बरसात का एक दिन पर निबंध: सुबह से ही आसमान में बादल छाए हुए थे। हल्की-हल्की हवा चल रही थी और बादल इस तरह घिरे थे कि लग रहा था अब बारिश कभी भी शुरू हो
बरसात का एक दिन पर निबंध / अनुच्छेद (Barsat Ka Ek Din Essay in Hindi)
सुबह से ही आसमान में बादल छाए हुए थे। हल्की-हल्की हवा चल रही थी और बादल इस तरह घिरे थे कि लग रहा था अब बारिश कभी भी शुरू हो सकती है। मैं अपने पापा के साथ बस स्टेशन पर खड़ा था। हमें दिल्ली जाना था। मौसम कुछ अजीब सा था—ना बहुत गर्मी थी, ना ठंडी। मैं बस का इंतज़ार कर रहा था, और मन ही मन सोच रहा था कि काश बारिश शुरू हो जाए।
तभी दूर से दिल्ली जाने वाली बस आती दिखाई दी। जैसे ही वह हमारे सामने आकर रुकी और हम बस में चढ़े, ठीक उसी वक्त आसमान ने जैसे अपनी पूरी ताकत से बादलों को खोल दिया। तेज़ बारिश शुरू हो गई। खिड़की के शीशे पर पानी की मोटी-मोटी बूँदें गिरने लगीं। कुछ लोगों के पास छाता नहीं था, वो भीगते-भीगते बस में चढ़े। अंदर बैठते ही सभी ने अपने कपड़े पोछे और खिड़कियाँ बंद कर दीं। बस चल पड़ी और बारिश धीरे-धीरे और तेज होती गई। बाहर सबकुछ धुंधला-सा दिख रहा था, लेकिन मुझे ये सब बहुत अच्छा लग रहा था। मैं तो बस खिड़की के पास बैठा, इस नज़ारे को आँखों में भरता जा रहा था।
करीब दो-तीन घंटे बाद बस एक ढाबे पर रुकी। बारिश थोड़ी कम हो गई थी, लेकिन ठंडी हवा अब भी चल रही थी। ढाबे के भीतर एक कढ़ाई में गरम पकौड़ियाँ तल रही थीं और पास में चाय उबल रही थी। पापा ने कहा, “चलो कुछ खा लेते हैं।” हम ढाबे के अंदर गए। वहाँ लकड़ी की पुरानी बेंचें थीं और छत से पानी की बूँदें कभी-कभी टपक रही थीं।
पापा ने हमारे लिए आलू की गरमागरम पकौड़ियाँ और दो कुल्हड़ चाय मंगवाईं। हम एक किनारे बैठ गए, और पहली ही बाइट में जो स्वाद मिला, वो शायद आज भी याद है। बाहर बारिश अब धीमी हो चुकी थी, लेकिन हवा और भी ठंडी हो गई थी। कुछ यात्री फोन पर मौसम की जानकारी ले रहे थे, कुछ ड्राइवर से आगे के रास्ते के बारे में पूछ रहे थे। कोई परेशान था, कोई थका हुआ, लेकिन मैं... मैं अंदर ही अंदर बेहद खुश था।
कुछ देर बाद ड्राइवर ने आवाज़ दी, “बस चलने वाली है!” हम सब फिर अपनी-अपनी सीटों पर लौट आए। अब बारिश रुक चुकी थी, और आसमान थोड़ा साफ होने लगा था। सड़कें भीगी हुई थीं और पेड़ धुले-धुले से लग रहे थे। चारों ओर मिट्टी की सोंधी खुशबू फैली हुई थी।
बरसात का वह दिन मेरे लिए हमेशा यादगार रहेगा। उस दिन मैंने महसूस किया कि असली खुशियाँ बड़ी चीज़ों में नहीं होतीं—कभी-कभी एक साधारण सी बारिश, गरम चाय, पकौड़ियाँ और अपने पापा के साथ बिताया गया समय ज़िंदगी के सबसे अच्छे पलों में से एक बन जाता है।
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