाजार अपराध वृत्ति का जनक है, पोषक है। अच्छी शराब मिलनी बंद हो जाए तो घर-घर में शराब की भट्टियाँ लगेंगी, देसी ठर्रा बिकेगा। जीभ-चोंच जरि जाए कहावत के अनुसार घटिया शराब से लोग बिना परमिट परलोक गमन करने लगेंगे। जो राष्ट्र के लिए घोर अनर्थ होगा। 

इसलिए नशे पर प्रतिबंध लगाना श्रेयस्कर नहीं। दूसरे, इससे राजस्व की हानि होगी। तीसरे, औषधि के रूप में शीतकाल में सेना के लिए शराब का अपना उपयोग है। अतः इसके व्यवस्थित उपयोग पर बल देना चाहिए। गुजरात, आंध्र प्रदेश, मिजोरम और हरियाणा राज्य सरकारों ने पूर्ण नशाबंदी करके देख लिया। करोड़ों रुपए राजस्व की हानि तो हुई ही, शराब की तस्करी का धंधा जोरों से चल पड़ा ,नकली और जहरीली शराब कुटीर उद्योग की तरह पनपने लगी। दूसरी ओर डिस्टलरियों के बंद होने से इस कारोबार में लगे हजारों लोग बेरोजगार हो गए। पहले ही इन प्रांतों में बेरोजगारी थी, पूर्ण नशाबंदी ने बेरोजगारों की संख्या बढ़ा दी। आर्थिक कमर टूटते देख इन सरकारों ने पूर्ण नशाबंदी आदेश को वापस ले लिया। 

उपसंहार : सुरालयों  की संख्या कम करके देसी भट्टियों को को जड़-मूल से नष्ट करके सार्वजनिक रूप में शराब पीने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाकर दुरुपयोग को रोका जा सकता है इसे हतोत्साहित किया जा सकता है

नशाबंदी या मद्य निषेध पर निबंध 

भूमिका : मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज के बिना रह नहीं सकता। उसके तीन पक्ष होते हैं-सामाजिक, पारिवारिक तथा व्यक्तिगत पक्ष। वह दुखों से बचने का प्रयास करता है। सांसारिक जीवन में मनुष्य को अनेक प्रकार की कुंठाओं तथा कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। फल स्वरूप उसे मानसिक और शारीरिक क्लेश का अनुभव होता है। कभी-कभी उसका मन खिन्न हो जाता है क्योंकि वह चेतन और चिंतनशील प्राणी है। अतः वह किसी बात को बहुत तर्क-वितर्क के साथ सोचता है। इसका प्रभाव उसके मन पर अधिक पड़ता है। इस प्रकार से वह अपने मानसिक और शारीरिक क्लेश को मिटाने के लिए या भुलाने के लिए अनेक उपाय करता है। विभिन्न प्रकार के मनोरंजन के साधन इसीलिए बनाए गए हैं। मनुष्य की मानसिक स्थिति कभी-कभी ऐसी हो जाती है कि वह एकांत रूप से किसी प्रकार अपने दुख और मानसिक कष्ट को मिटाने या भुलाने का उपाय ढूंढता है। इन्हीं उपायों में नशा का सेवन भी एक है। नशे से रक्त संचार में एक प्रकार का धुंधलापन आ जाता है। जिससे वह अपनी सामान्य स्थिति को कुछ समय के लिए भूल जाता है और उसकी मानसिक गति शिथिल पड़ जाती है। इससे उसे शांति मिलती है। यह क्रम उसमें नशे की आदत डाल देता है। जिसका परिणाम यह होता है कि उसकी अवस्था अपनी सहनशक्ति से बाहर हो जाती है और समाज की सामान्य गतिविधि में व्यवधान उत्पन्न होने लगता है। तब उस पर तरह-तरह के आक्षेप तथा आरोप लगने लगते हैं। समाज की दृष्टि में उस व्यक्ति का सम्मान गिर जाता है और वह समाज के लिए हानिकारक माना जाता है। समाज में बहुजन हिताय और बहुजन सुखाय कानूनों का निर्माण किया जाता है। इसलिए नशाबंदी आवश्यक मानी जाती है। 

