भिक्षुक / भिखारी की आत्मकथा पर निबंध। Bhikhari ki Atmakatha in Hindi
पेट की क्षुधा पूर्ति के लिए अन्न अनिवार्य है। जब भूख लगी हो आते कुलबुला रही हों तब कोई कार्य अच्छा नहीं लगता। भूखा मरता, क्या न करता। पापी पेट सब कुछ करवा सकता है। मान और अभिमान, ग्लानी और लज्जा, यह सब चमकते हुए तारे उसकी काली घटाओं की ओट में छुप जाते हैं।
मैंने दरिद्र कुल में जन्म लेकर भी किसी प्रकार से दसवीं कक्षा पास की मैट्रिकुलेट कहलाया। माता पिता की आंखे चमकी हमारा पुत्र बाबू बनेगा। बाबू बनने के लिए मैंने दर-दर की ठोकरें खाई। किसी ने दया नहीं दिखाई। माता पिता की चमकी आंखों में अंधेरा छा गया मेरा मन उदास रहने लगा।
मंगलवार का दिन था। प्रातः हनुमान जी के मंदिर में गया। हनुमान चालीसा का पाठ किया। मन में आया कि आज दिनभर हनुमान जी का जाप करूं। शायद हनुमान जी प्रसन्न होकर मुझे भी अपने कंधे पर बैठा ले। मंदिर के आंगन में एक ओर बैठकर आंखें मूंद ली। मंद स्वंर में हनुमान चालीसा का पाठ करने लगा। आधे घंटे तक इसी प्रकार ध्यान में मग्न रहा। आंखें खोली तो आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। मेरे सामने लोग पैसे फेक गए थे गिने तो पूरे पांच रूपये हो गए थे। रुपए जेब में रख लिए। दान-पुण्य हिंदू जाति की विशेषता है। पात्र कुपात्र के विचार का प्रश्न ही नहीं उठता। भगवान बुद्ध को तो घोर तपस्या के बाद ज्ञान प्राप्त हुआ था मुझे तो आधे घंटे में ही हनुमान जी ने कंधे पर उठा लिया। अब मुझे भिक्षुक नाम मिल चुका था।
घरवालों से झूठ बोला। अब मेरी नौकरी लग गई है कल ही जाना है। दूसरे दिन पहुंच गया कृष्ण की जन्मभूमि में। 3 दिन मथुरा के मंदिरों का अध्ययन किया। यमुना तट पर भक्तों का स्नान और ध्यान देखा। धर्म की विविध लीलाएं देखीं। कहीं मोक्ष बांटा जा रहा है, कहीं पुष्प लुटाए जा रहे हैं, कहीं-कहीं पाप धोए जा रहे हैं। सभी जगह ढोंग और ठगी का बाजार गर्म है। कहीं चिमटा चमकता है तो कहीं मुंडचिरा सिर पटकता है।
वहां मैंने देवताओं के नाम पर माल उड़ाते और मस्त जीवन जीते पंडितों को देखा। कूड़े-करकट की पूजा करती नारियां देखी, सदियों से दुआ मांगती युवतियों को देखा, पीपल, बेर, बबूल को पूजते हुए देखा। मन-ही-मन हंसी आई कृष्ण नाम की लूट है लुटी जाए सो लूट।
साधुओं के वेश में भिखारियों को बिना परिश्रम के धन प्राप्त करते देखकर मैंने भी वहीं पर निश्चित किया। ब्रह्म मुहूर्त में उठकर यमुना में स्नान किया एक स्थान पर चादर बिछाई और ध्यान में होने का स्वांग रच कर बैठ गया। कीर्तन करने लगा। सभी लोग आते पैसे चढ़ा कर चले जाते। दिन चढ़ने के साथ ही भगवान भास्कर की गर्मी बढ़ने लगी। कीर्तन बंद किया। पैसे एकत्र किए और चल पड़ा जलपान करने। इस प्रकार 1 सप्ताह में सौ रुपए इकट्ठे हुए। केवल 2 घंटे का नाम मात्र का परिश्रम करना पड़ा।
