कुसंगति के दुष्प्रभाव पर निबंध - Kusangati ke Dushprabhav par Nibandh मानव जीवन में संगति का अत्यंत महत्व है। व्यक्ति जैसी संगति में रहता है...
कुसंगति के दुष्प्रभाव पर निबंध - Kusangati ke Dushprabhav par Nibandh
मानव जीवन में संगति का अत्यंत महत्व है। व्यक्ति जैसी संगति में रहता है, वैसा ही उसका चरित्र, व्यवहार और जीवनशैली बनती है। अच्छी संगति व्यक्ति को उन्नति की ओर ले जाती है, जबकि कुसंगति उसके जीवन को विनाश की ओर धकेल सकती है। भारतीय चिंतन में यह विश्वास पुरातन काल से ही रहा है कि संगति का सीधा प्रभाव मनुष्य के मन, मस्तिष्क और कर्मों पर पड़ता है। जैसे नदी की धारा जब गंदे नाले से मिलती है तो उसकी निर्मलता कलुषित हो जाती है, वैसे ही मनुष्य की अंतरात्मा भी कुसंगति की छाया में धीरे-धीरे मलिन हो जाती है।
कुसंगति का सबसे बड़ा दुष्प्रभाव व्यक्ति के नैतिक मूल्यों का ह्रास है। जब कोई व्यक्ति गलत लोगों के साथ रहता है, तो वह धीरे-धीरे अनैतिक कार्यों जैसे झूठ, चोरी, धोखाधड़ी आदि को अपनाने लगता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति नशे या जुए में लिप्त लोगों की संगति में रहता है, तो वह भी इन बुराइयों का शिकार हो सकता है।युवाओं के लिए कुसंगति का प्रभाव उनकी शिक्षा और करियर पर भी पड़ता है। गलत दोस्तों की संगति में समय बर्बाद करने, पढ़ाई से ध्यान हटने और गलत रास्तों पर चलने से उनका भविष्य अंधकारमय हो जाता है।
इतिहास इस सत्य का प्रमाण है कि दुर्योधन को यदि शकुनि की कुसंगति न मिली होती, तो कौरवों और पांडवों के बीच विनाशकारी युद्ध शायद टल सकता था। शकुनि की चालबाज़ियों और विषैले परामर्श ने एक शक्तिशाली साम्राज्य को विनाश की ओर धकेल दिया। वहीं दूसरी ओर विभीषण की संगति ने रावण की लंका में भी राम नाम की ज्योति जला दी।
संत कबीरदास कहते हैं—
"बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।"
यह दोहा आत्मनिरीक्षण की ओर इशारा करता है, जो कुसंगति से बचने का पहला कदम है। यदि व्यक्ति सजग हो जाए, और स्वयं को परखना शुरू करे, तो वह यह पहचान सकता है कि किसकी संगति उसे गिरा रही है और किसकी संगती उसे सँवार रही है। ऐसे में जरूरी है कि हम अपने संगी-साथियों को चुनते समय वैसी ही सजगता बरतें जैसी भोजन या वस्त्रों के चयन में बरतते हैं। एक अच्छा मित्र, एक अच्छा शिक्षक, एक विचारशील पुस्तक या एक सकारात्मक संवाद—ये सभी सत्संग के आधुनिक रूप हैं, जिनसे हम कुसंगति के प्रभाव से बच सकते हैं।
यह भी सच है कि जीवन में बुरी संगति से पूरी तरह बचना संभव नहीं होता। कभी कार्यस्थल पर, कभी समाज में, या आस-पड़ोस में ऐसे लोगों से सामना हो ही जाता है जो कुसंगति में लिप्त होते हैं। परंतु ऐसे में आवश्यक है कि हम अपना आंतरिक विवेक जागृत रखें। बुरे विचारों से भरे वातावरण में भी यदि हमारा आत्मबल और दिशा स्पष्ट हो, तो हम प्रभावित नहीं होंगे। जैसे कमल कीचड़ में रहकर भी अपनी सुंदरता और पवित्रता बनाए रखता है, वैसे ही सजग मनुष्य कुसंगति के बीच रहकर भी उसका हिस्सा नहीं बनता।
अंततः, मनुष्य को सजग रहकर यह चुनाव करना होता है, कि वह किन विचारों के साथ अपने दिन का आरंभ करता है, किन लोगों के साथ अपने समय का निवेश करता है। यही चुनाव तय करता है, कि उसका जीवन एक दीप बनकर दूसरों को प्रकाश देगा, या स्वयं ही अंधकार में खो जाएगा।
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