नशे की वस्तुओं के सेवन की आदत और उस से हानियां : संसार में अनेक ऐसी वस्तुएं हैं जिनके सेवन से नशा हो जाता है। इनमें कुछ अधिक नशीली होती हैं और कुछ कम। भांग, शराब, अफीम, तंबाकू आदि सैकड़ों वस्तुएं ऐसी हैं जिनके सेवन से नशा होता है। सरकार ने नशीली वस्तुओं के व्यापार पर रोक लगाई है परंतु इस विभाग से उसे पर्याप्त लाभ होता है। यह पैसा नशा सेवन करने वालों से दुकानदारों के माध्यम से सरकार के खजाने में जाता है। नशीली वस्तुओं के भाव करों से अधिक लगने के कारण ऊंचे होते हैं। अतः कुछ लोग इनको अवैध रूप से ले जाने का प्रयास भी करते हैं। उन्हें सरकार दंड विधान के अनुसार दंडित करती है। नशा का सेवन करने वाले प्रारंभ में तो इसका क्षणिक सुख के लिए प्रयोग करते हैं लेकिन बाद में उनकी आदत इस प्रकार हो जाती है कि उन्हें नशे के सेवन के बिना चैन ही नहीं पड़ता। यह आदत जब उन्हें अपने वश में कर लेती है तो वह किसी भी मूल्य पर उसको पा लेना चाहते हैं। 

नशे की आदत से अनेक प्रकार की हानिया होती हैं- नशे की अवस्था में मनुष्य का विवेक उसका साथ छोड़ देता है, जिससे वह उल्टी-सीधी बातें करने लगता है तथा बकने-झकने भी लगता है। जिससे पड़ोसियों को कष्ट होता है। नशीली वस्तुओं के सेवन से नाड़ियों पर अस्वाभाविक बल पड़ता है, जिससे उसकी कार्यक्षमता में हास हो जाता है। जिससे पाचन क्रिया ठीक नहीं होती है और हृदय की शक्ति घट जाती है। नशा करते समय एक समय ऐसा आ जाता है कि मनुष्य उस स्थिति में पहुंच जाता है कि वह उसके बिना रह ही नहीं सकता। वह अपना सब कुछ देकर भी नशा करना चाहता है। संसार में ऐसे करोड़ों उदाहरण मिल जाएंगे जिन्होंने नशे के लिए अपना घर तबाह कर लिया। 

नशाबंदी का प्रभाव : सरकार ने जनता का सामाजिक स्तर उन्नत बनाने के लिए नशाबंदी के लिए कानून बनाया है, जिसके अनुसार केवल कुछ लाइसेंस प्राप्त व्यक्ति ही नशीली वस्तुओं को बेच सकते हैं। साधारण व्यक्ति नशीली वस्तुओं को लिए हुए यदि पाया जाता है तो उसके ऊपर मुकदमा चलाया जाता है। अभियोग प्रमाणित होने पर उसे दंडित किया जाता है। इस कानून का अभिप्राय है जनता को नशीली वस्तुओं के प्रयोग से बचाना। यह कानून सामान्यतया लाभप्रद भी हो रहा है। नशीली वस्तुओं की प्राप्ति में कठिनाई होने के कारण साधारणतया लोग इनके चक्कर में नहीं पड़ते। इसका प्रभाव यह होता है कि नशे का सेवन सीमित हो जाता है। सरकारी प्रतिबंध होने के कारण इन वस्तुओं का तस्कर व्यवसाय भी बढ़ जाता है। बहुत से लोग इन वस्तुओं का संगठित रूप से गुप्त ढंग से आयात-निर्यात किया करते हैं। 

