भिक्षावृत्ति की समस्या पर निबंध: भिक्षावृत्ति भारत की सबसे पुरानी, परंतु सबसे उपेक्षित सामाजिक समस्याओं में से एक है। मंदिरों के बाहर, रेलवे स्टेशनों
भिक्षावृत्ति की समस्या पर निबंध - Bhikshavriti ki Samasya par Nibandh
भिक्षावृत्ति की समस्या पर निबंध: भिक्षावृत्ति भारत की सबसे पुरानी, परंतु सबसे उपेक्षित सामाजिक समस्याओं में से एक है। मंदिरों के बाहर, रेलवे स्टेशनों पर, सड़क के चौराहों पर, और यहाँ तक कि विद्यालयों के आसपास भी भिक्षुकों की लंबी कतारें देखी जा सकती हैं। भिक्षावृत्ति उस मनोवृत्ति की उपज है, जहाँ व्यक्ति श्रम और आत्मनिर्भरता के स्थान पर परजीवी बनना अधिक सुविधाजनक समझता है। यह प्रवृत्ति धीरे-धीरे व्यक्ति को कर्महीन, आत्मसम्मानहीन और उदासीन बना देती है। भिक्षुकों का बढ़ता हुआ वर्ग न केवल हमारी सड़कों की सौंदर्यता को नष्ट करता है, बल्कि यह संकेत भी देता है कि कहीं न कहीं हमारी सामाजिक व्यवस्था में कोई गहरी खामी है।
भिक्षावृत्ति के मूल में कई सामाजिक और आर्थिक कारक कार्यरत हैं। सबसे प्रमुख कारण है गरीबी। भारत में लाखों लोग आज भी गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहे हैं। उनके पास न तो पर्याप्त आय है और न ही मूलभूत सुविधाएँ। ऐसी स्थिति में, भिक्षावृत्ति कई लोगों के लिए जीविका का एकमात्र साधन बन जाती है। शिक्षा की कमी भी एक महत्वपूर्ण कारक है। अशिक्षित व्यक्ति के पास रोजगार के सीमित विकल्प होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप वह भिक्षावृत्ति की ओर प्रवृत्त होता है। कई बार प्राकृतिक आपदाओं, किसी बीमारी या परिवार के बिछुड़ जाने के कारण भी व्यक्ति भीख मांगने को मजबूर हो जाता है। लेकिन चिंताजनक यह है कि यह अस्थायी समस्या अब स्थायी जीवन शैली बनती जा रही है।
आज भारत के कई बड़े शहरों में संगठित भिक्षावृत्ति एक उद्योग का रूप ले चुकी है। छोटे बच्चों को अपाहिज बना कर, महिलाओं को गर्भवती हालत में या वृद्धों को गंदे वस्त्रों में सड़क पर बैठाकर करुणा का व्यापार किया जाता है। यह केवल दुर्भाग्य नहीं, बल्कि मानवता के नाम पर चल रहा एक क्रूर मज़ाक है। मीडिया और पुलिस की रिपोर्टें बताती हैं कि कई बार यह कार्य दलाली, मानव तस्करी और नशीली दवाओं के कारोबार से भी जुड़ा होता है। यह देखकर मन विचलित होता है कि कैसे सहानुभूति को हथियार बना कर लोग मासूम जनमानस से धन ऐंठते हैं।
सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए कई योजनाएँ बनाई हैं—जैसे बेघर लोगों के लिए रैन बसेरे, भिक्षावृत्ति विरोधी कानून, पुनर्वास केंद्र, बच्चों के लिए शिक्षा कार्यक्रम, और कौशल विकास की ट्रेनिंग—धरातल पर ये योजनाएँ तभी तब तक प्रभावी नहीं हो सकती, जब तक समाज की सोच न बदले। केवल कानून बनाकर समस्या का समाधान नहीं हो सकता, जब तक हम खुद अपने व्यवहार को नहीं बदलते।
निष्कर्षतः, भिक्षावृत्ति एक सामाजिक विफलता का संकेत है, और इससे निपटने के लिए दया से अधिक विवेक की आवश्यकता है। जब तक समाज यह समझेगा नहीं कि भीख देना एक समाधान नहीं, बल्कि समस्या को बनाए रखने का माध्यम है—तब तक हम केवल सहानुभूति का दिखावा करते रहेंगे, और असल सहायता से चूकते रहेंगे।
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