अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी पर निबंध: जब भी भारत के स्वतंत्रता संग्राम की बात होती है, तो एक नाम सबसे पहले हमारे मन में उभरता है — महात्मा गांधी।
अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी पर निबंध - Ahinsa ke Pujari Mahatma Gandhi par Nibandh
अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी पर निबंध: जब भी भारत के स्वतंत्रता संग्राम की बात होती है, तो महात्मा गांधी का नाम हमारे मन में सबसे पहले उभरता है। उनका मानना था कि सत्य और अहिंसा सिर्फ नैतिक आदर्श नहीं, बल्कि व्यावहारिक साधन हैं। उन्होंने इसे न सिर्फ अपने जीवन में उतारा, बल्कि पूरे स्वतंत्रता संग्राम को इसी सोच से जोड़ा। गांधीजी को 'अहिंसा का पुजारी' इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने अपने जीवन और संघर्ष की हर दिशा में सत्य और अहिंसा को ही मार्गदर्शक बनाया।
महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर (गुजरात) में हुआ था। उनका असली नाम मोहनदास करमचंद गांधी था, लेकिन अपने विचारों, आदर्शों और जीवनशैली के कारण वे ‘महात्मा’ कहलाए। उन्होंने इंग्लैंड से कानून की पढ़ाई की और फिर दक्षिण अफ्रीका में अपने जीवन की पहली लड़ाई अन्याय के खिलाफ लड़ी। वहाँ उन्होंने अफ़्रीकी लोगों के साथ हो रहे नस्लीय भेदभाव के खिलाफ आवाज़ उठाई। वहीं से उन्हें सत्य और अहिंसा की ताकत का अहसास हुआ।
भारत लौटने के बाद उन्होंने इस विचार को स्वतंत्रता संग्राम का आधार बनाया। उन्होंने सविनय अवज्ञा, असहयोग आंदोलन, दांडी यात्रा और भारत छोड़ो आंदोलन जैसे अभियानों के माध्यम से देश को एकजुट किया। लाखों लोगों ने उनके नेतृत्व में आंदोलन में भाग लिया, और सबसे बड़ी बात यह रही कि यह सब बिना हिंसा के हुआ। उन्होंने लोगों को सिखाया कि अत्याचार का विरोध करना ज़रूरी है, लेकिन उससे लड़ने का तरीका गरिमा और संयम भरा होना चाहिए।
आज भी जब दुनिया युद्ध, आतंकवाद, असहिष्णुता और सामाजिक विभाजन जैसी समस्याओं से जूझ रही है, तब गांधी के विचार और भी ज़्यादा प्रासंगिक हो जाते हैं। मार्टिन लूथर किंग जूनियर से लेकर नेल्सन मंडेला तक, कई विश्व नेताओं ने गांधी के अहिंसा और सत्य के रास्ते से प्रेरणा ली है। संयुक्त राष्ट्र ने भी 2 अक्टूबर को ‘अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस’ घोषित कर यह स्वीकार किया कि गांधी सिर्फ भारत के नहीं, बल्कि पूरी मानवता के नेता हैं।
हालाँकि, आज के समय में गांधी की विचारधारा को व्यवहार में लाना आसान नहीं है। तेज़ रफ्तार, व्यावसायिक और स्वार्थ-प्रधान समाज में उनके आदर्शों को 'पुराने ज़माने की बातें' समझा जाता है। लेकिन जब भी समाज में असहमति, विभाजन या अन्याय अपने पाँव पसारता है, तो गांधी की याद फिर से आती है। उन्होंने हमें सिखाया कि सत्य और अहिंसा की ताक़त, तलवार और गोलियों से कहीं ज़्यादा होती है। अगर हम उनके विचारों का थोड़ा भी अंश अपने जीवन में उतारें, तो समाज में बहुत बड़ा बदलाव आ सकता है।
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