पूर्ण नशाबंदी संभव नहीं : नशे की वस्तुएं अनेक रोगों में औषधि का भी काम करती है। अतः उनका पूर्ण निषेध संभव नहीं है। नशे का सेवन अधिकांश में व्यक्तिगत वस्तु है। इससे जिन्हें आवश्यकता होती है वह किसी ना किसी प्रकार इसकी प्राप्ति का उपाय करते हैं और अर्थ वादी युग में अधिक पैसे के लालच में लोग इन वस्तुओं का गुप्त व्यापार भी करते हैं। स्वीकृत दुकानदार इन वस्तुओं के व्यापार से काफी लाभ उठाते हैं क्योंकि यह विषय व्यक्तिगत महत्व का है और सरकार की आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। अतः सरकार भी सख्ती नहीं कर पाती है। 

स्वतंत्र भारत में नशाबंदी : सन 1947 में जब हमारा देश आजाद हुआ तो विधायकों ने नशाबंदी के लिए अनेक कानून के प्रारूप तैयार किए। किसी कारण संशोधनों के उपरांत उन्हें विधिवत रूप भी प्राप्त हो गया फिर भी पूर्ण नशाबंदी ना हो सकी। और यह संभव भी नहीं है। जैसा कि ऊपर बताया गया है इसका प्रभाव प्रथम श्रेणी की जनता से लेकर साधारण जनता तक तथा उच्च अधिकारियों से लेकर चपरासी तथा कुलियों तक में किसी ना किसी रूप से व्याप्त है। बड़े-बड़े व्यवसाई जाने-माने रईस बड़े-बड़े अधिकारी प्रायः मानसिक थकान और परेशानियों को दूर करने तथा नवीन स्फूर्ति प्राप्त करने के लिए इन वस्तुओं का सेवन करते हैं। मध्यम वर्ग के लोग अपनी परेशानियों को भुलाने के लिए इनकी शरण में जाते हैं। यह दोनों वर्ग क्योंकि जीवन को ऊंचे स्तर से व्यतीत करते हैं, अतः इनकी बातें भी गुप्त रहती हैं। इनमें से अधिकांश का रहस्य कोई आसानी से जान भी नहीं पाता। किंतु तृतीय श्रेणी के लोग अधिक परेशान रहने के कारण निम्न कोटि की नशीली वस्तुओं का सेवन करते हैं। अतः उनकी दशा दयनीय हो जाती है। वह नशे के पीछे तबाह हो जाते हैं। दाने-दाने के लिए मोहताज हो जाते हैं। उनके परिवार वाले उनकी इस आदत से टूट जाते हैं। इससे उनको कोई सहारा नहीं मिल पाता क्योंकि उनका जीवन स्तर निम्न होता है, अतः उनकी बातें शीघ्रता से खुल जाती हैं। उनकी बदनामी होती है तथा उन्हें अनेक प्रकार के कष्ट झेलने पड़ते हैं। कभी-कभी वे मारपीट, लड़ाई-झगड़े भी करते हैं। कभी नशे की बेहोशी में सड़कों के किनारे गंदी नालियों के पानी से सराबोर देखे जाते हैं तो कहीं अनावश्यक बकने के कारण मार खाते देखे जाते हैं। घर पर पहुंचकर कभी स्त्री व बच्चों से लड़ते झगड़ते हैं। कभी घर की चीजों को बेचकर नशा का सेवन करते हैं। इस बुराई का महत्वपूर्ण संगी जुआ और वैश्यालय भी है। इन दोषों का परस्पर साथ हो जाया करता है क्योंकि नशे की दशा में विवेक और चेतना तो कुंठित हो जाती है अतः व्यसनी साथी उन्हें जुआ तथा वैश्यागमन में परिचित करा देते हैं। बाद में तो पहले के शिष्य स्वाभाविक नियम के अनुसार गुरु बन ही जाते हैं। इस प्रकार यह संक्रामक रोग फैलता है। इसका प्रभाव भी व्यापक तथा असाध्य होता है। 

