धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है पर निबंध: "धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है"—यह वाक्य हम हर तंबाकू उत्पाद पर पढ़ते हैं, हर अस्पताल की दीवार
धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है पर निबंध (Smoking is Injurious to Health Essay in Hindi)
"धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है"—यह वाक्य हम हर तंबाकू उत्पाद पर पढ़ते हैं, हर अस्पताल की दीवार पर देखते हैं और हर चेतावनी विज्ञापन में सुनते हैं। फिर भी, विडंबना यह है कि धूम्रपान करने वालों की संख्या कम होने की बजाय लगातार बढ़ रही है। धूम्रपान का सीधा संबंध फेफड़ों, हृदय और मस्तिष्क जैसे महत्वपूर्ण अंगों की बीमारियों से है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, तंबाकू सेवन हर वर्ष लगभग 80 लाख लोगों की मृत्यु का कारण बनता है। ऐसे में भारत जैसे विकासशील देश के लिए धूम्रपान एक गंभीर समस्या बन जाता है।
अक्सर यह देखा गया है कि किशोर और युवा उम्र के लोग फैशन, साथियों के दबाव या मानसिक तनाव के चलते धूम्रपान की ओर आकर्षित होते हैं। फिल्मों और वेब सीरीज में दिखाए जाने वाले स्टाइलिश सिगरेट पीने के दृश्य इस आदत को और अधिक ग्लैमराइज कर देते हैं। जब युवा वर्ग धूम्रपान को 'बोल्डनेस' या 'मर्दानगी' का प्रतीक मानने लगे, तो यह केवल स्वास्थ्य की नहीं, सोच की भी समस्या बन जाती है।
धूम्रपान का असर केवल उस व्यक्ति तक सीमित नहीं रहता जो तंबाकू का सेवन करता है। इसके धुएँ से आसपास के लोग भी प्रभावित होते हैं, जिसे 'पैसिव स्मोकिंग' कहा जाता है। विशेष रूप से छोटे बच्चों और गर्भवती महिलाओं को इस धुंए से गंभीर नुकसान पहुँच सकता है। कई वैज्ञानिक शोध इस बात की पुष्टि कर चुके हैं कि पैसिव स्मोकिंग से भी फेफड़े, दिमाग और हृदय को वही नुकसान होता है जो एक सक्रिय धूम्रपान करने वाले को होता है। इस प्रकार यह केवल एक व्यक्तिगत आदत नहीं, बल्कि समाज के स्वास्थ्य पर पड़ने वाला बोझ बन जाता है।
सरकार ने धूम्रपान को रोकने के लिए समय-समय पर कई कदम उठाए हैं। सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान पर प्रतिबंध, तंबाकू उत्पादों पर डरावनी चेतावनी तस्वीरें, और इनके विज्ञापनों पर रोक जैसे कदम निश्चित रूप से सराहनीय हैं। परन्तु इन नियमों के पालन में गंभीरता अब भी दिखाई नहीं देती। कई स्थानों पर खुलेआम धूम्रपान होता है, तंबाकू उत्पाद आसानी से हर गली-चौराहे पर उपलब्ध हैं, और जागरूकता की कमी अब भी एक बड़ी बाधा बनी हुई है।
यदि हम इस समस्या का स्थायी समाधान चाहते हैं तो केवल कानून नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना की आवश्यकता है। हमें युवाओं को यह समझाना होगा कि धूम्रपान कोई बहादुरी नहीं, बल्कि खुद को और अपनों को खतरे में डालने की नासमझी है। धूम्रपान छोड़ना आसान नहीं होता, लेकिन नामुमकिन भी नहीं। जो लोग इस आदत के शिकार हैं, उन्हें डराने के बजाय समझदारी से सही विकल्प सुझाना ज़्यादा कारगर साबित हो सकता है। निकोटीन रिप्लेसमेंट थेरेपी, परामर्श केंद्र, हेल्पलाइन और सामाजिक सहयोग—इन सभी का सही इस्तेमाल कर हम हजारों ज़िंदगियाँ बचा सकते हैं।
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