मोबाइल फोन के बिना एक दिन पर निबंध: आज के युग में मोबाइल फोन सिर्फ एक उपकरण नहीं, बल्कि जीवन का अनिवार्य हिस्सा बन चुका है। सुबह उठने से लेकर रात सोने
मोबाइल फोन के बिना एक दिन पर निबंध / एक दिन बिना मोबाइल के पर निबंध (Ek din Bina mobile Ke Nibandh in Hindi)
मोबाइल फोन के बिना एक दिन पर निबंध: आज के युग में मोबाइल फोन सिर्फ एक उपकरण नहीं, बल्कि जीवन का अनिवार्य हिस्सा बन चुका है। सुबह उठने से लेकर रात सोने तक, हर समय हमारी उंगलियाँ मोबाइल की स्क्रीन पर चलती रहती हैं। आँख खुलते ही सबसे पहला काम होता है मोबाइल देखना—अलार्म बंद करना, नोटिफिकेशन चेक करना, व्हाट्सएप खोलना, और दिनभर सोशल मीडिया में उलझे रहना। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि अगर एक दिन के लिए मोबाइल न हो, तो क्या होगा? हाल ही में मेरे साथ कुछ ऐसा ही हुआ, जब मैंने पूरा एक दिन मोबाइल के बिना बिताया।
वो रविवार का दिन था। सुबह जैसे ही उठा और मोबाइल उठाया, देखा कि बैटरी पूरी तरह खत्म हो चुकी थी। चार्जर लगाया तो वो भी खराब था। दुकानें खुलने में वक्त था और कोई दूसरा चार्जर भी नहीं था। थोड़ी बेचैनी हुई—न टाइम पता चल रहा था, न मैसेज, और न ही कोई अन्य खबर। मन में विचार आया कि पूरा दिन कैसे बीतेगा। लेकिन थोड़ी देर बाद जैसे मन धीरे-धीरे शांत होने लगा।
मैंने बालकनी में बैठकर चाय पी और अखबार पढ़ने लगा। तभी माँ ने नाश्ते के लिए आवाज दी। मुझे देखते ही माँ बोली, "कुछ उदास दिख रहे हो?" मैंने हँसकर जवाब दिया, “मोबाइल डिस्चार्ज हो गया है और चार्जर भी खराब है।” माँ मुस्करा दीं और बोलीं, “तो आज का दिन हमारे लिए निकाल लो।” उस एक वाक्य ने कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया।
चूँकि रविवार का दिन था, इसलिए पापा भी घर पर ही थे। आमतौर पर वे आते ही मोबाइल पर बिज़ी हो जाते थे और मैं भी। लेकिन उस दिन हम दोनों ने साथ बैठकर लूडो खेला। मेरी छोटी बहन भी हमारे साथ आ गई और घर का माहौल बहुत हल्का और खुशनुमा हो गया। उस समय मुझे समझ आया कि हम सब एक ही घर में रहकर भी कितने अलग-अलग हो गए थे—सिर्फ इसलिए क्योंकि हर कोई अपने मोबाइल में उलझा रहता था।
जैसे-जैसे दिन चढ़ा, मोबाइल की कमी धीरे-धीरे महसूस होना बंद हो गई। दोपहर में, जब मैं आमतौर पर मोबाइल पर वीडियो देखता या गेम खेलता, वहीँ आज मैंने अपनी किताबों की अलमारी खोली। वहाँ कुछ पुरानी कॉमिक्स और कहानियों की किताबें थीं, जिन्हें मैंने बचपन में बहुत पढ़ा था। उन्हें दोबारा पढ़कर मुझे वो पुराने दिन याद आ गए और जब शाम हुई तो छत पर जाकर बिना किसी रुकावट के डूबते सूरज को देखा।
रात होते-होते, मैं अजीब सी शांति और खुशी महसूस कर रहा था। पूरे दिन कोई मैसेज नहीं, ना कोई कोई कॉल और न ही कोई नोटिफिकेशन। मुझे लगा कि मेरा ये रविवार बर्बाद नहीं हुआ, बल्कि मैंने इसे पूरी तरह से जिया। इस एक दिन ने मुझे सिखाया कि हम मोबाइल पर कितने ज्यादा निर्भर हो गए हैं और कभी-कभी खुद को 'अनप्लग्ड' करके वास्तविक जीवन का 'प्ले' बटन दबाना कितना ज़रूरी होता है।
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