उपसंहार : नशीली वस्तुओं के सेवन का कोई भी समझदार व्यक्ति समर्थन नहीं करेगा। किंतु यदि इनका प्रयोग साधारण स्फूर्ति, सामान्य विश्राम तथा किंचित मन बहलाने के लिए औषधि के रूप में न्यून मात्रा में किया जाए तो अनेक लाभ होते हैं। इस क्रम को नशे की सीमा में रखा भी नहीं जा सकता क्योंकि ऐसे लोगों पर नशे का प्रभाव नहीं होता। नशे का प्रभाव जब विवेक को छूने और चेतना को उन्मत बना देता है तभी नशाबंदी आवश्यक होती है। यानी नशीली वस्तुओं का क्रय-विक्रय उतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना कि मनुष्य का नैतिक स्तर। आवश्यक है कि जनता का नैतिक स्तर उठाया जाए। उनको व्यक्तिगत रूप से, सामाजिक रूप से सुधारने का प्रयास करना आवश्यक है। लेकिन सरकार इस कार्य को सरलता से नहीं कर सकती फिर भी नशाबंदी की योजनाएं तो बनाई ही जानी चाहिए और इसका कालांतर में शुभ परिणाम अवश्य होंगे। 

मद्य निषेध : मदिरा पान एक सामाजिक कलंक पर निबंध 

प्रस्तावना : शराब को मदिरा, सुरा, आसव आदि नामों से भी जाना जाता है। शराब या मदिरा का पान आनंद के लिए किया जाता है। मद्य अथवा मदिरा शब्द मदी धातु से बना है अर्थात हर्षित होना। मदिरा पीकर आदमी अपने दुख और चिंताओं को कुछ समय के लिए भूल जाता है और एक कृत्रिम उत्तेजना के कारण विचित्र आनंद का अनुभव करता है। दुखों को भुला देने और आनंद देने की यह शक्ति ही मदिरा अर्थात शराब का आकर्षण है। 

मदिरापान लगभग सभी देशों में प्रचलित है। लोग किसी भी आनंद के अवसर पर मदिरा पीते हैं और बहुत से देशों में तो मदिरा दैनिक जीवन का अंग बनी हुई है। यूरोप के ठंडे देशों में मदिरा पानी की अपेक्षा अधिक सुलभ है। चीन, भारत और अफ्रीका जैसे देशों में भी इसका प्रचार कम नहीं है। काल की दृष्टि से देखें तो मदिरा बहुत पुराने समय से उपयोग में आती रही है। वेदों में वर्णित सोमरस वास्तव में मदिरा की थी अथवा इसका प्रभाव  शराब की भांति ही आनंददायक होता था। महाभारत काल में तो मद्य और सुरा का प्रयोग खुलकर होता था। यहां तक कि यादव लोग मदिरा पीकर आपस में ही लड़ मरे थे। 

मदिरापान एक सामाजिक कलंक : मदिरा पीने से आनंद का अनुभव होता है इसमें संदेह नहीं। किंतु मदिरा पीकर व्यक्ति अपने आप को भूल जाता है। वह अनाप-शनाप बकता है और असभ्य आचरण करता है। जब मदिरा का नशा अपनी सीमा पर पहुंच जाए तो व्यक्ति नाली में गिर कर पड़े रहने में भी स्वर्ग का अनुभव करता है। जिन लोगों ने शराब नहीं पी हुई है वह अवश्य ही उसके इस स्वर्ग सुख को देखकर प्रसन्न नहीं होंगे और यही कोशिश करेंगे कि उन्हें ऐसा स्वर्ग दुख कभी ना मिले। यही कारण है कि आदिकाल से मदिरापान को एक सामाजिक कलंक माना जाता है और इसकी निंदा की जाती है। 

मदिरापान से सामाजिक दुर्गति : मनु स्मृति में लिखा है कि "व्यसन मृत्यु से भी अधिक बुरा होता है क्योंकि व्यसनी निरंतर पतन की ओर बढ़ता चला जाता है।" शराब तो पहली सीढ़ी है। शराब मुफ्त नहीं मिलती काफी महंगी होती है। उसे पाने के लिए पैसा चाहिए। अतः शराबी को उचित-अनुचित सभी उपायों से पैसा कमाने का यत्न करना पड़ता है। शराबी लोग पैसा कमाने के लिए जुआरी बन जाते हैं। जुआ पैसा कमाने का नहीं अपितु पैसा गंवाने का सबसे अच्छा उपाय है। शराबी कर्ज लेते हैं किंतु उसको चुकाने की नौबत कभी नहीं आती। इस प्रकार एक के बाद एक अनेक दुराचारों में वह फंसते जाते हैं और शायद अंत में शारीरिक और मानसिक व्याधियों इतनी बढ़ जाती हैं कि उनसे केवल मृत्यु ही उन्हें निजात दिला सकती है। 

