हिप्पीवाद पर निबंध: हिप्पीवाद मूल रूप से युवाओं का एक आंदोलन था जिसका उदय 1960 के दशक में अमेरिका में हुआ। 'हिप्पी' शब्द की उत्पत्ति 'हिप्स्टर' से हुई
हिप्पीवाद पर निबंध - Essay on Hippie Culture in Hindi
हिप्पीवाद मूल रूप से युवाओं का एक आंदोलन था जिसका उदय 1960 के दशक में अमेरिका में हुआ। 'हिप्पी' शब्द की उत्पत्ति 'हिप्स्टर' से हुई मानी जाती है, जिसका अर्थ होता है - परंपराओं का विरोध करने वाले लोग। इस प्रकार, हिप्पीवाद किसी पूर्व-स्थापित वाद या मत को न मानकर, सभी प्रचलित विचारधाराओं, धार्मिक सिद्धांतों या सामाजिक नियमों का विरोध करता था। हिप्पी अनुयायी मानते थे कि मनुष्य बिना किसी वाद या मत विशेष के भी जी सकता है। चेतना की उच्च अवस्थाओं को प्राप्त करने के लिए हिप्पी लोग अक्सर मारिजुआना, एलएसडी तथा अन्य नशीली दवाओं का सेवन करते थे।
हिप्पीवाद की विचारधारा
यह आंदोलन उस समय की सामाजिक घुटन, निराशा और पलायनवादी जीवन-दर्शन से उपजा था। 1940 और 1950 के दशक में फ्रांसीसी विचारक जीन-पॉल सार्त्र ने अपने दर्शन 'अस्तित्ववाद' के माध्यम से जीवन की इस घुटन और निराशा की अनुभूति का उद्घोष किया था। उन्होंने बताया कि भोग और त्याग दोनों में ही निराशा हाथ लगती है, और निराशा में ही जीवन के वास्तविक मूल्य प्राप्त हो सकते हैं। सार्त्र के अनुसार, मृत्यु जीवन की अपेक्षा अधिक गहरा सत्य है, और मनुष्य का जीवन चारों ओर से प्रताड़ित है, मानो समस्त समाज उसका शत्रु हो। अस्तित्ववादी विचारधारा के साथ निराशावादी और पलायनवादी जीवनदर्शन का बोलबाला हो गया। तत्कालीन व्यवस्था से असंतुष्ट और कुंठाग्रस्त युवकों ने एक अलग रास्ता चुना। उन्होंने पारंपरिक जीवनशैली, पहनावे और सामाजिक मानदंडों को त्याग दिया। हिप्पीवाद जीवन की समस्याओं से किसी भी तरह पीछा छुड़ाने की कल्पना करता था, चाहे वह सही हो या गलत। उनका मानना था कि वे अपने दिमाग से अनावश्यक परतों को हटाकर जीवन का सार ग्रहण कर सकते हैं। यह आंदोलन बीटल्स और बीटनिक्स जैसे समूहों से प्रभावित होकर अमेरिका में तेज़ी से फैला।
भारत में हिप्पीवाद का आगमन
भारत, अपने उदार हृदय और आध्यात्मिक विरासत के कारण, हिप्पी आंदोलन के अनुयायियों के लिए एक आकर्षण का केंद्र बन गया। अमेरिका से आए ये निराश युवक भारत में ऐसे वेष-भूषा में घूमते थे जो यहाँ के लोगों में कौतूहल पैदा करती थी। वे ऐसे लंबे बाल रखते थे कि नर और नारी का भेद मिट जाता था। दुर्भाग्यवश, इनमें से कई चरस और गांजे का सेवन करते थे, और कुछ तो तस्करी जैसी अवांछनीय गतिविधियों में भी लिप्त पाए गए थे। वे अपने घर से बहुत थोड़े से पैसे लेकर चलते थे और यहाँ जैसे-तैसे अपना काम चलाते थे, कई बार गलत तरीकों से धन कमाते थे। यह भी आशंका थी कि इनमें से कुछ जासूसी का काम करते थे और देश के लिए खतरा बन सकते थे।
हिप्पियों की पहचान और उनके प्रभाव
हिप्पीवाद के समर्थकों का दावा था कि अधिकांश हिप्पी भले घरों के लड़के-लड़कियाँ थे, जिन्हें उनके घरों से खर्च आता रहता था। हालांकि, यह सवाल महत्वपूर्ण नहीं है कि वे कौन थे या कहाँ से आए थे, बल्कि यह कि वे क्या करते थे और उनका क्या प्रभाव था। ये जीवन से निराश व्यक्ति थे, और उन्होंने भारतीय युवा समाज में भी कुंठा, निराशा और नशीले पदार्थों के सेवन को बढ़ावा दिया।
क्या हिप्पीवाद उपयोगी है?
हमारे विचार से, हिप्पीवाद किसी भी समाज के लिए उपयोगी नहीं हो सकता। यह चरस और गाँजा पीकर मदहोश बनने या जीवन से पलायन करने की सोच को बढ़ावा देता है। हिप्पी लोग अक्सर बेकाम और बेमतलब घूमते रहते थे, उनका न कोई ठिकाना होता था और न ही किसी पर भरोसा। हिप्पीवाद हमारी संस्कृति को मिटाने का प्रयास करता है और समाज में नकारात्मकता फैलाता है। ऐसे आंदोलन को जितनी जल्दी देश की सीमाओं से बाहर किया जाए, उतना ही हमारे लिए श्रेयस्कर होगा। भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए इसे बहिष्कृत करना आवश्यक है, क्योंकि हमारे जीवन में ऐसे किसी भी विचार के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए जो हमें वास्तविकता से दूर ले जाए और समाज को कमज़ोर करे।
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