शिशिर ऋतु पर निबंध: ग्रामीण क्षेत्रों में एक कहावत बहुत प्रचलित है— गर्मी है बेशर्मी, जाड़ा है बेचारा। लेकिन गहराई में जाकर सोचता हूँ, तो यह कहावत कुछ
शिशिर ऋतु पर निबंध / सर्दी का मौसम पर निबंध / Essay on Winter Season in Hindi
शिशिर ऋतु पर निबंध: ग्रामीण क्षेत्रों में एक कहावत बहुत प्रचलित है— गर्मी है बेशर्मी, जाड़ा है बेचारा। लेकिन गहराई में जाकर सोचता हूँ, तो यह कहावत कुछ जँचती नहीं है। गर्मी बेशर्मी हो या न हो, पर जाड़ा बेचारा नहीं हो सकता । शिशिर वह ऋतु है, जिसका आगमन होते ही सारी धरती मानो भय से काँपने लगती है । प्राणियों का शरीर सिहर उठता है । प्रकृति भी कुछ सहम सी जाती है। इतना ही नहीं, प्रतापी सूरज का तेज भी इस ऋतु के आगे फीका पड़ जाता है। शिशिर के भय से सूरज जल्दी निकलता नहीं, बादलों की ओट में सहमा - दुबका रहता है। उसकी किरणें भी मानो भय से पीली पड़ जाती हैं । इस दृष्टि से सोचें तो जाड़े को बेचारा कहना कितना उचित है? इतना ही नहीं, आकाश में चाँद भी अपनी चाँदनी को मलिन पाकर उदास हो जाता है । सारी रात गम के आँसू रोता रहता है । सवेरे-सवेरे हरी-भरी दूब पर ओस की बूँदें उसके आँसू ही तो हैं। इस प्रकार शिशिर के आते ही सूरज, चाँद सभी भयभीत हैं, तो फिर जाड़ा बेचारा कैसे हो सकता है।
वर्षा के बाद शिशिर का आगमन होता है । इस ऋतु का महत्त्व कम नहीं है। वर्षा के जल से लस्त-पस्त धरती गुनगुनी धूप पाकर तरोताजा हो जाती है। प्रकृति में भी नई स्फूर्ति, नई ताजगी का संचार होने लगता है। हर तरफ एक अद्भुत शांति का समाँ बँध जाता है। बाढ़ की विभीषिका का भय जाता रहता है । नदी-नालों का डरावना रूप भी परिवर्तित होने लगता है। आवागमन सुलभ हो जाता है। वन-उपवन में रंग-बिरंगे फूलों की कतारें सज जाती हैं। बागों में बहार आ जाती है, तो तड़ागों में कमल के फूलों पर भौंरों के गुंजार गूँजने लगते हैं। विभिन्न रंगों की तितलियाँ अपने रंगीन पर पसारे फूलों पर मँडराने लगती हैं। आकाश धुलकर स्वच्छ बन जाता है। आकाश की नीलिमा में रंग-बिरंगे बादल के टुकड़े तैरकर आकाश की शोभा में चार चाँद लगा देते हैं। हरी-हरी दूबों पर ओस की बूँदें मोती का भ्रम पैदा कर देती हैं।
दोपहर की अलसायी धूप का रूप भी कम आनंददायक नहीं होता। रात में लिहाफ में दुबककर सोने का मजा कुछ और ही होता है । इस ऋतु में दिन छोटे और रात बड़ी होती है। रोग का प्रकोप कम आता है। हाजमा दुरुस्त रहता है । अतः स्वास्थ्य के लिए यह ऋतु लाभदायक है। खेतों में जौ, गेहूँ की बालियों को झूमते देखकर किसानों का मन मयूर भी थिरक उठता है हरी-हरी सब्जियों से बाजार सज जाता है। बिहार और उत्तर प्रदेश का प्रमुख छठ पर्व इसी ऋतु में मनाया जाता है।
लेकिन इस ऋतु में गरीबों का कष्ट बढ़ जाता है । उनके बच्चे पर्याप्त गर्म वस्त्र के अभाव में ठिठुरते रहते हैं। पछुआ हवा के सर्द झोंके शरीर में तीर की तरह चुभते हैं । पाले की मार से फसलें बर्बाद हो जाती हैं । जब भयानक शीत लहर चलती है, तो मानव जीवन त्रस्त हो उठता है । सारे काम अस्त-व्यस्त हो जाते हैं। यात्रा में गर्म कपड़ों की अधिकता बोझ बन जाती है। आग की तलाश में लोग भागते-फिरते नजर आते हैं।
प्रेमचंद ने अपनी प्रसिद्ध कहानी 'पूस की रात' में शिशिर की भयानकता का बड़ा ही सजीव चित्रण किया है। किसान सारी रात जागकर किस प्रकार अपने खेतों की रखवाली करता है— इसका सफल चित्रण उस कहानी में हुआ है। खेतों से फूस बटोरकर वह आग तो जलाता है, पर फूस की आग भला पूस की रात का सामना कितनी देर कर सकती है।
संक्षेप में, शिशिर ऋतु कई अर्थों में हमारे लिए लाभदायक है, तो कुछ मायनों में यह कष्टदायक भी कम नहीं है।
लेकिन आज के विज्ञान के युग में हमारे पास ऐसे साधनों की कमी नहीं है, जिसके द्वारा हम शिशिर के कष्टों से छुटकारा पा लेते हैं । इन साधनों के आगे न तो ग्रीष्म की प्रचंडता हमारा कुछ बिगाड़ सकती है, न शिशिर की भयानकता हमें डरा सकती है। हीटर, बिजली के अन्य उपकरण आदि ऐसे ही साधन हैं ।
जो भी हो, गुण और अवगुण तो प्रकृति का नियम है। “जड़-चेतन गुन दोषमय बिश्व कीन्ह करतार”—हमारे लिए तो सभी ऋतुओं का समान महत्त्व है। सबका अपना रूप है, सौंदर्य है, विशेषता है, पर शिशिर का रूप तो अतुल्य है, अनुपम है और अभिनव है।
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