बहुत बार लोग शराब पीकर सड़कों पर अथवा सामाजिक स्थानों में पहुंच जाते हैं। शराब के नशे में लड़ाई-झगड़ा करते हैं और कई बार एक दूसरे की हत्या तक कर डालते हैं। अब से कई साल पहले जिन दिनों मिलों के मजदूरों को वेतन मिलता था। उस दिन वह खूब शराब पीते थे और उस दिन झगड़े और हत्या होना बिल्कुल मामूली बात समझी जाती थी।

धनी और शिक्षित लोग अपने बारे में खुद सोच समझ सकते हैं। यदि वह गलत निर्णय भी कर ले तो भी उनमें इतना सामर्थ्य होता है कि नुकसान या कष्ट को सह सके। परंतु गरीबों की स्थिति इसके विपरीत होती है। इसलिए उनकी चिंता समाज को करनी पड़ती है। मद्यपान और उससे होने वाली बुराइयों की ओर सरकार का भी ध्यान आकृष्ट हुआ और शराब की दुकानों पर जनता द्वारा धरना दिया गया। 

मद्य निषेध की आवश्यकता : वैसे तो कोई आदमी यदि जानबूझकर आत्मविनाश पर उतारू हो या अपने घर में आग लगा कर तमाशा देखना चाहे तो उसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। परंतु जब उसका यह तमाशा अन्य लोगों के लिए भी कष्टदायक बन जाए तब उसमें दूसरों का हस्तक्षेप आवश्यक हो जाता है। गरीब मजदूर अपने दुख, थकान और गरीबी को भुलाने के लिए शराब पीते हैं। धीरे-धीरे शराब के इतने आदी हो जाते हैं कि अपनी सारी कमाई शराब पर ही खर्च कर देते हैं और अपने बच्चों, पत्नी इत्यादि के भोजन-पानी तक की व्यवस्था की ओर ध्यान नहीं देते। जिस गरीबी को भुलाने के लिए उन्होंने शराब पीनी शुरू की थी, वह शराब की कृपा से ही निरंतर बढ़ती चली जाती है। ऐसी दशा में समाज और सरकार का कर्तव्य हो जाता है कि कोई ऐसा प्रबंध किया जाए, जिससे उनके निरपराध बच्चों और पत्नियों को कष्ट ना उठाना पड़े।

मदिरा पान से फायदे : मदिरा को निश्चित रूप से हानिकारक या दूषित वस्तु करार देना उचित नहीं है। अत्यधिक उत्साह या सुधार के आवेश में ही लोग मदिरा को इतना दूषित बताते हैं। मदिरा का सेवन औषधि के रूप में किया जाए और उसकी मात्रा नियमित रखी जाए तो वह शरीर के लिए और मन के लिए बहुत उपयोगी है। इंग्लैंड के प्रसिद्ध नेता विंस्टन चर्चिल ने मदिरा के संबंध में कहा है कि "मदिरा से मैंने जितना कुछ पाया है उतना मदिरा मुझसे नहीं पा सकी।"  उनका अभिप्राय यह था कि मदिरा से उन्हें लाभ अधिक हुआ है और हानि कम। नियत मात्रा में ली गई मदिरा शारीरिक और मानसिक शक्तियों को जगाती है और नई स्फूर्ति प्रदान करती है। आयुर्वेद में अनेक रोगों की चिकित्सा के लिए आसव तैयार किए जाते हैं, सभी आसव मदिरा होते हैं। 