1 दिन घाट वाले पंडित जी ने मुझे बुलाया। परिचय पूछा। जब उसे पता चला कि मैं बनिया होकर भक्तों को लूट रहा हूं तो उन्हें क्रोध आ गया। पाखंडी ना जाने क्या-क्या पुण्यश्लोक पंडित जी ने सुना दिए। मैंने कह दिया पंडित जी कल से यहां नहीं बैठूंगा। यह सुनकर पंडित जी की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई। नहीं भाई तुम्हें घाट देवता का हिस्सा तो देना ही चाहिए। घाट भी देवता बन गया और पंडित जी दलाल? पर मैं उसको पूजना नहीं चाहता था।
कभी पढ़ा था बहता पानी रमता जोगी निर्मल रहता है। चल पड़ा मथुरा छोड़कर नदियों के संगम पर तीर्थराज प्रयाग की ओर। वहां के तथाकथित भक्तों और संतों को देखा। कोई भैरव का भक्त बना कर लूट रहा है, मुसलमान शंकर बम भोला बन कर पुज रहा है। सपेरे, कंचन भगवा वस्त्र पहनकर साधु बने बैठे हैं। किसी के हाथ में खप्पर और गले में हड्डियां की माला है और अपने को किसी महान ऋषि की संतान बता रहा है। कोई एक हाथ ऊपर उठाकर स्वर्ग पर चढ़ रहा है तो अनेक विभूति लगाकर बटाएं चढ़ाकर पहुंचे हुए महात्मा बने बैठे हैं। अपने भक्तों के सम्मुख यह साधु ऐसा रूप बनाएंगे कि यदि भक्तों ने उनकी मांग पूरी नहीं की तो तुरंत शाप दे देंगे। मुंह में शाप और हृदय में पाप। यह सब देखकर मन प्रसन्न हुआ सोचा यहां अच्छी कमाई होगी।
हुआ भी वही। हनुमान मंदिर के बाहर प्रातः 2 घंटे कीर्तन करने लगा। कंठ मधुर था आय बढ़ने लगी। मंदिर के पुजारी की त्यौरियां आने लगी। हनुमान जी ने एक छलांग में सागर पार किया था यह एक दिन एक ही श्लोक में मुझे काबू करना चाहते थे। जब मैं काबू में नहीं आया तो हनुमान जी की सैनिक आ धमकी। लगा सभी जेबकतरे, जुआरी, शराबी हनुमान जी के सैनिक हैं। मैंने हार मान ली। पंडित जी के चरण स्पर्श किए विदा हो गया।
दोपहर को पंडित जी के चरणों में पहुंचा। दंडवत प्रणाम किया। समझौता हुआ अब मेरा कीर्तन स्थल मंदिर का प्रांगण बन गया। दरियां बिछा दी गई। मेरा आसन लगा दिया गया। माथे पर तिलक और मुंह के सामने माइक रख दिया गया। आमदनी सुरसा के मुंह की तरह बढ़ने लगी। समझौता था 50 प्रतिशत का अर्थात 50% मंदिर का।
एक दिन एक सज्जन आए। घर पर भोजन का निमंत्रण दे गए। उनके घर भोजन करने गया। स्वादिष्ट भोजन किया। उनकी बैठक में थोड़ा विश्राम किया आपसी बातचीत हुई। आत्म परिचय दिया और भिक्षुक बनने का कारण बताया। वे सिहर उठे। लगा उनका आत्मीय मिल गया। उन्होंने अपनी फैक्ट्री में ₹3000 मासिक वेतन पर नौकरी की पेशकश की। अंधे को क्या चाहिए दो आंखें अपनी स्वीकृति दे दी। मुझे भी भिक्षुक जीवन से घृणा हो गई।
0 comments: