यौतुकः पापसञ्चयः पाठ के आधार पर रम्भा का चरित्र चित्रण: रम्भा धनी रमानाथ की पत्नी एवं सुमेधा एवं चपला की सास है। वह धन की वशीभूत, निर्दय हृदयवाली, लाल
यौतुकः पापसञ्चयः पाठ के आधार पर रम्भा का चरित्र चित्रण (Rambha ka Charitra Chitran)
परिचय: रम्भा धनी रमानाथ की पत्नी एवं सुमेधा एवं चपला की सास है। वह धन की वशीभूत, निर्दय हृदयवाली, लालची प्रवृत्ति की है। उसकी प्रमुख चारित्रिक विशेषताएं हैं:-
(1) उपकार को मानने वाली: जब रमानाथ कार दुर्घटना में घायल हो जाते हैं। यह बात उन्हें उनके ड्राइवर हमीद द्वारा पता चलती है। तब वह तुरन्त अस्पताल पहुँचती है और वहाँ पता चलता है कि रमानाथ को रक्त की आवश्यकता है। बिना रक्त के उनके प्राण नहीं बचेंगें। जिस रक्त समूह की उन्हें आवश्यकता है वह रक्त समूह अस्पताल में उपलब्ध नहीं है। सुमेधा का रक्त समूह उनके रक्त समूह से मिलता है। सुमेधा प्रसन्नता एवं हठपूर्वक अपना रक्त दान देकर अपने श्वसुर रमानाथ के प्राण बचाती है।
इस त्याग पूर्ण रक्तदान की घटना से रम्भा अपने पुत्रवधु सुमेधा का बहुत उपकार मानने लगती है। वह सुमेधा को अपने सुहाग रमानाथ को नव-जीवन प्रदान करने वाली मानने लगती है।
(2) पतीव्रता स्त्री: रम्भा अपने पति को चाहने वाली एक पतिव्रता स्त्री है। जब वह दूरभाष पर अपने पति के दुर्घटनाग्रस्त होने की सूचना पाती है, तो रोने लगती है। वह पति को ही अपना सौभाग्य मानती है। यह उसके इस वाक्य - " तस्या एव रक्तेन मम सौभाग्यलालिया सुरक्षी कृता" से स्पष्ट होता है।
(3) लालची प्रवृत्ति: रम्भा स्वार्थी एवं लालची प्रवृत्ति की स्त्री है। वह अपने पुत्र वधू सुमेधा पर दहेज न मिलने के कारण सदैव दुर्व्यवहार करती है। वह धन को ही सब कुछ मानती है। “भमैम बुद्धिभ्रामिता” कथन उसकी स्वार्थी एवं लालची प्रवृत्ति को सूचित करता है।
(4) लज्जाशीलता: पहले जो रम्भा अधिक दहेज लाने के कारण चपला का आदर करती थी एवं दहेज न लाने के कारण सुमेधा के साथ दुर्व्यवहार करती थी, वहीं रम्भा पति के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद सुमेधा द्वारा किए गए रक्तदान से अभिभूत हो जाती है। उसे अपने कृत्य पर पश्चताप होता है। वह अपने को लज्जित समझती है। इसकी आंख से भौतिकता का पर्दा हट जाता है। वह स्वयं कहती है कि- “अब मैं समझ गयी हूं कि वास्तव में सद्गुण ही जीवन में काम आते न कि दहेज।
निष्कर्ष: रम्भा के सम्पूर्ण व्यक्तित्व एवं इसके चरित्र का सूक्ष्म विश्लेष करने के पश्चात यह विदित होता है कि रम्भा में सभी मानवीय गुण, अवगुण हैं किन्तु अपनी गलती को स्वीकार कर पश्चताप की भावना भी है।
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