परंतु मदिरा की यह एक विशेषता है कि इसको पीने के बाद मनुष्य का अपने ऊपर संयम कम और कम होता जाता है ऐसे लोग बहुत कम हैं जो औषधि के रूप में नियत मात्रा में मदिरा का सेवन करते हैं अधिकांश लोग तामसिक आनंद के लिए अंधाधुंध शराब पीते हैं अधिक मात्रा में की गई मदिरा यकृत पर बहुत बुरा प्रभाव डालती है मदिरा पीने से मनुष्य का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ना शुरू हो जाता है

सरकार की दृष्टि से मद्य निषेध बिल्कुल घाटे का सौदा है। शराब के ठेकों से सरकार को हर साल करोड़ों रुपयों की आय होती है। परंतु ऐसे उपायों से आय प्राप्त करना जिससे देशवासियों को हानि पहुंचती हो, अनुचित है। इसलिए सरकार हानि सहकर भी मद्य निषेध को लागू करने के लिए वचनबद्ध है। इन दिनों सरकार को बड़ी-बड़ी योजनाओं को पूरा करने के लिए धन की बड़ी आवश्यकता है। परंतु उसके लिए सरकार ने अन्य बहुत से कर बढ़ा दिए हैं और मद्य निषेध को जारी रखने का ही निश्चय किया है।

मद्य निषेध उचित या अनुचित : सैद्धांतिक दृष्टि से कानून द्वारा मद्य निषेध करना अनुचित है। यह मनुष्य की स्वतंत्रता का अपहरण है। यदि मद्यपान से मनुष्य को हानि होती है तो भी उसे कानून द्वारा नहीं रोका जाना चाहिए। क्योंकि इस प्रकार हानि तो सिगरेट पीने और सिनेमा देखने से भी होती है। शायद कल कोई बहुत ही सदाचारी प्रशासक प्याज को भी हानिकारक करार देकर निषिद्ध घोषित कर दे। किंतु उसके उपयोग को कानून द्वारा रोकना मूर्खता ही कही जाएगी। इसलिए मद्यपान के विरोध में लोगों को शिक्षा दी जानी चाहिए। उपदेशों और प्रचार द्वारा लोगों को मद्यपान की हानियां समझाई जानी चाहिए। किंतु इसमें कानून का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।

सिद्धांत की दृष्टि से मद्य निषेध अनुचित होते हुए भी व्यवहार की दृष्टि से उचित है। भारत जैसे गरीब और अशिक्षित देशों में लोगों को मद्यपान की हानियां समझाकर उन्हें मद्यपान से विरत कर पाना लगभग असंभव है। एक बार शराब का चस्का लग जाने पर बिना दंड भय के लोग शराब को छोड़ेंगे नहीं। और जब तक वह शराब को छोड़ेंगे नहीं तब तक वे अपने परिवारों को और समाज को नर्क बनाए रखेंगे। यदि कुछ अंशों में व्यक्तिगत स्वाधीनता का अपहरण करके भी लोगों को सुखी बनाया जा सके तो बनाया जाना चाहिए। अशिक्षित और विवेकी व्यक्ति को पूरी स्वाधीनता देना उसे विनाश के मार्ग पर चला देना है। जहां यह ठीक है कि मद्यपान को कानून द्वारा निषिद्ध कर देना समाज के हित में है। वहां यह भी ठीक है कि केवल कानून बनाकर मद्यपान को पूरी तरह बंद नहीं किया जा सकता। जब तक देश की अधिकांश जनता का समर्थन प्राप्त ना हो तब तक चोरी-छिपे शराब पी जाती रहेगी और उससे होने वाली हानियां होती रहेंगी।

