सादा जीवन उच्च विचार पर निबंध: सादा जीवन जीना भी एक कला है। एक धनवान व्यक्ति भी सादा जीवन जीता है तथा एक साधारण स्थिति का व्यक्ति भी भड़कीला जीवन जीता
सादा जीवन उच्च विचार पर निबंध (Essay on Sada jeevan Uch vichar in Hindi)
भूमिका: सादा जीवन जीना भी एक कला है। एक धनवान व्यक्ति भी सादा जीवन जीता है तथा एक साधारण स्थिति का व्यक्ति भी भड़कीला जीवन जीता है । अतः इस कला का कलाकार बनना आसान नहीं है। सादा जीवन जीने वालों को समाज आदर की दृष्टि से देखता है।
सादा जीवन का अर्थ एवं महत्त्व: सादा जीवन से हमारा अभिप्राय पाखण्ड- रहित और आडम्बर- रहित जीवन से है। सादा जीवन जीने वाला व्यक्ति इतना उच्च और महान् बन जाता है कि उसके लिए भौतिक वस्तुओं में आकर्षण नहीं रह जाता है।
उच्च विचारों का जीवन पर प्रभाव: उच्च विचारों से मनुष्य का मन निष्कपट, निःस्वार्थ और विश्व - कल्याण का प्रेरक बन जाता है। जो दिव्यता प्राप्त करना चाहता है, उसे सबसे पहले विचारों को पवित्र करना होगा, उच्चादर्शों का पालन करना होगा। पवित्र विचारों को धारण करने वाले 'सन्त' की उपाधि से विभूषित होकर समाज में सम्मान के पात्र बन जाते हैं।
दिव्यता प्राप्त करने के साधन: दिव्यता प्राप्त करने के लिए मनुष्य को सत्य का अनुसरण करने वाला बनना चाहिए। उसे प्राणी मात्र के प्रति उदार, अहिंसक और क्षमाशील बनना चाहिए। मानसिक एवं शारीरिक पवित्रता, आत्मसंतोष, साधना, तपस्या एवं ज्ञानवर्धक पुस्तकों का अध्ययन आदि ऐसे प्रमुख आदर्श हैं, जिन्हें अपने जीवन में व्यवहृत कर प्रत्येक मनुष्य 'सादा जीवन उच्च विचार' की उपाधि प्राप्त कर सकता है।
सादा जीवन व उच्च विचार का परस्पर सम्बन्ध: सादा जीवन व उच्च विचार में परस्पर घनिष्ठ संबंध है। उच्च विचारों के बिना सादगी ढोंग के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। उच्च विचार ही सादे जीवन की ओर प्रवृत्त करते हैं। अतः सादे जीवन के साथ उच्च विचारों का होना स्वयं सिद्ध है। सादे जीवन से ही उच्च विचारों को बल मिलता है तथा उच्च विचारों से ही सादे जीवन का पोषण होता है। अतएव दोनों का अन्योन्याश्रय संबंध है।
सादा जीवन और लोक-कल्याण: सादे जीवन का उद्देश्य लोक-मंगल से पूर्ण है। जो व्यक्ति जितना ही तड़क-भड़कपूर्ण जीवन जीना चाहता है, उसकी आर्थिक स्थिति उतनी ही डावांडोल ही जाती है। फलतः वह गलत तरीके अपनाकर धानार्जन करता है, जिसके परिणामस्वरूप समाज में व्यभिचार, अनैतिकता, हिंसा आदि का जन्म होता है। जिसकी आवश्यकताएँ सीमित होंगी, वही लोक-कल्याण की ओर उन्मुख हो सकेगा।
आदर्श व्यक्तियों के उदाहरण: भारतीय ऋषियों की त्यागशीलता, निस्पृहता एवं भौतिक सुखों के प्रति अरुचि उनकी दिव्यता का पोषक है। खादी का वस्त्र धारण करने वाले गांधीजी को कौन नहीं जानता? ईश्वरचन्द्र विद्यासागर तो एक धनवान के कुली तक बन गए। स्वामी दयानन्द, स्वामी विवेकानन्द एवं विनोबा भावे आदि भी इसके उदाहरण हैं।
उपसंहार: जीवन में सत्य, अहिंसा, प्रेम, उदारता एवं क्षमा-भाव को ग्रहण करने वाला मनुष्य स्वयं ही विचारों की उच्चता, सादा जीवन और पवित्रता की प्राप्ति का सम्मान प्राप्त करता है।
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