विद्यार्थी और राजनीति पर निबंध। Essay on Students and Politics in Hindi : आज का विद्यार्थी कल का नागरिक होगा। देश का प्रबुद्ध नागरिक बनने के लिए राजनीति के सिद्धांत और व्यवहार का ज्ञान अनिवार्य है। कारण, राजनीति मानवीय कार्य व्यापार का विज्ञान है केवल शासन संबंधी कौशल नहीं। राजनीति विश्व में स्वयं अपने राष्ट्र की उन्नति के लिए विद्यार्थी को राजनीति का ज्ञान देना चाहिए। जब आर्थिक, शैक्षिक और प्रशासनिक दृष्टि से राज्य शक्ति विद्यार्थियों पर राज करें, अनपढ़ और अंगूठा टेक राजनीतिज्ञ दीक्षांत भाषण दें और अल्पशिक्षित राजनीतिज्ञ अध्यापकों की सभा में शिक्षा सुधार के उपाय सुझाएं तब विद्यार्थी राजनीति से अछूता कैसे रह सकता है।
विद्यार्थी और राजनीति पर निबंध। Essay on Students and Politics in Hindi
विद्या और राजनीति अभिन्न साथी है। दोनों का पृथक रहना कठिन है। दोनों के स्वभाव भिन्न है किंतु लक्ष्य एक है व्यक्ति और समाज को अधिक से अधिक सुख पहुंचाना। विद्या नैतिक नियमों का वरण करती है अतः उसमें सरलता है, विजय है तथा बल है जबकि राजनीति में समर्थता है और बाह्य शक्ति। भारतीय संस्कृति के ऐतिहासिक पृष्ठों को पलटे तो पता लगेगा कि विद्या ने राजनीति को स्नेह प्रदान किया है और बदले में राजनीति ने शिक्षा को समुचित आदर दिया है, जिस का संचालन राजनीतिक नेताओं द्वारा होता है।
संसार का इतिहास इस बात का साक्षी है कि जब भी किसी राष्ट्र में क्रांति का बिगुल बजा तो वहां के छात्र दृष्टा मात्र नहीं रहे अपितु उन्होंने क्रांति की बागडोर संभाली। परतंत्रता काल में स्वातंत्र्य के लिए और वर्तमान काल में भ्रष्टाचारी सरकारों के उन्मूलन के लिए भारत में छात्र शक्ति ने अग्रसर होकर क्रांति का आवाहन किया। इंडोनेशिया और ईरान में छात्रों ने सरकार का तख्ता ही पलट दिया। यूनान की शासन नीति में परिवर्तन का श्रेय विद्यार्थी वर्ग को ही है। बांग्लादेश को अस्तित्व में लाने में ढाका विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को योग का योगदान भुलाया नहीं जा सकता। असम के मुख्यमंत्री तो विद्यार्थी रहते ही मुख्यमंत्री बने थे।
आज विद्या राजनीति की दासी है। राजकीय तो राजकीय है यहां तो सहायता प्राप्त विद्यालय भी राजकीय नियमों से जकड़े हुए हैं। पाठ्यक्रम और पाठ्य पुस्तकें भी राजकीय हैं। उससे विचलित होते ही अनुशासन को कोड़ा पीठ पर पड़ जाता है। इस प्रकार जब आर्थिक, शैक्षिक और प्रशासनिक दृष्टि से राज्य शक्ति विद्यार्थियों पर राज करें, अनपढ़ और अंगूठा टेक राजनीतिज्ञ दीक्षांत भाषण दें और अल्पशिक्षित राजनीतिज्ञ अध्यापकों की सभा में शिक्षा सुधार के उपाय सुझाएं तब विद्यार्थी राजनीति से अछूता कैसे रह सकता है।
विद्यार्थी को विद्या अध्ययन करने के उपरांत भी जीवन के चौराहे पर किंकर्तव्यविमूढ़ खड़ा होना पड़ता है। नौकरी उसे मिलती नहीं हाथ की कारीगरी से वह अनभिज्ञ है। भूखा पेट रोटी मांगता है। वह देखता है राजनीतिज्ञ बनकर समाज में आदर, सम्मान, प्रतिष्ठा और धन प्राप्त करना सरल है किंतु नौकरी पाना कठिन है। ईमानदारी से रोटी कमाना पर्वत के उच्च शिखर पर चढ़ना है तो वह राजनीति में कूद पड़ता है।
आज कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में छात्रसंघ के चुनाव होते हैं जो कि संसद के चुनाव से कम महत्वपूर्ण और कम खर्चीले नहीं हैं। विद्यालयों में संसद और राज्य विधानसभाओं का अनुकरण कराया जाता है। आज विधानसभा और संसद में जो हंगामा, लांछन और वाक् युद्ध चलते हैं क्या वे अनुकरणीय हैं? क्या उनका दुष्प्रभाव जनजीवन पर नहीं पड़ेगा? ऐसी स्थिति में विद्यार्थी राजनीति में अलिप्त कैसे रह सकता है? बोए पेड़ बबूल के आम कहां से पाए?
वर्तमान भारत का विद्यार्थी राजनीति के रोग से ग्रस्त है। प्रशासन और नीति की दाढ़ों में जकड़ा हुआ है। 18 वर्ष की आयु में मतदान का अधिकार देकर उसे राजनीति के छंद छंदमय वातावरण में घसीटा गया है। हड़ताल, धरना उसके पाठ्यक्रम के अंग है। तोड़फोड़, राष्ट्रीय संपत्ति की आहुति परीक्षा के प्रश्न पत्र हैं। उचित-अनुचित मांगों पर अधिकारियों और शासकों को झुका लेना उसकी सफलता का प्रमाण है।
आज का विद्यार्थी कल का नागरिक होगा। देश का प्रबुद्ध नागरिक बनने के लिए राजनीति के सिद्धांत और व्यवहार का ज्ञान अनिवार्य है। कारण, राजनीति मानवीय कार्य व्यापार का विज्ञान है केवल शासन संबंधी कौशल नहीं। राजनीति विश्व में स्वयं अपने राष्ट्र की उन्नति के लिए विद्यार्थी को राजनीति का ज्ञान देना चाहिए।
उचित राजनीति के ज्ञान के लिए सर्वप्रथम शिक्षा के क्षेत्र में राजनीतिज्ञों का हस्तक्षेप बंद करना होगा और शिक्षा को शासन के नियंत्रण से मुक्त करना होगा। इसके लिए सार्वभौम और विश्वव्यापी सिद्धांतों का निरूपण करना होगा। आचार्य गणों को सार्वभौमिक शक्तियों का अनुगमन करना होगा। डॉ आत्मानंद मिश्रा ने स्पष्ट शब्दों में राजनीतिज्ञों को चेतावनी दी है राजनीतिज्ञों को यह समझना होगा कि शिक्षा गरीब की लुगाई और सबकी भौजाई नहीं है, जो हर अगुआ और पिछलगुवा उसे छेड़ता रहे। जिसका शिक्षा से नमस्कार नहीं दुआ, दुआ-बंदगी नहीं वह भी उसके संबंध में बिना सोचे विचारे बिना आनाकानी किए बिना आगे पीछे देखें कुछ भी कर डाले तथा ऐरे गैरे नत्थू खैरे को शिक्षा के बारे में कुछ कहने की पूर्ण स्वतंत्रता हो। दलगत और फरेबी राजनीति के अखाड़े बाजों को यह समझना होगा कि शिक्षक एवं छात्र भ्रष्टाचार, सामंतशाही, आडंबर, विलासिता आदि को समाजवाद की संज्ञा नहीं देंगे और राजनीति के नाम पर समाज विरोधी तत्वों द्वारा शिक्षा की छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं करेंगे।
इस प्रकार शिक्षा में राजनीति का हस्तक्षेप समाप्त होने पर ही भारत का विद्यार्थी व्यवहारिक राजनीति के दर्शन का पंडित बन पथ प्रदर्शक, सूत्रधार, क्रांतदर्शी और समाज का उन्नायक बन सकेगा।
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