अमेरिका में मद्य निषेध : किसी समय अमेरिका में भी कानून द्वारा मध्य निषेध करने का प्रयत्न किया गया था। किंतु वह प्रयत्न असफल रहा क्योंकि पहले खुल्लम-खुल्ला जितनी शराब की जाती थी, उससे भी अधिक बाद में चोरी-छुपे की जाने लगी। वहां सरकार को मध्य निषेध का कानून रद्द करना पड़ा। भारत में भी परिस्थितियां कुछ अलग नहीं है। इसलिए यदि मद्य निषेध की सफलता अभीष्ट हो। तो कानून बनाने के अतिरिक्त मद्यपान की बुराइयों के संबंध में जोरदार प्रचार किया जाना चाहिए। ऐसी स्थिति उत्पन्न कर देनी चाहिए कि लोग स्वयं ही मद्यपान करना छोड़ दें।

वस्तुतः यह एक ऐसी समस्या है जिसके संबंध में सरकार और जनता दोनों को ही शांति और विवेक से काम लेना चाहिए। जहां यह ठीक है कि मद्यपान एक बुराई है और उसे हटाया जाना चाहिए, वहां यह भी ठीक है कि यह एक ऐसी बुराई है जो कि धीरे-धीरे ही हटेगी। इसलिए सरकार को धीरज से काम लेना चाहिए। दूसरी ओर, जनता को यह अनुभव करना चाहिए कि मद्यनिषेध उनकी भलाई के लिए किया जा रहा है, उन पर अत्याचार करने के लिए नहीं। इसलिए थोड़ी बहुत असुविधा सहकर भी मद्य निषेध को क्रियान्वित करने में सहायता देनी चाहिए।

उपसंहार : इससे स्पष्ट है कि मद्यनिषेध का उल्लंघन करने वाले लोगों को कड़ी और लंबी सजा न देकर छोटी सजाएं दी जानी चाहिए। जिनका उद्देश्य केवल अपराधी को सावधान और सचेत करना हो। वहीं जो लोग अपने आर्थिक लाभ के लिए दूसरों को शराब पिलाने का प्रयास करें, उन्हें कड़ी सजाएं भी देनी चाहिए। जिससे कि अन्य लोगों में संदेश जाए कि वे ऐसा ना करें। कानून और जनता दोनों मिलकर ही मद्य निषेध को सफल बना सकते हैं।

