मैंने अपनी गर्मी की छुट्टियाँ कैसे बिताई पर निबंध: गर्मी की छुट्टियाँ हर छात्र के लिए एक विशेष समय होता है, जब स्कूल की भागदौड़ से मुक्ति मिलती है और
मैंने अपनी गर्मी की छुट्टियाँ कैसे बिताई पर निबंध - Maine apni garmi ki chuttiyan kaise bitai par nibandh
मैंने अपनी गर्मी की छुट्टियाँ कैसे बिताई पर निबंध: गर्मी की छुट्टियाँ हर छात्र के लिए एक विशेष समय होता है, जब स्कूल की भागदौड़ से मुक्ति मिलती है और मन नए अनुभवों की तलाश में भटकता है। इस वर्ष मेरी गर्मी की छुट्टियाँ मेरे लिए एक अविस्मरणीय और आत्मिक अनुभव बन गईं। मेरे परिवार ने इस बार ऋषिकेश जाने की योजना बनाई। मेरे माता-पिता ने योजना बनाई कि हम ऋषिकेश के एक आश्रम में दस दिन बिताएंगे। यह विचार मेरे लिए रोमांचक था, क्योंकि मैं शहर की आपाधापी से दूर एक शांत और सात्विक वातावरण में समय बिताने को उत्सुक था।
हमारा आश्रम गंगा नदी के तट पर स्थित था, जहाँ लहरों की मधुर ध्वनि मन को शांति प्रदान करती थी। आश्रम का वातावरण अत्यंत सात्विक और अनुशासित था। यहाँ का जीवन स्कूल की आपाधापी और शहर की भागदौड़ से बिल्कुल अलग था। आश्रम में मेरा दिन सुबह चार बजे शुरू होता था। प्रभात की शांति में सामूहिक प्रार्थना और योग सत्र में भाग लेना मेरे लिए एक नया अनुभव था। योग और ध्यान ने मेरे मन को एकाग्र करने में मदद की। स्कूल के दौरान जहाँ मेरा मन अक्सर भटकता रहता था, यहाँ ध्यान सत्रों ने मुझे अपने विचारों को नियंत्रित करना सिखाया। आश्रम में आयोजित प्रवचनों में हमें भगवद्गीता के उपदेशों का अध्ययन करने का अवसर मिला। गीता के श्लोकों ने मुझे जीवन के प्रति एक नया दृष्टिकोण दिया।
आश्रम की दिनचर्या में सामूहिक भोजन, स्वाध्याय, और सेवा कार्य भी शामिल थे। सामूहिक भोजन का समय मुझे विशेष रूप से प्रिय था। इस दौरान सभी लोग एक साथ बैठकर सादा और सात्विक भोजन ग्रहण करते थे। सेवा कार्य के अंतर्गत हम आश्रम की सफाई, पेड़-पौधों की देखभाल, और अन्य छोटे-मोटे कार्यों में सहयोग करते थे। पहले मुझे ये काम बेकार लगे, लेकिन फिर मैंने महसूस किया कि इससे हमें दूसरों की मदद करने की आदत पड़ती है। शाम को गंगा के किनारे आरती होती थी। दीपों की रोशनी, मंत्रोच्चार, और गंगा की लहरों की ध्वनि का संयोजन मेरे मन को एक गहरी शांति से भर देता था। इन गतिविधियों ने मेरे रोजमर्रा के तनाव को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। स्कूल की पढ़ाई, होमवर्क, और सहपाठियों के बीच प्रतिस्पर्धा ने मेरे मन को थका दिया था, लेकिन आश्रम का शांत और अनुशासित वातावरण मेरे लिए एक औषधि की तरह सिद्ध हुआ।
दस दिन की यह यात्रा समाप्त होने के बाद जब हम घर लौटे, तो मैंने अपने अंदर एक बड़ा बदलाव महसूस किया। पहले मैं सुबह देर तक सोता था, लेकिन अब मैं स्वाभाविक रूप से सुबह जल्दी उठने लगा। स्कूल बंद होने के बावजूद मैंने अपने लिए एक समय-सारिणी बनाई, जिसमें पढ़ाई, योग, और आत्म-चिंतन के लिए समय निर्धारित किया। भगवद्गीता के उपदेशों ने मुझे अनुशासित और लक्ष्य-केंद्रित जीवन जीने की प्रेरणा दी। मैंने यह भी महसूस किया कि मेरे विचार अब अधिक सकारात्मक और केंद्रित हो गए हैं।
इस प्रकार यह गर्मी की छुट्टियां मुझमें बड़ा परिवर्तन लेकर आयी। इस दौरान मैंने न केवल एक नयी जगह की यात्रा की बल्कि खुद को जानने का अवसर भी मिला।
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