क्रोध मनुष्य का शत्रु है पर निबंध - Krodh Manushya ka Shatru hai Essay in Hindi
क्रोध मनुष्य का शत्रु है पर निबंध - Krodh Manushya ka Shatru hai Essay in Hindi
मनुष्य एक विवेकशील प्राणी है। उसकी सबसे बड़ी विशेषता यही है कि वह विचार कर सकता है, सही और गलत में अंतर कर सकता है तथा अपने व्यवहार को अनुशासित कर सकता है। परंतु जब वह अपने ही मन के विकारों का गुलाम बन जाता है, तब यही विवेकधारी मनुष्य अपने लिए और समाज के लिए एक संकट का कारण बन जाता है। क्रोध भी ऐसा ही एक विकार है—जो न केवल आत्मविनाश का मार्ग प्रशस्त करता है, बल्कि सामाजिक समरसता को भी छिन्न-भिन्न कर देता है।
क्रोध को भारतीय चिंतन में मनुष्य का परम शत्रु माना गया है। भगवद्गीता में भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं—"क्रोधात् भवति संमोहः, संमोहात् स्मृति-विभ्रमः" अर्थात् क्रोध से भ्रम पैदा होता है, भ्रम से बुद्धि भ्रष्ट होती है। जब बुद्धि भ्रष्ट होती है तब तर्क नष्ट हो जाता है, और जब तर्क नष्ट हो जाता है तब व्यक्ति का पतन हो जाता है। इसलिए क्रोध को जितना जल्दी हो सके छोड़ दो।
क्रोध का सबसे बड़ा दुष्प्रभाव यह है कि यह व्यक्ति की मानसिक शांति को भंग करता है। जब कोई व्यक्ति क्रोध में होता है, तो वह सही और गलत की पहचान खो देता है। जो बात शांति से समझाई जा सकती है, वह गुस्से के कारण लड़ाई में बदल जाती है। कई बार क्रोधित व्यक्ति अपने ही परिवार या दोस्तों को बुरा-भला कह देता है, जिससे रिश्ते टूट जाते हैं। ऐसा व्यक्ति न केवल दूसरों को ठेस पहुँचाता है, बल्कि स्वयं भी अपराधबोध से ग्रस्त हो जाता है। क्रोध का यह जहर धीरे-धीरे व्यक्ति को अकेलेपन की ओर धकेलता है। इसके अतिरिक्त, बार-बार क्रोध करने से तनाव, चिंता और अवसाद जैसी मानसिक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं, जो जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं।
क्रोध का विकल्प केवल क्षमा, सहिष्णुता और संवाद हो सकता है। जब हम दूसरों की बात सुनने का धैर्य विकसित करते हैं, जब हम विरोध के स्वर को समझने का प्रयास करते हैं, और जब हम अपनी ही ग़लतियों को स्वीकार करने का साहस रखते हैं—तभी हम भीतर से मुक्त होते हैं। यह मुक्ति ही हमें उस ऊंचे स्तर पर ले जाती है जहां कोई भी बाहरी उत्तेजना हमें विचलित नहीं कर सकती।
अतः यह कहना अतिशयोक्ति नहीं कि क्रोध एक आत्मघाती प्रवृत्ति है। यह न केवल सामने वाले को चोट पहुँचाता है, बल्कि स्वयं को भीतर से खोखला कर देता है। वह व्यक्ति जो अपने क्रोध को साध लेता है, वही वास्तव में स्वयं का स्वामी बनता है।
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