युवा शक्ति में असंतोष पर निबंध: किसी भी देश की असली ताक़त उसके युवा होते हैं। वे न केवल देश का भविष्य गढ़ते हैं, बल्कि वर्तमान को भी आकार देते हैं।
युवा शक्ति में असंतोष पर निबंध (Yuva Shakti mein Asantosh par Nibandh)
युवा शक्ति में असंतोष पर निबंध: किसी भी देश की असली ताक़त उसके युवा होते हैं। वे न केवल देश का भविष्य गढ़ते हैं, बल्कि वर्तमान को भी आकार देते हैं। यदि युवा सही दिशा में हों, तो देश की तरक्की निश्चित है, लेकिन जब यही युवा, असंतोष से भर जाएं, तो यह एक गंभीर समस्या बन जाती है। आज भारत ही नहीं, दुनिया के कई देशों में युवा वर्ग के भीतर एक गहरा असंतोष देखा जा रहा है। यह असंतोष केवल व्यक्तिगत समस्याओं का नतीजा नहीं है, बल्कि यह सामाजिक, राजनीतिक, शैक्षिक और आर्थिक स्थितियों से भी गहराई से जुड़ा हुआ है।
आज का युवा पढ़ा-लिखा है, जागरूक है और अपनी आकांक्षाओं को लेकर बेहद गंभीर भी है। वह सिर्फ एक अच्छी नौकरी नहीं चाहता, वह पहचान बनाना चाहता है, अवसर चाहता है, और अपने सपनों को जीने की आज़ादी चाहता है। लेकिन जब उसे योग्यतानुसार अवसर नहीं मिलते, जब उसके सपनों के पंख बेरोजगारी की जंजीरों में बंध जाते हैं, तब असंतोष जन्म लेता है। एक युवा जो वर्षों तक मेहनत करता है, लेकिन उसे सम्मानजनक नौकरी या पहचान नहीं मिलती, तो उसका मन स्वाभाविक रूप से आक्रोशित हो जाता है। यह असंतोष धीरे-धीरे भीतर ही भीतर एक ज्वालामुखी की तरह पनपता है, जो कभी भी फूट सकता है।
शिक्षा व्यवस्था में व्याप्त विसंगतियाँ भी युवाओं के असंतोष की एक बड़ी वजह हैं। एक ओर तो पाठ्यक्रम में किताबी ज्ञान भरा पड़ा है, लेकिन दूसरी ओर व्यावहारिक जीवन के लिए जरूरी कौशलों की कमी है। युवा पढ़ाई तो पूरी करता है, लेकिन जब वह नौकरी के लिए जाता है, तो उसके पास वो योग्यताएँ नहीं होतीं, जिनकी बाज़ार को ज़रूरत है। ऐसे में उसकी मेहनत व्यर्थ प्रतीत होती है और यह भाव उसे असंतोष की ओर धकेलता है।
साथ ही, सामाजिक अपेक्षाओं का दबाव भी युवाओं को भीतर से तोड़ता है। एक ओर माता-पिता की उम्मीदें होती हैं, तो दूसरी ओर समाज की नजरें। हर कोई चाहता है कि उनके बच्चे सफल हो, लेकिन सफलता का यह पैमाना केवल पैसों और पद से जोड़ा जाता है। जब कोई युवा अपने मन पसंद क्षेत्र में जाना चाहता है, जैसे संगीत, कला या खेल, तो उसे प्रोत्साहन की बजाय आलोचना मिलती है। समाज और परिवार की उम्मीदों का बोझ उसे अपनी पहचान खोने पर मजबूर कर देता है। ऐसे में उसका आत्मविश्वास टूटता है और एक कुंठा जन्म लेती है, जो आगे जाकर असंतोष में बदल जाती है।
राजनीतिक माहौल भी युवाओं को भ्रमित करता है। कई बार वे नेताओं के बड़े-बड़े वादों और भाषणों से प्रेरित होते हैं, लेकिन जब ज़मीनी हकीकत उनके सामने आती है, तो उन्हें महसूस होता है कि उन्हें सिर्फ इस्तेमाल किया गया है। यह अनुभव उन्हें हताश और क्रोधित करता है। राजनीतिक दलों द्वारा युवाओं को केवल भीड़ के रूप में इस्तेमाल करना, न कि उनकी रचनात्मकता का उपयोग करना, एक बड़ी विफलता है।
हालांकि, असंतोष अपने आप में पूरी तरह नकारात्मक नहीं है। यदि इसे सही दिशा में मोड़ा जाए, तो यही असंतोष बदलाव की सबसे बड़ी ताकत बन सकता है। इतिहास गवाह है कि बड़े-बड़े आंदोलन, चाहे वह आज़ादी की लड़ाई हो या सामाजिक सुधार—युवाओं की असंतुष्टि और चेतना से ही उपजे हैं। इसलिए ज़रूरत है कि हम इस असंतोष को समझें, उसका सम्मान करें और उसे रचनात्मक दिशा दें।
हमें एक ऐसा समाज बनाना होगा, जहाँ युवा खुलकर अपने विचार रख सकें, अपनी राह चुन सकें और उन्हें योग्यतानुसार अवसर मिल सकें। शिक्षा व्यवस्था को व्यावहारिक बनाना होगा, ताकि युवा सिर्फ डिग्री के बोझ से न दबें, बल्कि जीवन जीने की कला भी सीखें। माता-पिता और शिक्षक को भी चाहिए कि वे युवाओं के सपनों को सुनें, समझें और उनका साथ दें, न कि उन्हें अपने अधूरे सपनों की राह पर चलने को मजबूर करें।
युवा अगर गलत दिशा में जाते हैं, तो उसका कारण वे खुद नहीं, बल्कि वे हालात होते हैं जो उन्हें उस दिशा में धकेलते हैं। यदि समाज, परिवार और सरकार मिलकर उन्हें सकारात्मक सोच, आत्मविश्वास और अवसर दें, तो यही युवा देश को नई ऊंचाइयों तक ले जा सकते हैं।
अंत में, यही कहा जा सकता है कि युवा शक्ति में असंतोष एक चुनौती है, लेकिन यह एक संभावना भी है। अगर हम इसे समय रहते पहचान लें, समझ लें और इसे सही रास्ता दिखा दें, तो यही असंतोष भारत को एक नए युग की ओर ले जा सकता है—एक ऐसे युग की ओर जहाँ हर युवा गर्व से कह सके, "मैं अपने देश का भविष्य हूँ, और मेरा भविष्य उज्ज्वल है।"
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