COMMENTS

Name

10 line essay,281,10 Lines in Gujarati,1,Aapka Bunty,3,Aarti Sangrah,3,Aayog,3,Agyeya,4,Akbar Birbal,1,Antar,170,anuched lekhan,54,article,17,asprishyata,1,Bahu ki Vida,1,Bengali Essays,135,Bengali Letters,20,bengali stories,12,best hindi poem,13,Bhagat ki Gat,2,Bhagwati Charan Varma,3,Bhishma Shahni,6,Bhor ka Tara,1,Biography,141,Biology,88,Boodhi Kaki,1,Buddhapath,2,Chandradhar Sharma Guleri,2,charitra chitran,205,chemistry,1,chhand,1,Chief ki Daawat,3,Chini Feriwala,3,chitralekha,6,Chota jadugar,3,Civics,32,Claim Kahani,2,Countries,10,Dairy Lekhan,1,Daroga Amichand,2,Demography,10,deshbhkati poem,3,Dharmaveer Bharti,10,Dharmveer Bharti,1,Diary Lekhan,7,Do Bailon ki Katha,1,Dushyant Kumar,1,Economics,29,education,1,Eidgah Kahani,5,essay,737,Essay on Animals,3,festival poems,4,French Essays,1,funny hindi poem,1,funny hindi story,3,Gaban,12,Geography,44,German essays,1,Godan,8,grammar,19,gujarati,30,Gujarati Nibandh,214,gujarati patra,20,Guliki Banno,3,Gulli Danda Kahani,1,Haar ki Jeet,2,Harishankar Parsai,2,harm,1,hindi grammar,14,hindi motivational story,2,hindi poem for kids,3,hindi poems,54,hindi rhyms,3,hindi short poems,8,hindi stories with moral,15,History,42,Information,890,Jagdish Chandra Mathur,1,Jahirat Lekhan,1,jainendra Kumar,2,jatak story,1,Jayshankar Prasad,6,Jeep par Sawar Illian,3,jivan parichay,147,Kafan,8,Kahani,25,Kamleshwar,8,kannada,98,Kashinath Singh,2,Kathavastu,33,kavita in hindi,41,Kedarnath Agrawal,1,Khoyi Hui Dishayen,3,kriya,1,Kya Pooja Kya Archan Re Kavita,1,long essay,426,Madhur madhur mere deepak jal,1,Mahadevi Varma,7,Mahanagar Ki Maithili,1,Mahashudra,1,Main Haar Gayi,2,Maithilisharan Gupt,1,Majboori Kahani,3,malayalam,139,malayalam essay,112,malayalam letter,10,malayalam speech,36,malayalam words,1,Management,1,Mannu Bhandari,7,Marathi Kathapurti Lekhan,3,Marathi Nibandh,261,Marathi Patra,25,Marathi Samvad,13,marathi vritant lekhan,3,Mohan Rakesh,2,Mohandas Naimishrai,1,Monuments,1,MOTHERS DAY POEM,22,Muhavare,138,Nagarjuna,1,Names,2,Narendra Sharma,1,Nasha Kahani,6,NCERT,27,Neeli Jheel,2,nibandh,742,nursery rhymes,10,odia essay,60,odia letters,86,Panch Parmeshwar,10,panchtantra,26,Parinde Kahani,1,Paryayvachi Shabd,229,patra,235,Physics,2,Poos ki Raat,9,Portuguese Essays,1,pratyay,186,Premchand,65,Punjab,28,Punjabi Essays,72,Punjabi Letters,13,Punjabi Poems,9,Raja Nirbansiya,4,Rajendra yadav,3,Rakh Kahani,2,Ramesh Bakshi,1,Ramvriksh Benipuri,1,Rani Ma ka Chabutra,1,ras,1,Report,5,Roj Kahani,2,Russian Essays,1,Sadgati Kahani,1,samvad lekhan,194,Samvad yojna,1,Samvidhanvad,1,Sandesh Lekhan,3,sangya,1,Sanjeev,2,sanskrit biography,4,Sanskrit Dialogue Writing,5,sanskrit essay,269,sanskrit grammar,157,sanskrit patra,30,Sanskrit Poem,3,sanskrit story,2,Sanskrit words,26,Sara Akash Upanyas,7,Saransh,61,sarvnam,1,Savitri Number 2,2,Shankar Puntambekar,1,Sharad Joshi,3,Sharandata,1,Shatranj Ke Khiladi,1,short essay,66,slogan,3,sociology,8,Solutions,3,spanish essays,1,speech,6,Striling-Pulling,25,Subhadra Kumari Chauhan,1,Subhan Khan,1,Suchana Lekhan,12,Sudarshan,2,Sudha Arora,1,Sukh Kahani,2,suktiparak nibandh,20,Suryakant Tripathi Nirala,1,Swarg aur Prithvi,3,tamil,16,Tasveer Kahani,1,telugu,66,Telugu Stories,65,uddeshya,14,upsarg,67,UPSC Essays,100,Usne Kaha Tha,2,Vinod Rastogi,1,Vipathga,2,visheshan,2,Wahi ki Wahi Baat,1,Wangchoo,2,words,44,Yahi Sach Hai kahani,2,Yashpal,5,Yoddha Kahani,2,Zaheer Qureshi,1,कहानी लेखन,17,कहानी सारांश,56,तेनालीराम,4,नाटक,51,मेरी माँ,7,लोककथा,15,शिकायती पत्र,1,सूचना लेखन,1,हजारी प्रसाद द्विवेदी जी,9,हिंदी कहानी,110,
ltr
item
HindiVyakran: मद्य निषेध या नशाबंदी पर निबंध - Nasha Bandi Par Nibandh
मद्य निषेध या नशाबंदी पर निबंध - Nasha Bandi Par Nibandh
HindiVyakran
https://www.hindivyakran.com/2019/07/nasha-bandi-par-nibandh.html
https://www.hindivyakran.com/
https://www.hindivyakran.com/
https://www.hindivyakran.com/2019/07/nasha-bandi-par-nibandh.html
true
736603553334411621
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content